जेएनयू में पाँच जनवरी को हिंसा से पहले जिस बायोमेट्रिक सिस्टम और सीसीटीवी में तोड़फोड़ के दावे जेएनयू प्रशासन ने किए थे, दरअसल वे झूठे थे। यह बात ख़ुद जेएनयू प्रशासन ने ही मानी है। इसने यह जानकारी तब दी जब आरटीआई से जवाब माँगा गया। यह जवाब विश्वविद्यालय के संचार और सूचना सेवा यानी सीआईएस ने दिया है। इसने जवाब में यह भी कहा है कि सीसीटीवी में तोड़फोड़ नहीं होने के बावजूद हिंसा के दिन जेएनयू मेन गेट पर दोपहर से रात 11 बजे तक की सीसीटीवी फ़ुटेज मौजूद नहीं है। नेशनल कैंपेन फ़ॉर पीपल्स राइट के सदस्य सौरव दास ने आरटीआई से जानकारी माँगी थी।
विश्वविद्यालय के सीआईएस ने जो जानकारी दी है वह पाँच जनवरी को हुई हिंसा और इससे पहले तीन और चार जनवरी को कथित तोड़फोड़ के बारे में दर्ज की गई एफ़आईआर और बयानों में अंतर्विरोध और संदेह को दर्शाती है। सीआईएस की रिपोर्ट से पहले जान लें कि घटनाक्रम कैसे चला था।
'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, एक एफ़आईआर में दावा किया गया कि चार जनवरी को दोपहर क़रीब एक बजे प्रदर्शनकारियों का एक समूह पीछे वाले शीशे का दरवाज़ा तोड़ते हुए सीआईएस कार्यालय में घुस गया। रिपोर्ट के अनुसार, 'वे आपराधिक इरादे से सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाने के लिए अवैध तरीक़े से विश्वविद्यालय की संपत्ति में घुसे। उन्होंने सर्वर को नुक़सान पहुँचाया व इसे बेकार कर दिया, फ़ाइबर ऑप्टिक केबल्स, बिजली की आपूर्ति को काफ़ी ज़्यादा क्षतिग्रस्त कर दिया और कमरे के अंदर बायोमेट्रिक सिस्टम को तोड़ दिया।' एफ़आईआर, में जेएनयूएसयू अध्यक्ष आइशी घोष सहित कई छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की माँग की गई।
'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, पाँच जनवरी को दर्ज की गई दूसरी एफ़आईआर में कहा गया है कि तीन जनवरी को छात्रों द्वारा तोड़फोड़ से बायोमेट्रिक अटेंडेंस और सीसीटीवी सर्विलांस सिस्टम सहित कई गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हुईं।
एक बयान में जेएनयू के कुलपति एम. जगदीश कुमार ने दावा किया था कि पाँच जनवरी को हिंसा की जड़ तीन और चार जनवरी को तोड़फोड़ में थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि बायोमेट्रिक सिस्टम के टूटे-फुटे होने के कारण विंटर सेमेस्टर रजिस्ट्रेशन प्रभावित हुआ।
आरटीआई से जवाब माँगा गया था कि 30 दिसंबर 2019 से लेकर 8 जनवरी 2020 तक सीआईएस ऑफ़िस में टूटे या क्षतिग्रस्त बायोमेट्रिक सिस्टम की कुल संख्या कितनी है। इसके जवाब में विश्वविद्यालय के सीआईएस ने कहा कि 'एक भी नहीं'।
तो हिंसा के दौरान की फ़ुटेज क्यों नहीं?
हालाँकि ऐसे नुक़सान नहीं होने के बावजूद जेएनयू के मेन गेट के सीसीटीवी का पूरा फ़ुटेज उपलब्ध नहीं है। 'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, इस सीसीटीवी के पाँच जनवरी की दोपहर 3 बजे से और रात 11 बजे की फ़ुटेज नहीं है जब छात्रों पर हमला किया गया था। साथ ही जवाब में यह भी जोड़ा गया है कि किसी भी सीसीटीवी कैमरे की फ़ुटेज को जेएनयू क्लाउड कम्प्यूटिंग प्लेटफ़ॉर्म पर लगातार अपलोड नहीं किया जाता है। इसका एक मतलब यह भी होता है कि हिंसा की घटना की सीसीटीवी फ़ुटेज नहीं हो।
आरटीआई से मिले जवाबों में भी कुछ अस्पष्टता है। जब आरटीआई में यह सवाल पूछा गया कि क्या सीसीटीवी कैमरे का सर्वर सीआईएस कार्यालय में है तो बताया गया कि यह सीआईएस कार्यालय में नहीं है, बल्कि यह डाटा सेंटर में है। हालाँकि आरटीआई के एक अन्य सवाल के जवाब में कहा गया है, 'सर्वर रूम की लोकेशन जेएनयू के एसबीटी बिल्डिंग में सीआईएस के हॉल नंबर 3 में है'। लेकिन यह साफ़ नहीं है कि सीआईएस कार्यालय में कथित तोड़फोड़ से ये सर्वर प्रभावित हुए थे या नहीं।
'3 और 4 जनवरी को बंद हुआ था सर्वर'
आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि इस दौरान जेएनयू की वेबसाइट सामान्य रूप से चलती रही क्योंकि यह वैकल्पिक बैकअप से चल रही थी। हालाँकि, सीसीटीवी के लिए वैकल्पिक बैकअप की व्यवस्था है या नहीं, यह भी साफ़ नहीं है। सीआईएस ने कहा कि उस हफ़्ते सिर्फ़ दो बार ही ऐसा हुआ कि मुख्य सर्वर बंद हुआ- एक बार 3 जनवरी को डेढ़ बजे और अगले दिन यानी 4 जनवरी को भी उसी समय के दौरान। यह इसलिए बंद हुआ क्योंकि बिजली की सप्लाई में दिक्कत थी।
आरटीआई के सवाल के जवाब में सीआईएस ने सुरक्षा कारणों और चिंताओं का हवाला देते हुए सभी सीसीटीवी फ़ुटेज की लोकेशन की जानकारी देने से इनकार कर दिया। लेकिन इसने ज़रूर कहा कि नॉर्थ यानी मेन गेट पर चार सीसीटीवी कैमरे हैं।
आरटीआई के जवाब में जेएनयू के सीआईएस द्वारा दी गई जानकारी के बाद जेएनयू प्रशासन पर और कई सवाल खड़े होते हैं।
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