हरिद्वार 'धर्म संसद' में जैसा जहर उगला गया, वैसा ही रायपुर 'धर्म संसद' में भी हुआ था लेकिन एक संत ने मंच से ही नफरतियों और कट्टरपंथियों को मुंहतोड़ जवाब दे दिया। आपत्तिजनक भाषण देने वाले नफरती 'संत' को भी और उस भीड़ को भी जो तालियाँ बजा रही थी। उन्होंने न सिर्फ़ आपत्तिजनक भाषण की आलोचना की, बल्कि उन्होंने उस धर्म संसद से खुद को अलग कर लिया। अब उस संत की जमकर तारीफ हो रही है। कहा जा रहा है कि ऐसे होते हैं साधु-संत। हरिद्वार 'धर्म संसद' से तुलना करते हुए कहा तो यह भी जा रहा है कि काश रायपुर 'धर्म संसद' की तरह हरिद्वार में भी किसी साधु-संत ने ऐसा मुखर प्रतिरोध किया होता!
रायपुर धर्म संसद में विरोध करने वाले उस संत की पहचान दूधाधारी मठ के महंत संत रामसुन्दर दास के रूप में बताई जा रही है। धर्म संसद में दिए गए उनके वक्तव्य वाले वीडियो को सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है।
उस वीडियो में उस संत को यह कहते सुना जा सकता है, ''मैं आप सबसे पूछना चाहता हूँ इस बात को कि इस धर्म संसद से, इस मंच से जो बात कहकर यहाँ से चले गए, अब आप बताइए उस समय आपने ख़ूब ताली बजाई थी। क्या महात्मा गांधी सही में गद्दार थे? क्या महात्मा गांधी.... थे? टीवी का रिकॉर्ड देखिए, यही शब्द का उच्चारण किया गया यहां से। और ताली ख़ूब बजी। सन 1947 का वह घटना याद कीजिए। जिस परिस्थितिवश भारत स्वतंत्र हुआ... उस महात्मा गांधी ने क्या कुछ नहीं किया जिसे राष्ट्रपिता की उपाधि से नवाजा गया। अब उनके विषय में इस धर्म संसद से ऐसी बात? ये हमारा सनातन धर्म नहीं हो सकता। मैं बहुत क्षमा चाहता हूँ आप सबसे। आप लोगों को भले ही बुरा लगा हो, लेकिन इस धर्म संसद से मैं खुद को अलग करता हूँ, पृथक करता हूँ। धन्यवाद।'' यह कहकर मंच से संत चले जाते हैं। और इसी वक़्त उनके भाषण पर भी कुछ लोग तालियाँ बजाते हैं।
उनका यह वक्तव्य पहले एक 'साधु' द्वारा दिए गए आपत्तिजनक भाषण पर आया। संत रामसुन्दर दास से पहले भाषण देने आए वह 'साधु' महाराष्ट्र के एक धार्मिक नेता संत कालीचरण थे। उन्होंने कथित तौर पर गांधीजी को गालियाँ दीं और नाथुराम गोडसे के कृत्य को सही क़रार दिय। अब तो पुलिस ने भी इस घटना की पुष्टि की है, संत कालीचरण के ख़िलाफ़ आईपीसी की धारा 505(2) और 294 के तहत एफ़आईआर दर्ज की है।
संत रामसुन्दर दास द्वारा रायपुर धर्म-संसद के आयोजन से अलग हटने की सोशल मीडिया पर लोग तारीफ़ कर रहे हैं। रिटायर्ड आईएएस सूर्य प्रताप सिंह ने ट्वीट किया, "ये है संत का धर्म! इससे पूर्व एक मूढ़ भगवाधारी ने महात्मा गांधी को अभद्र गालियां दीं, नाथूराम गोडसे द्वारा की गई हत्या को सही बताया। इससे क्षुब्ध हो कर महंत रामसुंदर दास ने ख़ुद को उस 'अधर्म' संसद से अलग कर लिया। नमन है, ऐसे संत को।।"
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विनोद कापड़ी ने ट्वीट किया, 'धर्म ये होता है। बापू को गाली देने पर महंत रामसुंदर दास ने ख़ुद को गाली-गलौज वाली अधर्म संसद से अलग किया।'
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने ट्वीट किया, 'ऐसे साहसी साधु को साधुवाद, जिन्होंने रायपुर धर्म-संसद में गांधीजी को गाली देने का प्रतिकार करते हुए आयोजन को ही त्याग दिया। जबकि वे आयोजन के मुख्य संरक्षक थे। काश हरिद्वार में भी किसी साधु-महंत ने ऐसा मुखर प्रतिरोध ज़ाहिर किया होता।'
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