सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी में 4 किसानों सहित 8 लोगों की मौत के मामले में शुक्रवार को यूपी सरकार को आईना दिखा दिया। सीजेआई एनवी रमना ने यूपी सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे से कहा कि इस मामले में सीबीआई जांच कोई हल नहीं है।
शीर्ष अदालत ने लखीमपुर खीरी की घटना को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया था कि इस मामले की जांच केंद्रीय एजेंसी को दे दी जाए।
इस पर अदालत ने हरीश साल्वे से पूछा कि क्या यूपी सरकार की ओर से ऐसा कोई अनुरोध किया गया है कि इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया जाए। साल्वे ने इसके जवाब में कहा, “राज्य सरकार ने ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया है और सब कुछ अदालत के हाथ में है। अगर आप जांच से संतुष्ट नहीं हैं तो इस मामले को सीबीआई को सौंप दीजिए।”
इसके बाद सीजेआई ने कहा, “मिस्टर साल्वे, हमें उम्मीद है कि राज्य सरकार ज़रूरी क़दम उठाएगी। यह संवेदनशील मुद्दा है, हम इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते लेकिन सीबीआई जांच कोई हल नहीं है।”
हरीश साल्वे के इस मामले को सीबीआई को सौंप देने की बात कहने के बाद भी शीर्ष अदालत ने इसे लेकर अनिच्छा जताई तो इसका सीधा मतलब यही हो सकता है कि शायद अदालत के मन में यह शंका हो कि सीबीआई इस मामले में निष्पक्ष जांच नहीं कर पाएगी।
इसके पीछे भी बड़ी वजह यह है कि मामले में मुख्य अभियुक्त केंद्रीय गृह राज्य मंत्री का बेटा है और इतने अहम विभाग में मंत्री के अपने पद पर बने रहने के दौरान घटना की जांच होगी तो क्या मंत्री पुत्र को इसका फ़ायदा नहीं मिलेगा। और ऐसी स्थिति में किसानों को इंसाफ़ मिलना दूर की कौड़ी हो जाएगा।
इसलिए विपक्ष भी लगातार इस बात को कह रहा है कि इस मामले में पीड़ित परिवारों को इंसाफ़ तभी मिल पाएगा जब केंद्रीय मंत्री को पद से हटाया जाए।
शुक्रवार को शीर्ष अदालत द्वारा इस मामले में की गई टिप्पणियों से साफ है कि न्यायपालिका यूपी सरकार के काम के रवैये से नाराज़ है और उसने साफ कहा है कि अभियुक्त को गिरफ़्तार किया जाना चाहिए। अदालत ने गुरूवार को भी यूपी सरकार से पूछा था कि उसने अब तक इस मामले में कितने लोगों को गिरफ़्तार किया है।
सुनवाई के दौरान सीजेआई एनवी रमना ने हरीश साल्वे को आड़े हाथों लेते हुए पूछा, “जब 302 की धारा लगी हो तो अभियुक्त के साथ कैसा बर्ताव किया जाना चाहिए। अभियुक्त के साथ वैसा ही बर्ताव कीजिए जैसा हम बाक़ी मामलों में दूसरों के साथ करते हैं। इस तरह नहीं कि हमने नोटिस भेजा है कि कृपया आइए।”
सीजेआई ने साल्वे से यह भी कहा, “हमें नहीं लगता कि जो अफ़सर इस मामले में काम कर रहे हैं, उनके रहते जांच हो पाएगी। हमें लगता है कि सिर्फ़ बातें हो रही हैं और कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।”
आख़िर बेचारगी क्यों?
लेकिन यूपी सरकार और उत्तर प्रदेश की पुलिस अभी भी इस मामले में बेचारी सी दिखती है। वह एक ऐसे शख़्स जिस पर 302 का मुक़दमा दर्ज हुआ हो, जिस घटना को लेकर देश का राजनीतिक तापमान चढ़ा हुआ हो, उस मामले में भी अभियुक्त को समन भेजकर पूछताछ में शामिल होने की गुहार लगाती दिख रही है।
जब हालात ऐसे हों, ऐसे में निश्चित रूप से शीर्ष अदालत ने ठीक ही कहा है कि सीबीआई जांच इस मामले का कोई हल नहीं है।
अपनी राय बतायें