पांचों राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अभी जन सभाओं और रैलियों पर रोक है। राजनीतिक दलों को उम्मीद है कि अब यह रोक ख़त्म हो जाएगी, इसलिए कई बड़े नेताओं के बड़े कार्यक्रम तय भी कर लिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में अकेले बहुजन समाज पार्टी ही ऐसा राजनीतिक दल है जिसने अभी तक कोई बड़ा कार्यक्रम या रैली का आयोजन तय नही किया।
मायावती क्या इस बार बनेंगी किंग मेकर?
- विश्लेषण
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- 22 Jan, 2022

दलित वोट बैंक क़रीब 20 फ़ीसदी है, लेकिन एक ताक़तवर पार्टी होने के लिए भी बीएसपी को कम से कम 25 फ़ीसदी वोटों की ज़रूरत पड़ेगी, तभी उनका यह नारा काम आ पाएगा कि ‘जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी’।
बीएसपी नेता मायावती सोशल मीडिया के माध्यम से ही अपनी बात कह रही हैं और उनके कार्यकर्ता डोर टू डोर मीटिंग्स कर रहे हैं। बहुत से राजनीतिक जानकार मायावती की इस चुप्पी को कभी बीजेपी के साथ गोपनीय गठजोड़ क़ा नाम दे रहे हैं तो कभी बीएसपी का राजनीति के हाशिये पर जाना तय मान रहे हैं। मेरे मित्र और दलित चिंतक विचारक प्रोफेसर बद्नी नारायण कहते हैं, “अगर आप मायावती को इस चुप्पी के आधार पर मौजूदा राजनीति में नज़रअंदाज़ करने की ग़लती कर रहे हैं तो यह आपकी बड़ी भूल होगी। मायावती ना तो चुप हैं और ना ही निष्क्रिय, वो और उनकी पार्टी लगातार अपने वोटर से संपर्क में हैं। कभी भाईचारा सम्मेलन के माध्यम से तो कहीं डोर टू डोर कैंपेन से और सोशल मीडिया पर भी उनका लगातार संपर्क है, साथ ही यह भी याद रखिए कि उनका वोट बैंक उनके साथ जुड़ा हुआ है।”