loader
फ़ाइल फ़ोटोफ़ोटो साभार: ट्विटर वीडियो ग्रैब

दूसरी लहर से पहले विशेषज्ञों की चेतावनी हुई थी नज़रअंदाज़!

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट द्वारा गठित विशेषज्ञों की सरकारी कमेटी ने ही तीसरी लहर की आशंका और इसके लिए 'अपर्याप्त' तैयारी को लेकर चेताया है। तीसरी लहर में लापरवाही का क्या नतीजा हो सकता है, इसका एक सबक़ दूसरी लहर भी देता है। दूसरी लहर के आने से पहले भी विशेषज्ञों की एक कमेटी ने ऐसी ही चेतावनी जारी की थी। ठीक तैयारी नहीं हुई थी और उसका नतीजा भी भुगतना पड़ा। दूसरी लहर देश में तबाही लेकर आई थी। यह तबाही किस तरह की थी इसकी कल्पना इससे की जा सकती है कि अस्पताल में बेड नहीं मिले पा रहे थे, ऑक्सीजन की कमी से मौतें हो रही थीं, श्मशान में भी लाइनें लगी थीं और गंगा नदी में शव तैर रहे थे। 

क्या इस हालात का अंदाजा पहले नहीं लगाया जा सकता था और क्या इसको रोकने की तैयारी पहले नहीं की जा सकती थी? इन सवालों का जवाब सरकार द्वारा कोरोना पर अध्ययन और शोध के लिए गठित सलाहाकर समिति के वैज्ञानिकों से बेहतर कौन दे सकता है।

ताज़ा ख़बरें

जब देश में कोरोना संक्रमण हालात से बेकाबू हुए तो इस मामले में सवाल उठे। इसी बीच 'रॉयटर्स' ने सलाहकार समिति के पाँच वैज्ञानिकों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट छापी थी। उन वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनकी चेतावनी को सरकार ने नज़रअंदाज़ किया था। चार वैज्ञानिकों ने कहा था कि चेतावनी के बावजूद सरकार ने सख़्त पाबंदी लगाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। उसने साफ़-साफ़ कहा था कि लाखों लोग बेरोक-टोक राजनीतिक रैलियाँ और धार्मिक आयोजनों में शामिल होते रहे।

तीसरी लहर के लिए एक नये वैरिएंट डेल्टा को ज़िम्मेदार माना गया। इस नये वैरिएंट को लेकर भी सरकार को काफ़ी पहले आगाह किया गया था। 

इंडियन सार्स कोव-2 जेनेटिक्स कन्सॉर्टियम यानी INSACOG नाम की एक समिति ने मार्च में ही कैबिनेट सचिव राजीव गाबा को इसके बारे में चेतावनी दी थी। कैबिनेट सचिव सीधे प्रधानमंत्री के साथ काम करते हैं। यह सवाल तब जोर शोर से उठा था। विपक्ष भी इसको लेकर काफ़ी हमलावर रहा। लेकिन इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी कि इस नए वैरिएंट के बार में जानकारी प्रधानमंत्री मोदी को दी गई या नहीं। इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई थी।
केंद्र सरकार ने पिछले साल ही INSACOG का गठन किया था। इसमें दस राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ शामिल हैं। इसको कोरोनो के नये वैरिएंट का पता लगाने और इसके ख़तरों के बारे में जानकारी देने की ज़िम्मेदारी दी गई।

एक रिपोर्ट के अनुसार INSACOG के एक सदस्य अजय पारिदा ने बताया था कि शोधकर्ताओं ने सबसे पहले फ़रवरी में इस नए वैरियंट का पता लगाया था जिसका वैज्ञानिक नाम बी.1.617 है। डब्ल्यूएचओ ने इस वैरिएंट का नाम ही बाद में डेल्टा वैरिएंट रखा। यह सबसे पहले भारत में ही मिला था। इसी को लेकर केंद्र को चेताया गया था कि कोरोना की दूसरी लहर जल्द ही आ सकती है। रिपोर्टों में यहा भी कहा गया था कि यह शोध और चेतावनी स्वास्थ्य मंत्रालय को भी भेजी गई। इसके बारे में मंत्रालय की ओर से भी कोई सफ़ाई नहीं आई थी।

देश से और ख़बरें

डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन INSACOG के प्रमुख शाहिद जमील ने कहा था कि उन्हें लगता है कि अधिकारी इन सबूतों की ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे। उन्होंने कहा था कि वैज्ञानिक होने के नाते हम साक्ष्य उपलब्ध कराते हैं, नीतियाँ बनाना सरकार का काम है।'

इनके अलावा दूसरे विशेषज्ञ भी सरकार पर तैयारी नहीं करने जैसी लापरवाही का आरोप लगा रहे थे।

‘दवाई भी, कड़ाई भी’ का मंत्र देने वाले प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में ही नियमों की धज्जियाँ उड़ते दिखी थीं। अगर बात मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग की ही है तो मोटेरा स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम करने से जुड़ा समारोह हो या फिर स्टेडियम में चल रहे क्रिकेट के मैच, पाँच राज्यों में जारी चुनाव के दौरान हो रही रैलियाँ हों या फिर हरिद्वार में हुआ महाकुंभ- किन जगहों पर मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हुआ?

insacog had warned of second wave much earlier - Satya Hindi
शायद चेतावनियों को गंभीरता से नहीं लिया गया। इसका परिणाम तब दिखा जब कोरोना की दूसरी लहर के दौरान 4 लाख से ज़्यादा केस आने लगे थे। जब मरीजों को लेकर परिजन अस्पतालों में बेड की तलाश कर रहे थे और कई मरीज़ों की मौत अस्पतालों के बाहर हो गई थी। दवाइयों, ऑक्सीजन की कमी हो गई थी। ऑक्सीजन के बिना लोग तड़प-तड़प कर मर गए। श्मशानों में लगातार चिताएँ जल रही थीं फिर भी कतार कम होने का नाम नहीं ले रही थीं। और तो और गंगा किनारे पानी में सैकड़ों शव तैरते मिले थे और सैकड़ों शव रेत में दफ़न किए गए मिले थे। 
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

देश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें