सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई को 'पिंजरे में बंद तोता' बताए जाने पर देश में अब अलग ही बहस छिड़ सकती है। इसकी चेतावनी खुद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ही दी है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद उपराष्ट्रपति ने कहा है कि 'हानिकारक टिप्पणियाँ हमारी संस्थाओं को हतोत्साहित कर सकती हैं। ये एक राजनीतिक बहस को हवा दे सकती हैं और एक नैरेटिव को गढ़ सकती हैं।'
हालाँकि, उपराष्ट्रपति की टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई के बारे में की गई टिप्पणी का सीधे-सीधे ज़िक्र नहीं किया गया है, लेकिन माना जा रहा है कि उनकी यह टिप्पणी चुनाव आयोग, जाँच एजेंसियों पर आ रही टिप्पणियों के संदर्भ में हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा, 'हमें अपनी संस्थाओं के बारे में बेहद सचेत रहना होगा। वे मज़बूत हैं, वे कानून के शासन के तहत स्वतंत्र रूप से काम कर रही हैं और उनके लिए नियंत्रण और संतुलन हैं।'
All organs of state have one common objective: संविधान की मूल भावना सफल हो, आम आदमी को सब अधिकार मिलें, भारत फले और फूले।
— Vice-President of India (@VPIndia) September 15, 2024
They need to work in tandem and togetherness to nurture and blossom democratic values and further Constitutional ideals.
Let these sacred platforms not… pic.twitter.com/lBUMlVfWFK
वैसे, सुप्रीम कोर्ट ने 11 साल पहले यानी कांग्रेस के सरकार के दौरान सीबीआई को 'पिंजरे में बंद तोता' बताया था। अब फिर से इसी सुप्रीम कोर्ट ने उस 'तोते' की याद दिला दी। अदालत ने कह दिया कि सीबीआई को पिंजरे में बंद तोते की छवि से बाहर आना होगा और दिखाना होगा कि अब वह पिंजरे में बंद तोता नहीं रहा।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी तब की जब वह दिल्ली आबकारी नीति मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शुक्रवार को जमानत दे दी है। केजरीवाल को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'सीबीआई इस देश की प्रमुख जांच एजेंसी है, इसको न सिर्फ़ सबसे ऊपर होना चाहिए, बल्कि ऐसा दिखना भी चाहिए। इसने कहा, 'कुछ समय पहले इस अदालत ने सीबीआई को फटकार लगाई थी और इसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की थी, इसलिए अब ज़रूरी है कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोते की धारणा से बाहर निकले'।
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2013 को सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता कहा था। तब कोयला घोटाले से जुड़े मामले की सुनवाई हो रही थी। अदालत ने कहा था, 'सीबीआई वो तोता है जो पिंजरे में कैद है। इस तोते को आजाद करना जरूरी है। सीबीआई को एक तोते की तरह अपने मालिक की बातें नहीं दोहरानी चाहिए।'
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट की ताज़ा टिप्पणी के कुछ दिनों बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि राज्य के सभी अंगों को मिलकर काम करने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा, 'संस्थाएं कठिन परिस्थितियों में काम करती हैं और टिप्पणियां उन्हें हतोत्साहित कर सकती हैं, राजनीतिक बहस को जन्म दे सकती हैं और एक नैरेटिव गढ़ सकती हैं।'
उपराष्ट्रपति ने रविवार को मुंबई के एलफिंस्टन टेक्निकल हाई स्कूल और जूनियर कॉलेज में संविधान मंदिर के उद्घाटन समारोह में यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा,
“
राज्य के सभी अंगों- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका- का एक ही उद्देश्य है: संविधान की मूल भावना सफल हो, आम आदमी को सब अधिकार मिलें, भारत फले और फूले।
जगदीप धनखड़, उपराष्ट्रपति
संस्थाओं का ज़िक्र करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, 'उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूत करने, उन्हें आगे बढ़ाने तथा संवैधानिक आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने की ज़रूरत है। एक संस्था तभी अच्छी तरह से काम करती है जब वह कुछ सीमाओं के प्रति सचेत होती है। कुछ सीमाएं साफ़ होती हैं, कुछ सीमाएं बहुत सूक्ष्म होती हैं। इन पवित्र मंचों- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका- को राजनीतिक भड़काऊ बहस या आख्यान का ट्रिगर बिंदु नहीं बनना चाहिए जो चुनौतीपूर्ण और कठिन वातावरण में राष्ट्र की अच्छी सेवा करने वाली स्थापित संस्थाओं के लिए हानिकारक हो।'
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