भारत में गुरुवार का दिन राजनीतिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से सरगर्म रहा। मथुरा, काशी, ताजमहल, साम्प्रदायिक हिंसा और बुलडोजर राजनीति की खबरें हलचल मचाती रहीं लेकिन महंगाई का आंकड़ा भी इसी बीच जारी हुआ, लोग इस पर चुप रहे। लोगों ने बढ़ती महंगाई को जैसे स्वीकार कर लिया है। लेकिन यह चिन्तनीय है। सरकार की तरफ से इस महंगाई को रोकने की क्या कोशिशें हो रही हैं, उस संबंध में गुरुवार के आंकड़े जारी होने के बाद भी कोई बयान नहीं आया है। भारत की खुदरा मुद्रास्फीति (रिटेल महंगाई) दर अप्रैल में बढ़कर 7.79 प्रतिशत हो गई, जो मुख्य रूप से पेट्रोल-डीजल-गैस और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों की वजह से है।
सरकारी आंकड़े गुरुवार को जारी हुए। उपभोक्ता मूल्य आधारित मुद्रास्फीति का आंकड़ा लगातार चौथे महीने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की सीमा से काफी ऊपर रहा। केंद्र सरकार ने आरबीआई को खुदरा मुद्रास्फीति को 2 प्रतिशत से 6 प्रतिशत के बीच रखने का आदेश दिया है।
- मार्च में खुदरा महंगाई दर 6.95 फीसदी थी।
खाद्य महंगाई का हाल
खाद्य मुद्रास्फीति (फूड इन्फ्लेशन), जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) बास्केट का लगभग आधा हिस्सा है, अप्रैल में कई महीनों के उच्च स्तर पर पहुंच गई और ग्लोबल स्तर पर सब्जी और खाना पकाने के तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण ऊपर ही बनी रह सकती है। आरबीआई मुख्य रूप से अपने द्विमासिक नीति निर्णय पर पहुंचते समय खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़े पर विचार करता है।
बढ़ती महंगाई ने आरबीआई को चार साल में पहली बार अपनी रेपो दर में बढ़ोतरी करने के लिए मजबूर किया। इस महीने की शुरुआत में एक ऑफ-साइकिल बैठक में इसे 40 आधार अंकों (बीपीएस) से बढ़ाकर 4.40 प्रतिशत कर दिया। रेपो रेट वह दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को पैसा उधार देता है।
उधर, यू.एस. फेडरल रिजर्व ने भी अपनी ब्याज दर में 50 बीपीएस की वृद्धि की, जो 22 वर्षों में सबसे अधिक है।
केंद्रीय बैंकों ने भी बढ़ती मुद्रास्फीति को कम करने के लिए भविष्य में दरों में बढ़ोतरी का संकेत दिया है।
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