क्या केंद्र सरकार अपने आलोचकों का मुँह बंद करने और अपने विरोधियों पर नकेल कसने के लिए सोशल मीडिया और ख़बरों से जुड़े डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म को नियंत्रण में लेना चाहती है? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि सरकार ने न्यूज़ पोर्टल और नेटफ्लिक्स, अमेज़ॉन, प्राइम वीडियो और हॉटस्टार जैसे मनोरंजन सामग्री देने वाले ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म को सूचना व प्रसारण मंत्रालय के तहत लाने का फ़ैसला किया है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इससे जुड़ी अधिसूचना पर दस्तख़त कर दिया है।
इसकी एक बड़ी वजह यह है कि डिजिटल सामग्री की निगरानी या नियमन के लिए कोई निकाय अब संगठन अब तक नहीं है। प्रिंट के लिए प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया, न्यूज़ चैनल के लिए न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन और विज्ञापन के लिए एडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड कौंसिल ऑफ इंडिया है। लेकिन डिजिटल सामग्री के लिए ऐसी कोई संस्था नहीं है।
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क्या कहना है सरकार का?
इसके पहले एक दूसरे मामले में मंत्रालय ने बताया था कि डिजिटल मीडिया के नियमन की ज़रूरत है। मंत्रालय ने यह भी कहा था कोर्ट मीडिया में हेट स्पीच को देखते हुए गाइडलाइंस जारी करने से पहले एमिकस के तौर पर एक समिति की नियुक्ति कर सकता है।केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि यदि मीडिया से जुड़े दिशा- निर्देश उसे जारी करने ही हैं तो सबसे पहले वह डिजिटल मीडिया की ओर ध्यान दे, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े दिशा निर्देश तो पहले से ही हैं।
सरकार ने यह भी कहा था कि डिजिटल मीडिया पर ध्यान इसलिए भी देना चाहिए कि उसकी पहुँच ज़्यादा है और उसका प्रभाव भी अधिक है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से कहा था, 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्वपूर्ण पत्रकारिता के बीच संतुलन बनाने के लिए क़ानूनी प्रावधान और अदालत के फ़ैसले हमेशा ही रहे हैं। पहले के मामलों और फ़ैसलों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का नियम होता है।'बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के पास सुदर्शन टीवी का मामला पड़ा हुआ है, जिसमें एक कार्यक्रम में यह कहा गया है कि सरकारी नौकरियों में मुसलमान घुसते जा रहे हैं और यह एक तरह का जिहाद है। इसे 'यूपीएससी जिहाद' कहा गया है।
ओटीटी
इसके अलावा पिछले महीने सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने ओवर-द-टॉप यानी ओटीटी प्लैटफॉर्म पर स्वायत्त नियमन की मांग वाली याचिका को लेकर केंद्र का जवाब मांगा था। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार, सूचना व प्रसारण मंत्रालय और मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया को नोटिस भेजा था।इस याचिका में कहा गया था कि इन प्लेटफॉर्म्स के चलते फिल्म बनाने वालों और कलाकारों को सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेशन के बग़ैर ही अपनी सामग्री ऑनलाइन बेचने व दिखाने का रास्ता मिल गया है।
बीते साल सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाएगी, जिससे मीडिया की स्वतंत्रता पर कोई असर पड़ेगा। लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के साथ-साथ फिल्मों पर जिस तरह का नियमन है, उसी तरह का कुछ नियमन ओटीटी प्लैटफॉर्म्स पर भी होना चाहिए।
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