पिछले दिनों भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ युद्धविराम उल्लंघन भारतीय सेना को यह सोचने के लिए मजबूर कर सकता है कि क्या पाकिस्तान चीन के इशारे पर भारत की सीमा पर तनाव बढा रहा है? क्या उसे एक ओर पाकिस्तान तो दूसरी ओर चीन की सेना से एक साथ जूझना पड़ सकता है?
यह सवाल इसलिए अहम है कि चीन के साथ भारत का तनाव बरक़रार है, कई दौर की बातचीत नाकाम हो चुकी है, पैंगोंग त्सो इलाक़े को खाली करने के लिए जो सहमति बनी है, उसे लागू होना बाकी है और भारत में लोगों को चीन की नीयत पर संदेह है। इसके साथ ही यह सवाल भी पूछा जाने लगा है कि क्या भारत पूर्व और पश्चिम, इन दोनों ही दिशाओं से एक साथ और सुनियोजित हमले को संभाल पाएगा?
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युद्वविराम उल्लंघन
दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा पर अलग-अलग सेक्टरों में इस साल अब तक 4,052 युद्धविराम उल्लंघन हो चुके हैं। ये उल्लंघन दोनों देशों के बीच की 778 किलोमीटर लंबी सीमा पर नियंत्रण रेखा के पास केरन, डावर, उरी, नौगाँव और बारामुला सेक्टरों में हुए।युद्धविराम उल्लंघन की ये वारदातें पिछले 17 साल का रिकॉर्ड हैं। साल 2019 में कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने के बाद यकायक में इसमें बहुत तेज़ बढ़ोतरी हुई। साल 2019 में युद्धविराम का उल्लंघन 3,168 बार हुआ, लेकिन अगस्त के बाद ही सबसे ज़्यादा उल्लंघन हुआ था।
युद्ध के हथियार
पिछले दिनों के युद्धविराम उल्लंघन में जिन हथियारों का प्रयोग हुआ, उस ओर भी लोगों का ध्यान गया है। दोनों देशों की सेनाओं ने 105 और 155 मिलीमीटर कैलिबर वाली आर्टिलरी बंदूकों, मोर्टार, रॉकेट, एंटी-टैंक मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया है। इस तरह के हथियारों का इस्तेमाल मोटे तौर पर युद्ध में किया जाता है। सीमा पर होने वाली छोटी-मोटी झड़पों में हल्के हथियारों का इस्तेमाल होता है।ताज़ा मामला शुक्रवार का है। इस बार के युद्धविराम उल्लंघन में पाकिस्तानी सेना के 7 और भारत के 5 जवान मारे गए। पाकिस्तान ने स्पेशल सर्विस ग्रुप और बॉर्डर एक्शन टीम को उतारा। बॉर्डर एक्शन टीम में पाकिस्तानी सेना के कमांडर और प्रशिक्षित आतंकवादी होते है, जो सीमा पर हमले कर आतंकवादियों को भारत की सीमा में दाखिल करवाते हैं।
इस बार पाकिस्तान का ईंधन भंडार नष्ट कर दिया गया, कई चौकियां तबाह हुईं और बड़े पैमाने पर हथियार नष्ट कर दिए गए।
साल भर में 4052 युद्धविराम उल्लंघन का मतलब हुआ रोज़ाना अलग-अलग जगहों पर कम से कम 11 बार हमले। सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान धीरे-धीरे भारतीय सेना को उस स्थिति की ओर धकेल रहा है, जिसमें वह लगातार पाकिस्तानी सेना से जूझती रहे और उसके सैनिक मारे जाते रहें?
