राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा है कि केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू का जजों और सुप्रीम कोर्ट पर बयान देना पूरी तरह गलत है। सिब्बल ने अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा कि सरकार हायर जूडिशरी को 'निशाना' बना रही है क्योंकि वह बाकी सब पर कब्जा करने के बाद आजादी के आखिरी बचे हुए गढ़ पर कब्जा करना चाहती है।
कॉलिजियम सिस्टम की आलोचना
बताना होगा कि केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कुछ दिन पहले लोकसभा में कॉलिजियम सिस्टम की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि यह चिंताजनक है कि देश भर में पांच करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं और इसकी असली वजह न्यायाधीशों के पदों का रिक्त होना है। कॉलिजियम प्रणाली को लेकर केंद्र सरकार खासी मुखर है।
किरण रिजिजू ने इससे पहले भी कॉलिजियम सिस्टम को लेकर सवाल उठाया था और कहा था कि जजों को नियुक्त करने वाली यह व्यवस्था पारदर्शी नहीं है और जवाबदेह भी नहीं है। उन्होंने कहा था कि दुनिया में कहीं भी जज ही जजों की नियुक्ति नहीं करते हैं लेकिन भारत में ऐसा होता है। कानून मंत्री ने कहा था कि इस काम में जजों का बहुत सारा वक्त भी लगता है और इसमें राजनीति भी शामिल होती है।
सिब्बल ने कहा, “कानून मंत्री का कहना था कि जजों के पास बहुत सारी छुट्टियां होती हैं, उनका ऐसा कहना गलत था। कानून मंत्री पेशे से वकील नहीं हैं और शायद उन्हें अदालतों खासकर सुप्रीम कोर्ट के कामकाज के बारे में जानकारी नहीं है।”
सिब्बल ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के जज अदालत में कई घंटों तक काम करते हैं। अदालत से निकलकर घर जाने पर उन्हें हर दिन 60 से 70 फाइलें पढ़नी होती हैं और ऐसा करने में कम से कम 5 से 6 घंटे लगते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जज एक ही अवस्था में 10 घंटे तक बैठे रहते हैं, लगातार बैठे रहते हैं, साल दर साल बैठे रहते हैं। हर दिन के कामकाज के अतिरिक्त उन्हें अपने द्वारा पास किए गए आदेशों को भी पढ़ना होता है। न्यायालय में सुने जा चुके मामलों के ड्राफ्ट तैयार करने होते हैं। 2 से 3 घंटे तक जज अपने फैसले लिखते हैं और ऐसा हफ्ते भर चलता है।”
यूपीए की सरकार के दौरान कानून मंत्रालय संभाल चुके सिब्बल ने कहा कि इसके अलावा जजों को प्रशासनिक मामलों को भी देखना होता है और ऐसे में मुझे हैरानी होती है कि कानून मंत्री को इस दिमागी रूप से बेहद तनावपूर्ण दिनचर्या के बारे में पता नहीं है।
‘वर्किंग वैकेशन’
कपिल सिब्बल ने आगे कहा कि इसके अलावा जज को छुट्टियों से पहले उन्होंने जिन मामलों की सुनवाई की थी, अदालत के खुलने से पहले उनके फैसलों की ड्राफ्टिंग करनी होती है। शायद कानून मंत्री इस बात को नहीं जानते कि यह ‘वर्किंग वैकेशन’ होती है और इस दौरान जज उन मामलों के बारे में सोचते हैं जिन मामलों में उन्हें अदालत खुलने के बाद सुनवाई करनी होती है।
वकालत का अच्छा-खासा अनुभव रखने वाले कपिल सिब्बल ने कहा कि जज काम के लिए अपने स्वास्थ्य से समझौता करते हैं और यह निश्चित रूप से एक बड़ा त्याग है। और अगर कोई भी मंत्री अदालत के कामकाज पर टिप्पणी करता है तो यह कहना होगा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती कि जज किस तरह अपने संवैधानिक जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं।
क्या है एनजेएसी?
मोदी सरकार ने पहले कार्यकाल में कॉलिजियम को एनजेएसी से रिप्लेस करने की कोशिश की थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने 2015 में इस प्रस्ताव को 4-1 से ठुकरा दिया था। तब कहा गया था कि एनजेएसी के जरिए सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में ख़ुद नियुक्तियां करना चाहती थी और इसके बाद सरकार और न्यायपालिका में टकराव बढ़ गया था।
हालांकि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा था कि कॉलिजियम को लेकर हो रही आलोचना को सकारात्मक ढंग से लेना चाहिए और इसमें सुधार के प्रयास किए जाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि कॉलिजियम सिस्टम इस देश का कानून है। केंद्र को उसका पालन करना ही होगा। कोर्ट ने कहा था कि हायर जूडिशरी में जजों की नियुक्ति में सरकार जानबूझकर देरी नहीं करे।
कॉलिजियम सिस्टम को लेकर हैं चिंताएं
कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार कई बार कॉलिजियम द्वारा की गई सिफारिशों को स्वीकार नहीं करती है और जजों के नामों की फाइल को वापस लौटा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि कॉलिजियम सिस्टम बहुत अच्छा है और उनकी भी इसे लेकर कुछ चिंताएं हैं लेकिन सरकार जिस तरह अदालती प्रक्रिया में दखल देने की कोशिश कर रही है, उससे वह ज्यादा चिंतित हैं।
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