अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए सीबीआई जाँच का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘...जाँच का परिणाम अभिनेता के पिता के लिए न्याय का एक उपाय होगा, जिसने अपना इकलौता बेटा खो दिया’।
स्वतंत्र जाँच एजेंसी कहलाने वाली सीबीआई सुशांत सिंह राजपूत के केस में आदेश आने के एक दिन के बाद से ही सक्रिय हो गयी और लगातार देश के प्रमुख चैनलों के हेडलाइन में पल-पल की ख़बरों के साथ बनी हुई है। लेकिन इसी सीबीआई से एक शहीद पुलिसवाले की पत्नी भी सवाल कर रही है कि उसे कब मिलेगा इंसाफ़? मामला साल 2016 का है, मथुरा के जवाहरबाग पार्क पर जबरन क़ब्ज़ा जमाये कथित अपराधियों से पार्क खाली कराने गयी पुलिस पर हमला कर दिया गया और उस हमले में तत्कालीन मथुरा एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी को जान गँवानी पड़ती है।
मार्च 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट जाँच का आदेश देता है लेकिन तीन साल गुज़र जाने के बाद भी आज तक सीबीआई नहीं बता पाई कि एसपी मुकुल द्विवेदी का क़ातिल कौन था?
हाईकोर्ट ने सीबीआई जाँच का आदेश देते हुए 2 महीने में जाँच पूरी करने को कहा था। ड्यूटी पर जान गँवा चुके मुकुल द्विवेदी की पत्नी ने अब सीबीआई के ‘नकारेपन’ के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है।
जवाहरबाग पार्क में हुआ क्या था?
घटना 2 जून 2016 के शाम पाँच बजे की थी। साल 2014 से मथुरा के सार्वजनिक पार्क जवाहर बाग़ पर ‘स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रह’ नाम के समूह के सशस्त्र सदस्यों ने क़ब्ज़ा कर रखा था, जो स्वयं को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का अनुयायी बताते थे और ‘स्वाधीन भारत विधिक सत्याग्रही’, ‘आज़ाद भारत विधिक विचारक क्रांति सत्याग्रही’, ‘स्वाधीन भारत सुभाष सेना’ आदि संगठनों से इनका संबंध बताया जाता था। इस संगठन का गठन धार्मिक नेता जय गुरुदेव की 2012 में मौत के बाद उनके अनुयायियों में से अलग हुए लोगों से हुआ था। जिसे रामवृक्ष यादव नाम का एक व्यक्ति चलाता था। पुलिस के मुताबिक़ रामवृक्ष यादव पर यूपी के मथुरा में ही क़रीब 2 दर्जन मामले दर्ज थे। यह संगठन अंग्रेज़ी हुकूमत से प्रभावित भारतीय राजनैतिक व्यवस्था को पूरी तरह से बदलने की माँग करता था, जैसे कि, राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के पदों को समाप्त करना आदि। दूसरी प्रमुख माँग थी भारतीय मुद्रा, रुपये, की जगह आज़ाद हिन्द बैंक मुद्रा चलाने की। इनका मानना था कि वर्तमान भारतीय मुद्रा रिज़र्व बैंक व सरकार के हाथों डॉलर की ग़ुलाम बन चुकी है। अनियंत्रित मुद्रा की क़ीमत डॉलर के मुक़ाबले ज़्यादा होगी व पेट्रोल-डीजल सस्ते दाम पर उपलब्ध हो सकेगा।
2 साल से सार्वजनिक पार्क पर क़ब्ज़ा जमाये हुए क़रीब 3000 लोगों को हटाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया। मथुरा एसपी सिटी और थाना फरह के थाना इंचार्ज 10-12 पुलिसकर्मियों को लेकर जवाहर बाग़ पार्क पहुँचते हैं। इसी बीच पार्क में क़ब्ज़ा जमाये हुए लोग पुलिस पर हमला कर देते हैं और एसपी और थाना इंचार्ज को गंभीर रूप से घायल कर देते हैं। बाद में दोनों की मौत हो जाती है। इसी घटनाक्रम के दौरान क़ब्ज़ा किए लोगों में से 28 की पुलिस गोली और भगदड़ में गिरने से मौत हो जाती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सौंपी जाँच सीबीआई को!
