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क्या भारतीयों पर जरूरत से ज्यादा टैक्स लदा हुआ है, दुनिया में कहां खड़े हैं?

भारत में 2025 में कर का बोझ बहस का विषय है। खासकर जब मध्य वर्ग ने सवाल करना शुरू कर दिया कि क्या भारत सरकार 2025 के बजट में आयकर पर कुछ रहमदिली दिखाएगी। दुनिया के कई देशों की कराधान प्रणाली और भारत की कराधान प्रणाली पर बात करना जरूरी है। 
केंद्रीय बजट 2025 की अपेक्षाओं में सरकारी खर्च की फंडिंग के लिए टैक्स रेवन्यू पर पूरी निर्भरता बनाए रखना शामिल है। केंद्र सरकार का लगभग 80% खर्च टैक्स लगाने के जरिये चलता है। यह ब्राज़ील, मैक्सिको और चीन जैसे देशों की तुलना में बहुत अधिक है, जो टैक्स वसूली पर कम निर्भर हैं। भारत में 2025 में कोई भी टैक्स सुधार जो टैक्स दरों को कम करता है, सरकार को ज्यादा उधार लेने के लिए मजबूर कर सकता है, जिससे ब्याज दरें बढ़ सकती हैं और देश में आर्थिक दबाव पैदा हो सकता है। स्थितियां नाजुक हैं।

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भारत का सरकारी राजस्व और कराधान काफी हद तक टैक्स वसूली पर निर्भर करता है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में भारत का टैक्स राजस्व अपेक्षाकृत कम है, जो 20% से नीचे है। यह आंकड़ा यूरोप के विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है, जो टैक्स के जरिये जीडीपी का अधिक हिस्सा जमा करने का प्रबंधन करते हैं। इससे यह सवाल उठता है कि क्या भारतीय कराधान प्रणाली पर्याप्त रूप से कुशल है और क्या भारत में 2025 में आयकर दरों में सुधार की गुंजाइश है। बहुत कम चांस हैं।

यह मानना पड़ेगा कि अमीर देशों में अधिक कुशल कराधान सिस्टम है जो टैक्स राजस्व का अनुपात बढ़ा देती हैं। जबकि भारत अभी भी चीन और अमेरिका जैसे देशों से पीछे है। यह मेक्सिको और इंडोनेशिया जैसे देशों से बेहतर जरूर है। जो अमीर हैं लेकिन जीडीपी के प्रतिशत के रूप में कम टैक्स राजस्व जमा करते हैं। इससे संकेत मिलता है कि जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ेगी, कर बढ़ाने की क्षमता में भी सुधार होने की संभावना है, जिसका सीधा असर 2025 में भारत में टैक्स के बोझ पर पड़ सकता है।
सवाल ये है कि भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को कैसे विभाजित किया जाता है। इस पर विस्तृत डेटा उपलब्ध नहीं है। बस इतना पता है कि प्रत्यक्ष कर (जैसे व्यक्तिगत आयकर) और अप्रत्यक्ष कर (जैसे जीएसटी) जीडीपी में लगभग 7% का योगदान करते हैं। इन दो टैक्स प्रकारों के बीच भारत का संतुलन ब्राजील, चिली और पोलैंड जैसे देशों की तुलना के अनुकूल है। वहां अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा अनुपात में अधिक है। 
भारत में संभावित कर सुधार 2025 में एक अधिक प्रगतिशील टैक्स प्रणाली शामिल हो सकती है। जो प्रत्यक्ष करों पर अधिक ध्यान केंद्रित करती है। इसमें समाज के धनी वर्ग पर ज्यादा टैक्स लगाया जा सकता है।
चुनावी लोकतंत्र और टैक्स राजस्व संग्रह के बीच संबंधों की पड़ताल जरूरी है। चुनावी लोकतंत्र में उच्च रैंकिंग वाले देश टैक्स के जरिये अधिक वसूली करते हैं। भारत बांग्लादेश जैसे देशों की तुलना में अच्छा प्रदर्शन करता है लेकिन फिर भी ब्राजील, जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों से पीछे है। इस प्रवृत्ति से पता चलता है कि जैसे-जैसे भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएँ मजबूत होंगी और इसकी चुनावी लोकतंत्र रैंकिंग में सुधार होगा, देश का सरकारी राजस्व और कराधान बढ़ सकता है। तब ज्यादा बेहतर टैक्स सिस्टम की उम्मीद की जा सकती है। शायद 2025 में भारत में टैक्स के बोझ में कमी आए।

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यह तो तय है कि भारत सरकार अपने नागरिकों पर अत्यधिक टैक्स लगा रही है। हालांकि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में भारत का टैक्स राजस्व कई विकसित देशों जितना ऊंचा नहीं है। केंद्र सरकारी खर्च को पूरा करने के लिए करों पर बहुत अधिक निर्भर है। जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती जा रही है और इसकी कराधान प्रणाली ज्यादा बेहतर होती जा रही है, हम 2025 में भारत में टैक्स सुधारों की उम्मीद कर सकते हैं। इससे भविष्य में टैक्स राजस्व में बढ़ोतरी हो सकती है। इससे भारत में 2025 में टैक्स का बोझ कम हो सकता है, खासकर मध्यम वर्ग पर। सरकार को महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और विकास में निवेश करने में सक्षम बनना होगा। 

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क़मर वहीद नक़वी
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