नगालैंड में हुई फ़ायरिंग को लेकर विपक्ष मोदी सरकार पर हमलावर हो गया है। तमाम नेताओं ने इसे लेकर संसद के बाहर सरकार को घेरा है तो संसद के अंदर भी दोनों सदनों में इस मामले में हंगामा हुआ है।
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने एएनआई से कहा कि इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, यह बहुत बड़ी त्रासदी है और इस पर पूरा देश स्तब्ध है। उन्होंने कहा कि इस मामले में जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने एएनआई से कहा है कि वहां तो एफ़आईआर दर्ज हो गई है लेकिन जम्मू-कश्मीर में जब हम पर गोलियां चलती हैं तो लाश वापस लेने के लिए भी हमें प्रदर्शन करना पड़ता है, भीख मांगनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से और बाक़ी जगहों से भी अफ़स्पा हटना चाहिए जिससे सुरक्षा बलों की जवाबदेही तय हो।
पूर्वोत्तर जल रहा है: ओवैसी
एआईएमआईएम के सांसद असदउद्दीन ओवैसी ने कहा कि जिन लोगों ने मजदूरों की हत्या की है, उन्हें गिरफ़्तार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक अफस्पा रहेगा, पूर्वोत्तर में अमन कायम नहीं हो सकता, पूर्वोत्तर आज जल रहा है और कुछ महीने पहले मणिपुर में भी पुलिस अफ़सर मारे गए थे।
शिव सेना के सांसद संजय राउत ने एएनआई से कहा, “इस सरकार का कारोबार ऐसा ही है। किसानों को गोली मारो, बेरोज़गार सड़क पर आते हैं, उन्हें गोली मारो।”
सपा के सांसद रामगोपाल यादव ने कहा है कि घटना में दोषी पाए जाने वालों के ख़िलाफ़ हर हाल में कार्रवाई होनी चाहिए।
भारत-म्यांमार की सीमा से सटे मोन जिले में फ़ायरिंग में 14 ग्रामीणों और एक जवान की मौत हो गई थी। पुलिस ने सेना की 21 पैरा पुलिस बल के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कर ली है। एफ़आईआर में पुलिस ने कहा है कि सुरक्षा बलों ने हत्या के इरादे से लोगों पर हमला किया।
नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफिउ रियो ने कहा है कि अफ़स्पा को हटा दिया जाना चाहिए। वह इस घटना में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल होने आए थे। नगालैंड सरकार ने घटना में मारे गए लोगों के परिवारों को 5-5 लाख रुपये की सहायता राशि देने का एलान किया है।
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने भी कहा है कि अफ़स्पा को ख़त्म कर दिया जाना चाहिए।
क्या है अफ़स्पा क़ानून
पूर्वोत्तर के राज्यों में सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार देने वाले सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (अफ़स्पा) को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। यह क़ानून तब लगाया जाता है जब किसी इलाक़े को सरकार ‘अशांत इलाक़ा’ यानी ‘डिस्टर्बड एरिया’ घोषित कर देती है। इस क़ानून के लागू होने के बाद वहां सेना या सशस्त्र बलों को भेजा जाता है। अगर सरकार यह घोषणा कर दे कि अब राज्य के उस इलाक़े में शांति है तो इसे हटा लिया जाता है और जवानों को वापस बुला लिया जाता है।
1958 में इसे असम, मिज़ोरम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था, जिससे उस दौरान इन राज्यों में फैली हिंंसा पर क़ाबू पाया जा सके। मेघालय से इसे पूरी तरह ख़त्म कर दिया गया है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मामले में केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। उन्होंने कहा है कि न तो सैनिक सुरक्षित हैं न ही आम नागरिक और सरकार आख़िर कर क्या रही है?
सरकार ने इस मामले की जांच के लिए एसआईटी बना दी है। इलाक़े में तनाव को देखते हुए धारा 144 लागू कर दी गई है और मोबाइल इंटरनेट और मैसेज सर्विस को भी बंद कर दिया गया है। इस वजह से कोहिमा में होने वाले हॉर्नबिल त्यौहार को भी रद्द कर दिया गया है।
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