क्या राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद गिरजाघरों की मरम्मत के लिए चंदा देंगे? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि अखिल भारतीय ईसाई परिषद के महासचिव जॉन दयाल ने कंधमाल में तोड़फोड़ का शिकार हुए गिरजाघरों की मरम्मत के लिए चल रहे अभियान में आर्थिक सहायता के रूप में चंदा माँगा है।
जॉन दयाल का फ़ेसबुक पोस्ट
जॉन दयाल ने अपने फ़ेसबुक पेज पर एक पोस्ट डाला है, जो इस प्रकार है :
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"मैं महामहिम से निजी तौर पर प्रार्थना कर रहा हूँ कि वे 300 छोटे-बड़े गिरजाघरों की मरम्मत की मेरी कोशिश में चंदा दें। कंधमाल में 2007-2008 में संघियों की अगुआई में इन गिरजाघरों को ढहा दिया गया था या जला दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि धार्मिक संरचनाएं बनवाना या उनकी मरम्मत करवाना सरकार का काम नहीं है।"
जॉन दयाल, महासचिव, अखिल भारतीय ईसाई परिषद
बता दें कि राष्ट्रपति ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए 5,00,100 रुपए का चंदा दिया है। उन्होंने श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के नाम यह चेक दिया है।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने इसकी रशीद भी राष्ट्रपति को सौंपी।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने इसकी रशीद भी राष्ट्रपति को सौंपी।
चंदे के लिए जॉन दयाल की इस गुजारिश पर राष्ट्रपति भवन ने अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है।
ज़बरन चंदा वसूली?
बता दें कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का अभियान चल रहा है और इस पर 100 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इसके लिए विश्व हिन्दू परिषद और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने पूरे देश में अभियान चलाने का फ़ैसला किया है।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने एक लाख रुपए का चंदा देते हुए कहा है कि कुछ जगहों पर लोगों को चंदे के लिए डराया धमकाया जा रहा है।
याद दिला दें कि मध्य प्रदेश में विश्व हिन्दू परिषद ने पिछले दिनों कुछ शहरों के मुसलिम-बहुल इलाक़ों में चंदा उगाहने का कार्यक्रम रखा। उन्होंने इस दौरान मसजिदों के सामने 'जय श्री राम' के नारे लगाए, उसके बाद मसजिद से कथित तौर पर पथराव किया गया और सांप्रदायिक तनाव बढ़ा।
इस तरह की खबरें कई जगहों से आ रही हैं।
जॉन दयाल ने जिन गिरजाघरों की मरम्मत के लिए चंदा मांगा है, वे ओडिशा के कंधमाल ज़िले में स्थित हैं।
क्या हुआ था ओडिशा में?
साल 2007 में ईसाइयों के सबसे बड़े उत्सव क्रिसमस के एक दिन पहले यानी 24 दिसंबर को मामूली झड़प के बाद ईसाई बस्तियों और गिरजाघरों पर हमले किए गए। इसमें 19 गिरजाघरों को ढ़हा दिया गया और उनमें आग लगा दी गई। इसके अगले दिन यानी 25 दिसंबर, 2007, को क्रिसमस के दिन विश्व हिन्दू परिषद ने स्थानीय ईसाइयों को मिलने वाले आरक्षण के ख़िलाफ़ बंद रखा।
बता दें कि उस समय कंधमाल ज़िले में ईसाइयों की आबादी लगभग एक लाख थी, जिसमें से 60 प्रतिशत आदिवासियों से धर्म बदल कर ईसाई बने थे। ये लोग अनुसूचित जनजाति पाना समुदाय के थे और इसलिए इन्हें 'पाना ईसाई' कहा जाता है। विश्व हिन्दू परिषद का तर्क था कि ईसाई बनने के बाद उन्हें अनुसूचित जनजाति को मिलने वाला आरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
संघ था हिंसा के पीछे?
'पाना ईसाइयों' के ख़िलाफ़ 25 दिसंबर, 2007 को हुए बंद के दौरान फिर हिंसा हुई। लगभग 100 गिरजागरों या उनसे जुड़े संस्थानों मसलन स्कूल, हॉस्टल वगैरह पर हमले हुए, तोड़फोड़ की गई।
इसके लगभग एक साल बाद 23 अगस्त, 2008 को विश्व हिन्दू परिषद के स्थानीय नेता स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती का क्षत विक्षत शव बरामद हुआ। हालांकि बाद में एक माओवादी गुट ने इस हत्या की ज़िम्मेदारी ली, इस हत्याकांड के बाद तनाव बढ़ा। 25-28 अगस्त, 2008 को कंधमाल ज़िले में फिर हिंसा हुई। कथित तौर पर इसकी अगुआई बीजेपी विधायक मनोज प्रधान ने की।
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