एक लिखित प्रेजेंटेशन में, केंद्र ने चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच को बताया कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य में राजद्रोह कानून को बरकरार रखने का फैसला बाध्यकारी है। इसने यह भी कहा कि तीन जजों की बेंच कानून की वैधता की जांच नहीं कर सकती है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, एक संवैधानिक पीठ पहले ही समानता के अधिकार और जीवन के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों के संदर्भ में धारा 124 ए (राजद्रोह कानून) के सभी पहलुओं की जांच कर चुकी है।
देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा सहित पांच पक्षों ने दायर की थीं। मोदी सरकार पर इस कानून के नाजायज इस्तेमाल का आऱोप लगता रहा है। छात्र नेता रहे उमर खालिद, कन्हैया कुमार समेत कई युवा आंदोलनकारियों पर राजद्रोह कानून में केस दर्ज किया गया। अभी हाल ही में मुंबई पुलिस ने सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा पर भी राजद्रोह कानून की धारा लगाई थी।
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