भारत सरकार भले ही कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए क्लोरोक्विन लेने की अपनी सिफ़ारिश पर टिकी हुई हो, मशहूर पत्रिका ‘लान्सेट’ ने इस पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
स्वास्थ्य क्षेत्र में दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित पत्रिका समझे जाने वाली ‘लान्सेट’ ने भारत में किए अपने एक शोध के आधार पर छपी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना पीड़ित रोगी यदि हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन या क्लोरोक्विन दवा लें तो उनके हृदय की गति असामान्य होने और हृदय गति रुकने से मौत होने की आशंका ज़्यादा है।
'न लें क्लोरोक्विन'
इसने कहा है कि मलेरिया के इस्तेमाल में काम आने वाली यह दवा क्लिनिकल ट्रायल के अलावा किसी कोरोना संक्रमित को किसी हाल में नहीं लेनी चाहिए। जब किसी दवा के प्रभाव की जाँच करने के लिए किसी मनुष्य को वह दवा दी जाती है, उसे क्लिनिकल ट्रायल कहते हैं।ज़्यूरिख़ विश्वविद्यालय के हार्ट सेंटर के निदेशक डॉक्टर फ्रैंक रसित्ज़का ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन या क्लोरोक्विन के साथ एज़िथ्रोमाइसिन या क्लैरिथ्रोमाइसिन जैसे एंटीबायोटिक दवा लेने से कोविड-19 के रोगियों कोई फ़ायदा नहीं होता है। उन्होंने कहा,
“
‘यह अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन है। कोविड-19 के रोगियों को यह दवा देने का नुक़सान साफ़ दिखता है और मैं इससे बेहद चिंतित हूँ। यह मलेरिया के इलाज के लिए काफी हद तक सुरक्षित है। पर कोविड-19 के इलाज़ में इससे कोई फ़ायदा नहीं है।’
डॉक्टर फ्रैंक रसित्ज़का, निदेशक, हार्ट सेंटर, ज़्यूरिख़ विश्वविद्यालय
उन्होंने इसके आगे कहा, हमने पूरी दुनिया में इस पर अध्ययन किया है और यह मानने की कोई वजह नहीं है कि भारत के रोगियों पर बेहतर असर होगा।
भारत की एडवायज़री
शुक्रवार को भारत ने एक बार फिर कोरोना रोकथाम के लिए क्लोरोक्विन के इस्तेमाल की सिफ़ारिश को दुहराया। इसने कुछ मामलों में इसके साथ ही एज़िथ्रोमाइसिन लेने की बात भी कही। सरकार की ओर से जारी एडवायज़री में कहा गया, ‘साझा निगरानी समूह ने यह सिफ़ारिश की है कि वे सभी स्वास्थ्य कर्मी जिनमें कोरोना संक्रमण के लक्षण बाहर से नहीं दिख रहे हैं और वे कोरोना की रोकथाम और इससे प्रभावित लोगों के इलाज में लगे हुए हैं, वे हाइड्रॉक्सिक्लिक्विन दवा लें।’
चेतावनी
इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि इस दवा का इस्तेमाल रेटिनोपैथी, हाइपरसेंसिटिविटी, हृदय रोग, ग्लूकोज 6 फ़ॉस्फेट की कमी वाले लोग न करें। इसके अलावा गर्भवती महिलाओं और दूध पिलाती माताओं को भी इसका प्रयोग नहीं करने को कहा गया है। लान्सेट ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘कई देशों ने कोरोना के रोगियों को हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्विन या क्लोरोक्विन का अकेले या किसी दूसरी दवा के साथ मिला कर देने की बात कही है।’
क्या है रिपोर्ट में?
रिपोर्ट में इसके आगे कहा गया है कि इसके पीछे वजह यह है कि छोटे स्तर पर किए गए प्रयोगों में यह पाया गया कि सार्स-को-वी-टू वायरस से हुए संक्रमण के इलाज में इससे लाभ हुआ है। लेकिन छोटे स्तर पर किए गए ये शोध बड़े नतीजे की ओर संकेत नही करते।
डॉक्टर फ्रैंक रसित्ज़का ने इसके आगे कहा, ‘अपने अध्ययन से हम अब अच्छी तरह समझ चुके हैं कि हाईड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के इस्तेमाल से कोरोना के इलाज में फ़ायदा बहुत ही कम है।’
'हो सकती है मौत'
इस अध्ययन की प्रमुख और बॉस्टन के वीमन्स हॉस्पीटल सेंटर फ़ॉर एडवांस्ड हार्ट डिजीज़ के ब्रिगम वूमन्स हॉस्पीटल की कार्यकारी निदेशक डॉक्टर मनदीप आर. मेहरा ने कहा, ‘यह बड़े पैमाने पर किया गया पहला शोध है जिससे यह पता चलता है कि क्लोकोरोक्विन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन के प्रयोग से कोरोना के इलाज में कोई फ़ायदा नहीं होता है। हमारे अध्ययन से पता चला है कि इसके प्रयोग से हृदय रोगियों की मौत हो सकती है।’
ट्रंप हैं क्लोरोक्विन के फैन
बता दें कि कोरोना इलाज के लिए इस दवा के प्रयोग के बहुत बड़े समर्थक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप है। उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ख़ुद फ़ोन कर इस दवा की माँग की थी। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सार्वजनिक तौर पर भारत को धमकी दी कि यदि उसने क्लोरोक्विन की आपूर्ति नहीं की तो वह भारत के ख़िलाफ़ बदले की कार्रवाई करेंगे।
उस समय तक भारत ने इस दवा के निर्यात पर रोक लगा दी थी। लेकिन ट्रंप की इस धमकी के कुछ घंटे के अंदर ही इसके निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया। भारत ने अमेरिका को 2.90 करोड़ गोलियाँ दीं।
अपनी राय बतायें