हरिद्वार 'धर्म संसद' में जैसा जहर उगला गया, वैसा ही रायपुर 'धर्म संसद' में भी हुआ था लेकिन एक संत ने मंच से ही नफरतियों और कट्टरपंथियों को मुंहतोड़ जवाब दे दिया। आपत्तिजनक भाषण देने वाले नफरती 'संत' को भी और उस भीड़ को भी जो तालियाँ बजा रही थी। उन्होंने न सिर्फ़ आपत्तिजनक भाषण की आलोचना की, बल्कि उन्होंने उस धर्म संसद से खुद को अलग कर लिया। अब उस संत की जमकर तारीफ हो रही है। कहा जा रहा है कि ऐसे होते हैं साधु-संत। हरिद्वार 'धर्म संसद' से तुलना करते हुए कहा तो यह भी जा रहा है कि काश रायपुर 'धर्म संसद' की तरह हरिद्वार में भी किसी साधु-संत ने ऐसा मुखर प्रतिरोध किया होता!