केंद्रीय गृह मंत्रालय ने फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट यानी एफसीआरए की वेबसाइट से कुछ अहम डाटा को हटा दिया है। इनमें कई ऐसे एनजीओ का भी डाटा है, जिनका एफसीआरए लाइसेंस कैंसिल किया जा चुका है। हटाए गए डाटा में एनजीओ के वार्षिक रिटर्न का भी ब्यौरा था। इन एनजीओ के वार्षिक रिटर्न को भी अब कोई नहीं देख सकता। सवाल यह है कि आखिर इस डाटा को क्यों हटा दिया गया?
एफसीआरए लाइसेंस के जरिए ही विदेशों से चंदा हासिल किया जा सकता है।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, गृह मंत्रालय ने इस कदम के बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है लेकिन मंत्रालय के अफसरों का कहना है कि ऐसा इस वजह से किया गया है क्योंकि हटाया गया डाटा जनता के लिए गैर जरूरी था।
एफसीआरए की वेबसाइट पर एनजीओ को दिए जाने वाले लाइसेंस, उन्हें मिलने वाले विदेशी चंदे सहित तमाम जानकारियां मौजूद रहती हैं।
गैर जरूरी था डाटा
केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक अफसर ने कहा कि जो भी डाटा उपयोगी नहीं था या गैर जरूरी था उसे हटा दिया गया है। उन्होंने कहा कि जिन एनजीओ का लाइसेंस खत्म हो चुका है और जिन एनजीओ ने अपना वार्षिक रिटर्न फाइल किया है, उनके ओवरऑल डाटा को बनाए रखा गया है।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एनजीओ को मिलने वाले विदेशी चंदे के तिमाही खातों के आंकड़े भी हटा दिए गए हैं। हालांकि गृह मंत्रालय के सूत्रों ने यह भी कहा है कि ऐसा मंत्रालय की ओर से इस महीने की शुरुआत में जारी किए गए नियमों के मुताबिक ही किया गया है।
मंत्रालय ने बदले थे नियम
इस साल 1 जुलाई को गृह मंत्रालय ने एफसीआरए के नियमों में बदलाव को लेकर अधिसूचना जारी की थी। इसमें नियम 13 में भी बदलाव किया गया था। यह नियम ‘विदेशी योगदान मिलने की घोषणा’ से संबंधित है। सरकार ने इस नियम के क्लॉज बी को हटा दिया है।
यह क्लॉज कहता है कि कोई भी शख्स जो किसी भी वित्तीय वर्ष की किसी एक तिमाही में विदेशी चंदा हासिल करता है उसे अपनी वेबसाइट पर या फिर केंद्र सरकार की किसी वेबसाइट पर इसकी जानकारी देनी होगी। यह जानकारी तिमाही के अंतिम दिन के 15 दिनों के भीतर देनी होगी और इसमें चंदा देने वालों की जानकारी, मिला हुआ धन और किस तारीख को धन मिला है, इस बारे में बताना होगा।
पारदर्शिता कम होगी
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक एनजीओ के प्रमुख ने कहा कि गृह मंत्रालय का यह कदम बेहद अजीब है। उन्होंने कहा कि हालांकि इससे एनजीओ के कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन ऐसा लगता है कि यह एफसीआरए के काम में पारदर्शिता को कम करने की कोशिश है।
एनजीओ के प्रमुख ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि ऐसे वक्त में जब एफसीआरए विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं और इसकी जांच सीबीआई के द्वारा की जा रही है, ऐसे में गृह मंत्रालय को और ज्यादा पारदर्शिता रखने के लिए कदम उठाने चाहिए थे ।
किए कई बदलाव
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस महीने की शुरुआत में एफसीआरए से संबंधित कुछ नियमों में जो बदलाव किया था उसके तहत अब भारतीय किसी को जानकारी दिए बिना विदेश में रहने वाले रिश्तेदारों से 1 साल में 10 लाख रुपये तक मगा सकेंगे, पहले यह सीमा 1 लाख रुपये थी। गृह मंत्रालय ने कहा था कि यदि मंगाई जाने वाली राशि इससे अधिक है तो लोगों के पास सरकार को इस बारे में बताने के लिए 90 दिन होंगे जबकि पहले यह अवधि 30 दिन की थी।
गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर कहा था कि संगठनों या व्यक्तियों पर सीधे मुकदमा चलाने के बजाय एफसीआरए के तहत पांच और अपराधों को "कम्पाउंडेबल" बना दिया गया है। यानी इन अपराधों के बदले भारी जुर्माना भरना होगा। इससे पहले, एफसीआरए के तहत केवल सात अपराध कंपाउंडेबल थे।
इसी तरह, नियम 9 में बदलाव किया गया था। नियम 9 धन प्राप्त करने के लिए एफसीआरए के तहत 'पंजीकरण' या 'पूर्व अनुमति' प्राप्त करने के आवेदन से संबंधित है। संशोधित नियमों के मुताबिक, व्यक्तियों और संगठनों या गैर सरकारी संगठनों को बैंक खाते के बारे में गृह मंत्रालय को सूचित करने के लिए 45 दिन का समय दिया गया है। यह समय सीमा पहले 30 दिन थी।
इसी तरह बैंक खाते, नाम, पता, लक्ष्य या संगठन (संगठनों) के प्रमुख सदस्यों को विदेशी धन प्राप्त करने के मामले में 15 दिनों के बजाय 45 दिन का समय दिए जाने का संशोधन किया गया था।
बीते साल दिसंबर में गृह मंत्रालय ने मदर टेरेसा मिशन ऑफ चैरिटी का एफसीआरए लाइसेंस रिन्यू करने से इनकार कर दिया था लेकिन कुछ दिनों बाद इसे बहाल कर दिया गया था। तब इसे लेकर विवाद हुआ था।
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