कोरोना के खौफ़ के बीच वैक्सीन से लोगों की बड़ी उम्मीद बंधी है, लेकिन वैक्सीन को सुरक्षित रखने और लोगों तक पहुँचाने की व्यवस्था कैसी होगी? क्या इसकी तैयारी सरकार ने की है और यदि की है तो यह तैयारी कैसी है? ये सवाल इसलिए कि वैक्सीन को सुरक्षित रखने के लिए फ़्रीज़िंग की ज़रूरत होगी। यह फ़्रीजिंग -80 डिग्री सेल्सियस तक होनी चाहिए। यानी ऐसी वैक्सीन को सामान्य फ़्रीज़ में रखा नहीं जा सकता है तो देश भर में दूर-दराज तक पहुँचाना, स्टोर रखना और फिर इसे लोगों को टीका लगाना क्या बड़ी चुनौती नहीं होगी?
इस मामले में क्या व्यवस्था है, इस पर अभी तक आधिकारिक तौर पर तो कुछ नहीं कहा गया है। हालाँकि देश में इसके लिए पहले से तैयारी की जाए तो यह मुश्किल भी नहीं लगता है। लेकिन सवाल उठ सकता है कि जिस तरह से कोरोना संक्रमण की शुरुआत में अधिकतर देशों में तैयारी नहीं थी और अव्यवस्था फैली थी, कहीं वैसा हाल तो नहीं होगा? भारत सहित कई देशों के बारे में कहा गया था कि पहले से तैयारी नहीं होने के कारण इसका नुक़सान उठाना पड़ा। इसलिए सवाल तो उठता है कि कहीं इस मामले में भी तैयारी कमज़ोर तो नहीं रह जाएगी?
यह सवाल ख़ासकर मॉडर्ना और फाईज़र वैक्सीन के संदर्भ में ज़्यादा उठता है। रिपोर्टों में कहा गया है कि इन दोनों वैक्सीन को -20 से लेकर -80 डिग्री सेल्सियस यानी ज़ीरो से भी नीचे के तापमान पर रखना होगा। लेकिन ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन के संदर्भ में ऐसा नहीं है।
ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन को सामान्य रेफ़्रिजरेटर के तापमान पर भी सुरक्षित रखा जा सकता है। इसीलिए कहा जा रहा है कि भारत के लिए ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन ज़्यादा सही और दूर-दराज के क्षेत्रों में पहुँचाने के लिए आसान होगी।
ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन औसत रूप से 70 प्रतिशत प्रभावी रही है, लेकिन इसके डोज़ को नियंत्रित तरीक़े से देने पर 90 फ़ीसदी तक प्रभावी भी बतायी जा रही है। मॉडर्ना के आख़िरी चरण के ट्रायल के बाद शुरुआती रिपोर्ट में कहा गया है कि यह 94.5 फ़ीसदी प्रभावी है वहीं फाईजर ने कहा है कि इसकी वैक्सीन 95 फ़ीसदी प्रभावी है। हालाँकि, यहाँ सवाल वैक्सीन के प्रभावी होने से कहीं ज़्यादा दूर-दराज के क्षेत्रों में सुरक्षित और आसानी से पहुँचाने का भी है।
बहरहाल, देश की इतनी बड़ी आबादी के लिए सिर्फ़ ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन पर तो निर्भर रहा नहीं जा सकता है इसलिए मॉडर्ना और फ़ाईज़र जैसी वैक्सीन के लिए भी व्यवस्था रखे जाने की ज़रूरत होगी। ऐसी स्थिति में -20 से लेकर -80 डिग्री सेल्सियस की स्टोरेज की ज़रूरत आन पड़ सकती है।
डेयरी इंडस्ट्री की व्यवस्था से सीख
यहीं पर कोरोना वैक्सीन को लोगों तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी संभाल रहे अधिकारियों को डेयरी इंडस्ट्री से सीख मिल सकती है कि आसानी से कैसे इन वैक्सीन को लोगों तक पहुँचाया जाए। और यह सीख दूध, दही, मक्खन, आइसक्रीम जैसे उत्पादों की व्यवस्था से तो मिल ही सकती है, पशुओं को कृत्रिम गर्भाधान के लिए वीर्य को सुरक्षित रखने और दूर-दराज के क्षेत्रों तक ढोने से भी सबक़ मिल सकती है।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 8 करोड़ कृत्रिम गर्भाधान प्रतिवर्ष किए जाते हैं। ऐसी 56 जगहों से पशुओं के वीर्य को कृत्रिम गर्भाधान के लिए पैक किया जाता है। इन्हें -196 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है और इतने नीचे तापमान में ही इन्हें देश भर में दूर-दराज के क्षेत्रों में ले जाया जाता है।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार बीएआईएफ़ डेवलपमेंट रिसर्च फ़ाउंडेशन में ग्रुप वाइस प्रेसिडेंट (साइंटिफिक रिसर्च एंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट) अशोक पांडे बताते हैं, '... माइनस 195.79 डिग्री सेल्सियस हमारी कोल्ड चेन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। यह सुनिश्चित करता है कि किसान के घर में मादा जानवर के गर्भाधान के लिए इस्तेमाल किए जाने से कुछ सेकंड पहले तक इसे आवश्यक तापमान पर बनाए रखा जाए।'
पांडे कहते हैं कि अमेरिका और यूरोप से अलग जहाँ कारों में किसानों के घर पर कृत्रिम गर्भाधान के लिए वीर्य को ले जाया जाता है, भारत में यह दूर-दराज के इलाक़ों में दोपहिया वाहनों पर भी ले जाया जाता है।
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