दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने वैवाहिक बलात्कार (मेरिटल रेप) के अपराधीकरण की मांग वाली याचिकाओं पर बुधवार को अपना बंटा हुआ फैसला सुनाया यानी एक जज इसे अपराध के दायरे में लाने को सहमत थे जबकि दूसरे जज इसके खिलाफ थे। जस्टिस राजीव शकधर ने कहा कि जहां तक पत्नी के साथ सहमति से संभोग का सवाल है, यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। जबकि जस्टिस सी. हरिशंकर ने कहा कि धारा 375 का अपवाद 2 अनुच्छेद 14, 19 या 21 का उल्लंघन नहीं करता। इनमें साफतौर पर अंतर है।
दोनों के अपने अपने तर्क हैं। भारत में रेप की धारा में फिलहाल पति को इससे छूट मिली हुई है। वो पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उससे शारीरिक संबंध बना सकता है और वो कृत्य रेप नहीं माना जाएगा। हाईकोर्ट की बेंच को यही तय करना था कि वो कृत्य रेप है या नहीं। इस निर्णय के बाद याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं जो अपना अंतिम निर्णय इस पर देगा।
वैवाहिक रेपः दोनों जजों के विचार फैसले से ज्यादा महत्वपूर्ण
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- 29 Mar, 2025
दिल्ली हाई कोर्ट की बेंच ने बुधवार को मेरिटल रेप पर खंडित फैसला सुनाया। अपने फैसले में दो जजों की बेंच ने जो लिखा है, वो भी जानना चाहिए कि आखिर इस विषय पर उनके विचार विस्तार से क्या हैं।
