महात्मा गांधी का पसंदीदा भजन 'एबाइड विद मी' की धुन इस बार गणतंत्र दिवस बीटिंग रिट्रीट समारोह में नहीं बजायी जाएगी। बीटिंग रिट्रीट समारोह 29 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर होता है। समारोह के अंत में ही 'एबाइड विद मी' को बजाया जाता था। इस साल समारोह से इसको हटा दिया गया है। 2020 में भी इसको हटा दिया गया था, लेकिन तब इस पर इतना हंगामा खड़ा हुआ था कि बाद में यानी 2021 में बहाल कर दिया गया था।
लेकिन अब बीटिंग रिट्रीट समारोह में बजाई जाने वाली 26 धुनों की आधिकारिक सूची में इस बार 'एबाइड विद मी' का ज़िक्र नहीं है। इस भजन को 1950 से समारोह के दौरान 2020 को छोड़कर हर साल बजाया जाता रता था। तो सवाल है कि इसे हटाया क्यों गया? इसका ज़िक्र तो सरकार की ओर से नहीं किया गया है, लेकिन किन परिस्थितियों में ऐसा किया गया है उससे इसके कुछ संकेत ज़रूर मिल सकते हैं।
गणतंत्र दिवस क़रीब सप्ताह भर चलने वाला उत्सव है। यह पहले 24 जनवरी को शुरू होता था, लेकिन इस साल से 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर ही शुरू हो जाएगा। इस साल देश बोस की 125वीं जयंती मना रहा है। गणतंत्र दिवस के उत्सव का समापन 29 जनवरी को बीटिंग रिट्रीट के साथ होता है।
बीटिंग रिट्रीट समारोह में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के बैंड तीन धुन बजाएंगे, इसके बाद वायु सेना बैंड द्वारा चार धुनें बजाई जाएंगी।
इस बीटिंग रिट्रीट समारोह से हेनरी फ्रांसिस लाइट के भजन 'एबाइड विद मी' की धुन को हटा दिया गया है। लाइट ने 1847 में अपने अंतिम दिनों में इसे लिखा था। यह भजन महात्मा गांधी का बेहद पसंदीदा था।
यह ख़बर तब आई है जब एक दिन पहले ही सरकार ने इंडिया गेट की अमर जवान ज्योति की अग्नि को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर बनाए गए अमर जवान ज्योति से विलय कर दिया है और इस पर विवाद हो रहा है।
कुछ मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से ख़बर है कि सरकार मानती है कि एक तो इंडिया गेट 'औपनिवेशिक इतिहास का प्रतीक' है और वहाँ 1971 में शहीद हुए सैनिकों के नाम भी अंकित नहीं हैं। हालाँकि, ऐसा आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन सरकार समर्थक और उसके आलोचकों के बीच भी 'औपनिवेशिक इतिहास का प्रतीक' को लेकर बहस छिड़ी है।
बता दें कि इंडिया गेट पहले अखिल भारतीय युद्ध स्मारक के नाम से जाना जाता था। इसे 1931 में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था। इसे ब्रिटिश भारतीय सेना के लगभग 90,000 भारतीय सैनिकों के स्मारक के रूप में बनाया गया था, जो तब तक कई युद्धों और अभियानों में मारे गए थे।
स्मारक पर 13,000 से अधिक शहीद सैनिकों के नामों का उल्लेख किया गया है। चूँकि यह युद्धों में मारे गए भारतीय सैनिकों के लिए एक स्मारक था, इसलिए इसके तहत अमर जवान ज्योति की स्थापना 1972 में सरकार द्वारा की गई थी।
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