नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट द्वारा गठित विशेषज्ञों की सरकारी कमेटी ने ही तीसरी लहर की आशंका और इसके लिए 'अपर्याप्त' तैयारी को लेकर चेताया है। तीसरी लहर में लापरवाही का क्या नतीजा हो सकता है, इसका एक सबक़ दूसरी लहर भी देता है। दूसरी लहर के आने से पहले भी विशेषज्ञों की एक कमेटी ने ऐसी ही चेतावनी जारी की थी। ठीक तैयारी नहीं हुई थी और उसका नतीजा भी भुगतना पड़ा। दूसरी लहर देश में तबाही लेकर आई थी। यह तबाही किस तरह की थी इसकी कल्पना इससे की जा सकती है कि अस्पताल में बेड नहीं मिले पा रहे थे, ऑक्सीजन की कमी से मौतें हो रही थीं, श्मशान में भी लाइनें लगी थीं और गंगा नदी में शव तैर रहे थे।
क्या इस हालात का अंदाजा पहले नहीं लगाया जा सकता था और क्या इसको रोकने की तैयारी पहले नहीं की जा सकती थी? इन सवालों का जवाब सरकार द्वारा कोरोना पर अध्ययन और शोध के लिए गठित सलाहाकर समिति के वैज्ञानिकों से बेहतर कौन दे सकता है।
जब देश में कोरोना संक्रमण हालात से बेकाबू हुए तो इस मामले में सवाल उठे। इसी बीच 'रॉयटर्स' ने सलाहकार समिति के पाँच वैज्ञानिकों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट छापी थी। उन वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि उनकी चेतावनी को सरकार ने नज़रअंदाज़ किया था। चार वैज्ञानिकों ने कहा था कि चेतावनी के बावजूद सरकार ने सख़्त पाबंदी लगाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। उसने साफ़-साफ़ कहा था कि लाखों लोग बेरोक-टोक राजनीतिक रैलियाँ और धार्मिक आयोजनों में शामिल होते रहे।
तीसरी लहर के लिए एक नये वैरिएंट डेल्टा को ज़िम्मेदार माना गया। इस नये वैरिएंट को लेकर भी सरकार को काफ़ी पहले आगाह किया गया था।
केंद्र सरकार ने पिछले साल ही INSACOG का गठन किया था। इसमें दस राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ शामिल हैं। इसको कोरोनो के नये वैरिएंट का पता लगाने और इसके ख़तरों के बारे में जानकारी देने की ज़िम्मेदारी दी गई।
एक रिपोर्ट के अनुसार INSACOG के एक सदस्य अजय पारिदा ने बताया था कि शोधकर्ताओं ने सबसे पहले फ़रवरी में इस नए वैरियंट का पता लगाया था जिसका वैज्ञानिक नाम बी.1.617 है। डब्ल्यूएचओ ने इस वैरिएंट का नाम ही बाद में डेल्टा वैरिएंट रखा। यह सबसे पहले भारत में ही मिला था। इसी को लेकर केंद्र को चेताया गया था कि कोरोना की दूसरी लहर जल्द ही आ सकती है। रिपोर्टों में यहा भी कहा गया था कि यह शोध और चेतावनी स्वास्थ्य मंत्रालय को भी भेजी गई। इसके बारे में मंत्रालय की ओर से भी कोई सफ़ाई नहीं आई थी।
डीडब्ल्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन INSACOG के प्रमुख शाहिद जमील ने कहा था कि उन्हें लगता है कि अधिकारी इन सबूतों की ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे। उन्होंने कहा था कि वैज्ञानिक होने के नाते हम साक्ष्य उपलब्ध कराते हैं, नीतियाँ बनाना सरकार का काम है।'
इनके अलावा दूसरे विशेषज्ञ भी सरकार पर तैयारी नहीं करने जैसी लापरवाही का आरोप लगा रहे थे।
‘दवाई भी, कड़ाई भी’ का मंत्र देने वाले प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों में ही नियमों की धज्जियाँ उड़ते दिखी थीं। अगर बात मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग की ही है तो मोटेरा स्टेडियम का नाम नरेंद्र मोदी स्टेडियम करने से जुड़ा समारोह हो या फिर स्टेडियम में चल रहे क्रिकेट के मैच, पाँच राज्यों में जारी चुनाव के दौरान हो रही रैलियाँ हों या फिर हरिद्वार में हुआ महाकुंभ- किन जगहों पर मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हुआ?
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