वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। यह कोर्ट 17 नवंबर को अपना फैसला सुना सकती है। फास्ट ट्रैक को यह तय करना है कि इससे संबंधित याचिका सुनवाई के योग्य है या नहीं। ज्ञानवापी में कथित तौर पर शिवलिंग मिलने का दावा किए जाने के बाद एक पक्ष ने इस कैंपस उसे सौंपे जाने और यहां पूजा की इजाजत मांगी थी। 12 नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उस जगह की सुरक्षा किए जाने का समय बढ़ाने का निर्देश दिया था।
याचिका सुनने योग्य है या नहीं, इस मुद्दे को सिविल जज सीनियर डिवीजन एम के पांडेय की फास्ट ट्रैक कोर्ट में हल होना है। 27 अक्टूबर को इसका फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। इसके बाद इसी कोर्ट ने 12 नवंबर की तारीख तय की थी। लेकिन उस दिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लिस्ट था तो फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपना फैसला 14 नवंबर को सुनाने की बात कही लेकिन अब इसे 17 नवंबर तक बढ़ा दिया गया है।
विश्व वैदिक सनातन संघ (वीवीएसएस) ने किरण सिंह केस दायर किया है कि पूरे ज्ञानवापी परिसर का कब्जा हिन्दुओं को सौंपा जाए। हमें वहां पूजा की अनुमति दी जाए। पांच अन्य महिलाओं ने भी यहां श्रृंगार गौरी मंदिर में पूजा की अनुमति मांगी है। इसके बाद कथित तौर पर यहां 16 मई को शिवलिंग पाने का दावा किया गया। जबकि मस्जिद इंतेजामिया कमेटी ने उस अंडाकार को वजू खाने का फव्वारा बताया। ऐसे फव्वारे अंग्रेजों और मुगल काल में बनी तमाम बिल्डिंगों में देखे जा सकते हैं।
इसके बाद हिंदुओं के दोनों पक्षों में उस अंडाकार वस्तु या कथित शिवलिंग की कॉर्बन डेटिंग पर विवाद हो गया। हिन्दू वकीलों का एक पक्ष इसकी कॉर्बन डेटिंग के पक्ष में है, दूसरा पक्ष इसके खिलाफ है। टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि पांच महिला याचिकाकर्ताओं में से एक ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर पाए जाने वाले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग का विरोध किया है। याचिकाकर्ता राखी सिंह ने कथित 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग का विरोध करते हुए कहा है कि यह आदि विश्वेश्वर के शिवलिंग के अस्तित्व पर सवाल उठाने जैसा है। राखी सिंह के वकील और विश्व वैदिक सनातन संघ (वीवीएसएस) के चीफ जितेंद्र सिंह विशन इस संबंध में विरोध की अर्जी लगाने जा रहे हैं। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में इसकी पुष्टि की है।
दरअसल, कॉर्बन डेटिंग पर हिन्दू पक्षों में मतभेद की वजह कुछ और भी है। जैसा कि इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि याचिकाकर्ता राखी सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील जितेंद्र सिंह विशन को कथित तौर पर लगता है कि उन्होंने यह लड़ाई शुरू की थी, लेकिन वकील हरिशंकर जैन और विष्णु जैन, जो अन्य चार याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनको ज्यादा श्रेय दिया जा रहा है। ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का वीडियो लीक होने पर भी दोनों पक्षों में विवाद हुआ था।
क्या है पूरा मामला
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट और बनारस की अदालतों में कई मुकदमे चल रहे हैं। इन अर्जियों में हिन्दू पक्ष का कथित दावा है कि 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। हालांकि इस मस्जिद के बगल काशी विश्वनाथ मंदिर आज भी है। बहरहाल, अयोध्या का मामला गरमाने के बाद 1991 में यहां लोकल कोर्ट में याचिका दायर कर कुछ लोगों ने ज्ञानवापी के अंदर पूजा की अनुमति मांगी।
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