घटना के बाद कई जनहित याचिकाएँ इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल की जाती हैं। मृतक एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी की पत्नी अर्चना द्विवेदी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाती हैं। 2 मार्च 2017 को इलाहाबाद हाईकोर्ट सीबीआई को जाँच सौंपते हुए दो टीमों का गठन करने का आदेश देता है। पहली टीम का गठन 2 जून 2016 को जवाहर बाग़ में हुई घटना की विस्तृत जाँच के लिए किया गया, साथ ही एक दूसरे पर हमले से मरे लोगों की जाँच करने की ज़िम्मेदारी दी गयी। दूसरी टीम का गठन करने का आदेश हाईकोर्ट इसलिए देता है कि आख़िर किन परिस्थितियों में अपराधी रामवृक्ष यादव और हज़ारों लोगों ने एक सार्वजनिक पार्क पर क़ब्ज़ा कर लिया? दूसरी टीम को यह भी पता लगाना था कि 2 साल से राज्य सरकार ने अवैध क़ब्ज़े को खाली करवाने के लिये क़दम क्यों नहीं उठाये? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीबीआई को दो महीने में जाँच ख़त्म करके जाँच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया लेकिन सीबीआई केवल हाईकोर्ट से जाँच पूरा करने के लिए समय माँगती रही।
तीन साल बाद भी हाथ पर हाथ धरे बैठी सीबीआई
जाँच के आदेश से 40 महीने बीत जाने के बाद भी जब सीबीआई ड्यूटी पर जान देने वाले एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और थानाध्यक्ष संतोष यादव की मौत और पूरे घटनाक्रम की जाँच में कोई क़दम न उठा पाई तो पत्नी अर्चना द्विवेदी ने हताश होकर जुलाई 2020 को सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
अर्चना द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से माँग की है कि वह सीबीआई को जाँच जल्द से जल्द ख़त्म करने का आदेश दे जिससे कि उन्हें और उनके परिवार को पता चल पाये कि ड्यूटी पर जान देने वाले उनके पति एसपी सिटी मथुरा के क़ातिल कौन हैं?
मुझे पति के क़ातिल को जानना है: अर्चना द्विवेदी
जवाहर बाग़ पार्क में हुई घटना के बाद से मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव के बारे में पुख्ता तौर पर कोई सूचना नहीं है। कई रिपोर्टें रामवृक्ष के मरने की बात कहती हैं तो कुछ उसके ज़िंदा होने की भी। अर्चना द्विवेदी कहती हैं,
‘तीन साल बीत जाने के बाद भी आज तक मुझे नहीं पता चला कि मेरे पति का क़ातिल कौन है? मुझे आज तक नहीं पता चला कि मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव ज़िंदा भी है कि नहीं। सीबीआई जाँच के आदेश होने के कुछ दिनों के बाद ही सीबीआई के कुछ लोग मेरे घर आये। पति का मोबाइल फ़ोन मैंने सीबीआई के हवाले कर दिया, लेकिन आज तक पता नहीं चला कि उस मोबाइल फ़ोन से सीबीआई कुछ पता कर सकी या नहीं।’
सीबीआई ने केवल समय बिताया है: वकील
जवाहर बाग़ पार्क कांड के बाद इलाहाबाद में याचिका दाखिल करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि, ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट के सीबीआई को जाँच सौंपने के बाद से सीबीआई इस मामले में केवल जाँच की अवधि बढ़ाने का काम करती रही। हाईकोर्ट ने 2 महीने में जाँच पूरी करने का निर्देश जारी किया था लेकिन 40 महीने बीत जाने के बाद केवल तारीख़ें लेती रही। सीबीआई जाँच पर विश्वास ख़त्म हो गया है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट से उनकी मॉनिटरिंग में सीबीआई जाँच आगे कराने की माँग की है।’
मीडिया दबाव में ही काम करती है सीबीआई?
सुशांत सिंह के मामले में देश का मेनस्ट्रीम मीडिया लगातार दबाव बनाये हुए है। सुशांत सिंह की मौत मुम्बई में हुई, मुम्बई पुलिस छानबीन में भी लगी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर कि जाँच सीबीआई जैसी ‘दक्ष’ एजेंसी करेगी, मामले को बिहार और महाराष्ट्र से लेकर सीबीआई को ट्रांसफ़र कर दिया।
कई सवाल
अब सवाल यह पैदा होता है कि जो सीबीआई ड्यूटी पर मारे गये एसपी और एक एसएचओ समेत 28 लोगों की मौत की गुत्थी तीन साल से नहीं सुलझा पा रही वो सुशांत सिंह मामले में इतनी तत्परता कैसे दिखा रही है?
क्या कल जवाहर बाग़ के केस को सुप्रीम कोर्ट मॉनिटर करने लगे तभी सीबीआई को लगेगा कि उसे जाँच को सही दिशा में ले जाकर उन क़ातिलों की पहचान सामने लानी चाहिए जिसके लिए एसीपी मुकुल द्विवेदी का परिवार लगातार गुहार कर रहा है?
आखिर क्या कारण है कि अभी तक सीबीआई जैसी ‘दक्ष’ एजेंसी यह पता नहीं लगा पाई कि 2 पुलिस अधिकारियों और 28 लोगों की मौत का मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव ज़िंदा है या नहीं?
सवाल ये भी है कि सरकार बदलने के बाद भी रामवृक्ष यादव के किन राजनैतिक दलों और नेताओं से संबंध थे, यह सीबीआई नहीं बता पाई?
और यह भी कि वो कौन लोग थे जिन्होंने रामवृक्ष यादव जैसे लोगों की इतनी हिम्मत बढ़ाई कि वे 5000 करोड़ क़ीमत का सार्वजनिक सम्पति पर क़ब्ज़ा कर लें, हज़ारों लोगों को उस जगह बसा दें, ख़ुद की सरकार चलाने लगे लेकिन सरकार और स्थानीय प्रशासन मूक दर्शक बना रहे?
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