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ये जी-20 क्या है; भारत के लिए कितना अहम?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 शिखर में शामिल होने के लिए इंडोनेशिया के बाली में जा रहे हैं। उन्होंने सोमवार को कहा है कि वह बाली में अन्य जी-20 नेताओं के साथ वैश्विक विकास को पटरी पर लाने, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने जैसे वैश्विक चिंता के प्रमुख मुद्दों पर व्यापक चर्चा करेंगे। तो क्या इन मुद्दों पर चर्चा करने से समस्याएँ हल हो जाएंगी? क्या यह फोरम इस तरह के फ़ैसले ले सकता है और क्या यह मंच इतना बड़ा है?

इन सब सवालों के जवाब पाने से पहले यह जान लें कि यह फोरम क्या है और किसलिए बनाया गया है। जी-20 एक समूह है। इसमें 20 भागीदार हैं। इनमें 19 देश हैं और एक यूरोपीय यूनियन। यह यूरोपीय यूनियन यूरोप के कई देशों का एक संघ है। 

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जी-20 में फ्रांस,  इंडोनेशिया, इटली, कोरिया, जर्मनी, भारत, मेक्सिको, ऑस्‍ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, रुस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, जापान, अमेरिका और यूरोपीय यूनियन शामिल हैं। ये वे देश या संघ हैं जो अर्थव्यवस्था के मामले में दुनिया में शीर्ष पर हैं। 

इस मंच का अहम काम ही आर्थिक सहयोग है। इस फोरम की क्षमता को इससे आँका जा सकता है कि जी-20 वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 85 प्रतिशत, वैश्विक व्यापार का 75 प्रतिशत से अधिक और दुनिया की लगभग दो-तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।

ये देश मिलकर न सिर्फ़ ग्लोबल इकोनॉमी पर काम करते हैं, बल्कि आर्थिक स्थिरता और जलवायु परिवर्तन और हेल्थ से जुड़े मुद्दों पर भी बात करते हैं। अहम उद्देश्य ये है कि आर्थिक स्थिति को नियंत्रित रखा जाए।
आसान भाषा में कहें तो जी-20 अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है।

जी-20 की स्थापना भी 1999 में कई वैश्विक आर्थिक संकटों की प्रतिक्रिया में हुई थी। 2008 के बाद से इसकी बैठक वर्ष में कम से कम एक बार बुलाई जाती है, जिसमें प्रत्येक सदस्य के राज्य के प्रमुख, वित्त मंत्री, या विदेश मंत्री और अन्य उच्च पदस्थ अधिकारियों को शामिल किया जाता है।

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यूरोपीय संघ का प्रतिनिधित्व यूरोपीय आयोग और यूरोपीय सेंट्रल बैंक द्वारा किया जाता है। अन्य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और ग़ैर-सरकारी संगठनों को भी शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

2009 के अपने शिखर सम्मेलन में जी20 ने खुद को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और वित्तीय सहयोग के लिए प्राथमिक केंद्र घोषित किया। बाद के दशक के दौरान समूह का कद बढ़ता रहा है। जानकार इसे काफी वैश्विक प्रभाव के रूप में मान्यता देते हैं। वैसे तो इसके फ़ैसले देशों के लिए बाध्यकारी नहीं होते हैं, लेकिन दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं से अलग-थलग पड़ने का दबाव रहता है। और इसी वजह से इस मंच के फ़ैसले को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। माना जाता है कि इस फोरम में की गई चर्चाओं का असर काफ़ी हद तक पूरी दुनिया में पड़ता है, भले ही वह प्रत्यक्ष तौर पर दिखे या नहीं।

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क़मर वहीद नक़वी
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