सीबीआई के पूर्व आला अफ़सर राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस का आयुक्त बनाए जाने के कुछ दिन बाद ही उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने वाले और पूर्व सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के ख़िलाफ़ सरकार ने कार्रवाई करने का फ़ैसला किया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आलोक वर्मा पर पद का दुरुपयोग करने और संबंधित सेवा नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए उन पर अनुशासन की कार्रवाई करने की सिफ़ारिश की है।
आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना दोनों ही आईपीएस अफ़सर हैं, दोनों ही सीबीआई में ऊँचे पद पर थे और दोनों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
राकेश अस्थाना रिटायरमेंट के तीन दिन पहले दिल्ली पुलिस के आयुक्त बनाए गए हैं तो रिटायर हो चुके आलोक वर्मा के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा रही है। राकेश अस्थाना अमित शाह व नरेंद्र मोदी के काफी नज़दीक समझे जाते हैं।
सीबीआई से हटाए गए थे वर्मा
राकेश अस्थाना के साथ मतभेदों के बाद वर्मा को 10 जनवरी 2019 को सीबीआई से हटा कर फ़ायर सर्विस सेवा का महानिदेशक बनाया गया थ। वर्मा ने उसे स्वीकार नहीं किया था और सरकार से गुजारिश की थी कि उन्हें रिटायर मान लिया जाये।
उन्होंने यह भी कहा था कि वे 31 जुलाई 2017 को ही रिटायरमेंट की उम्र 60 साल के हो चुके थे।
पेगासस ने की थी जासूसी
'द वायर' के अनुसार, आलोक वर्मा को 23 अक्टूबर 2018 की बीच रात को जब पद से हटाया गया, उसके तुरन्त बाद पेगासस सॉफ़्टवेअर उनके तीन फ़ोन नंबरों पर नज़र रखने लगा।
वर्मा ही नहीं, उनकी पत्नी, बेटी और दामाद पर भी पेगासस की नज़र पड़ी। वर्मा से जुड़े आठ लोग इज़रायली कंपनी एनएसओ के बनाए स्पाइवेअर की जासूसी की जद में आ गए।
पेगासस प्रोजेक्ट को एनएसओ का जो लीक हुआ डेटाबेस मिला है, उसमें सीबीआई के दूसरे वरिष्ठ अधिकारी राकेश अस्थाना और ए. के. शर्मा के फ़ोन नंबर भी हैं।
अस्थाना को भी सीबीआई से हटा दिया गया था।
राकेश अस्थाना प्रधानमंत्री मोदी के बेहद करीबी थे, इसलिए उनके फोन की जासूसी पर खलबली मची।
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रफ़ाल कनेक्शन?
वर्मा की बर्खास्तगी के तीन हफ़्ते पहले यानी 4 अक्टूबर को मशहूर वकील प्रशांत भूषण और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने वर्मा के दफ़्तर जाकर उनसे मुलाक़ात की थी। वे वर्मा से रफ़ाल मुद्दे पर शिकायत दर्ज कराने गए थे।
इस मुलाक़ात की खबर प्रमुखता से छपी थी और यह कहा गया था कि इन दोनों लोगों से रफ़ाल के मुद्दे पर मिलने की वजह से प्रधानमंत्री वर्मा से नाराज़ हो गए।
वर्मा ने प्रशांत भूषण और अरुण शौरी से मिलने के बाद भी रफ़ाल की सीबीआई जाँच के आदेश नहीं दिए थे। पर यह आशंका जताई गई थी कि राकेश अस्थाना के हमले के बाद ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जिसमें वर्मा रफ़ाल सौदे की जाँच के आदेश दे दें।
बाद में वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसे देखने से इस मामले के बारे में कुछ अनुमान लगाया जा सकता है।
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मोदी के नज़दीक थे अस्थाना
2009 में गुजरात की एक महिला आर्किटेक्ट पर निगरानी रखने के मामले में भी राकेश अस्थाना का नाम आया था। उस समय खबरें छपी थीं कि मुख्यमंत्री के कहने पर ही उस महिला पर निगरानी रखी गई थी।
राकेश अस्थाना की सीबीआई में नियुक्ति का विरोध कुछ लोगों ने इस आधार पर किया था कि 2011 में स्टर्लिंग बायोटेक के एक घूसखोरी मामले में उनका नाम आया था और सीबीआई उसकी जाँच कर रही थी। अस्थाना का नाम उस कांड की एफ़आईआर में नहीं था, पर उनकी भूमिका की जाँच भी हो रही थी।
यह आरोप भी लगा था कि एक मांस व्यापारी मोईन क़ुरैशी से अस्थाना से घूस लिए थे। पेगासस सॉफ्टवेअर से जासूसी की सूची में कुरैशी का फ़ोन नंबर भी है।
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