क्या मदरसा में दी जाने वाली शिक्षा ठीक नहीं है? और यदि ऐसा है तो फिर इसके पीछे तर्क दिए जाने की वजह क्या है? राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग यानी एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट के सामने कुछ ऐसे ही तर्क रखे हैं।
एनसीपीसीआर ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मदरसों में बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा व्यापक नहीं है और इसलिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है। आयोग ने कहा कि मदरसा सही शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुपयुक्त जगह है और उनका न सिर्फ़ शिक्षा के लिए एक असंतोषजनक और अपर्याप्त मॉडल है, बल्कि उनके काम करने का एक मनमाना तरीका भी है जिसमें पूरी तरह से शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 29 के तहत निर्धारित पाठ्यक्रम और मूल्यांकन प्रक्रिया का अभाव है। आयोग ने दावा किया है कि वे संवैधानिक जनादेश… और किशोर न्याय अधिनियम, 2015 का पूरी तरह उल्लंघन करते हुए काम करते हैं।
एनसीपीसीआर ने यह तर्क यह कहते हुए रखे हैं कि तालिबान चरमपंथी समूह कथित तौर पर उत्तर प्रदेश के देवबंद में स्थापित दारुल उलूम देवबंद मदरसा की धार्मिक और राजनीतिक विचारधाराओं से प्रभावित हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार शीर्ष बाल अधिकार संस्था ने अदालत को लिखित रूप में यह बात कही।
बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली कई अपीलों पर विचार किया जा रहा है, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को इस आधार पर असंवैधानिक घोषित किया गया था कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत और संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। 5 अप्रैल को भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है।
बहरहाल, आयोग ने कहा है, 'अल्पसंख्यक दर्जे वाली इन संस्थाओं द्वारा बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने से इनकार कर न केवल बच्चों को शिक्षा के उनके सबसे महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है, बल्कि उन्हें क़ानून के समक्ष समानता के उनके मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 14) से भी वंचित किया जा रहा है।'
आयोग ने अपने तर्क के समर्थन में यह भी कहा है कि बच्चों को धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध यानी अनुच्छेद 15(1) के अधिकार, बच्चों को स्वस्थ तरीक़े से और स्वतंत्रता और सम्मान की स्थिति में विकसित होने के अवसर और सुविधाओं से भी वंचित किया जा रहा है।
आयोग ने कहा कि ऐसे संस्थान गैर-मुसलमानों को इस्लामी धार्मिक शिक्षा भी दे रहे हैं जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का उल्लंघन है। हालाँकि आरटीई अधिनियम मदरसों को इसके दायरे से छूट देता है, लेकिन उनमें पढ़ने वाले बच्चों को 'किसी भी न्यायिक निर्णय या संवैधानिक व्याख्या में भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 ए के दायरे से कभी भी छूट नहीं दी गई है'।
आयोग ने कहा है, 'इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि ऐसे संस्थान में शिक्षा प्राप्त करने वाला बच्चा स्कूल में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम के बुनियादी ज्ञान से वंचित रहेगा।'
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