चीनी सीमा पर तैनाती
एक तरह से देखा जाए तो साल भर भारत और पाकिस्तान की सेनाएं कहीं न कहीं किसी न किसी सेक्टर में एक-दूसरे पर गोलियां बरसाती रही हैं। लेकिन सारा सबकुछ उस समय हुआ, जब भारतीय सीमा के दूसरे छोर पर उसके 50 हज़ार से ज़्यादा सैनिक बर्फीली पहाड़ियों पर जमे हुए हैं और मुखातिब हैं चीनी सेना के, जिसने उसके बहुत बड़े इलाक़े पर कब्जा कर लिया है।भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव इतना ज़्यादा था कि भारत के चीफ़ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ़ बिपिन रावत तक ने कह दिया कि किसी भी समय युद्ध छिड़ सकता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा कि ‘हम पर युद्ध थोपा गया तो हम पीछे नहीं हटेंगे।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने लद्दाख जाकर सैनिकों को संबोधित किया।
दूसरी ओर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सैनिकों से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। चीन का सरकारी अख़बार ‘ग्लोबल टाइम्स’ लगातार भारत को 1962 से सबक लेने की सलाह देता रहा और कई बार खुले शब्दों में धमकी भी दे डाली।
भारत-चीन तनाव
दोनों सेनाओं के बीच 8 दौर की बातचीत नाकाम रही। नवें दौर में यह सहमति बनी है कि दोनो ही सेनाएं 5 मई, 2020 के पहले की स्थिति तक अपने सैनिकों को बुला लेंगी और उस समय जो स्थिति थी, उसे बनाए रखेंगी। लेकिन इस पर अमल अब तक नहीं हुआ है।पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीनी सेना कोई बहाना चाहती है जिसके आधार पर वह इसे सम्मानजनक वापसी कह सके। लेकिन भारत में लोगों को इस पर अब तक भरोसा नहीं हुआ है, जब तक पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिक वापस नहीं लौट जाते और भारतीय सेना इसकी पुष्टि नहीं करती, लोग भरोसा नहीं कर सकते।
दो मोर्चों पर लड़ाई?
सवाल यह है कि क्या भारत इस स्थिति के लिए तैयार है कि वह पाकिस्तान और चीन के एक साथ सुनियोजित मोर्चा खोलने पर दोनों को संभाल पाएगी और दो मोर्चों पर लड़ पाएगी।दो मोर्चों पर एक साथ लड़ाई होने का मतलब हुआ पाकिस्तान और चीन एक साथ भारत से युद्ध करे। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों का कहना है कि ऐसा होने की फिलहाल संभावना नहीं है क्योंकि इससे चीन एक बहुत बड़े युद्ध में फँस जाएगा, वह उसके लिए आर-पार की लड़ाई हो जाएगी।
यदि अमेरिका भारत की मदद करने लगा तो ताईवान, दक्षिण चीन सागर, हिंद-प्रशांत सागर जैसे तमाम प्रश्न खुल जाएंगे। चीन यह नहीं चाहेगा कि वह इसमें फँसे क्योंकि ऐसा होने पर 2049 तक सुपर पावर बनने के उसके लक्ष्य से भटकने का ख़तरा रहेगा।
दूसरी बात यह है कि, चीन कोरोना से निकलने के बाद अपनी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करना चाहेगा न कि ऐसे में विवाद में फंसना पसंद करेगा जिससे उसे कुछ ख़ास हासिल होने को नहीं हो।
दोतरफा हमला
लेकिन यदि स्थिति हो ही गई तो यह भारत के लिए अत्यधिक चिंता की बात होगी क्योंकि पाक-अधिकृत कश्मीर से लेकर पैंगोंग त्सो तक के इलाके में उसे बहुत बड़े गलियारे में युद्ध करना होगा। चीन और पाकिस्तान एक साथ मिलकर भारत पर दोतरफा हमले कर सकेंगे।पूरे इलाक़े में भारतीय हवाई पट्टियाँ हैं, जम्मू-कश्मीर से लेकर लद्दाख के दौलत बेग ओल्डी तक उसके पास सारे सैनिक साजो-सामान मौजूद होंगे। यदि वह युद्ध की स्थिति में किसी तरह चीन-पाकिस्तान कॉरीडोर को काट दे वह सप्लाइ लाइन नष्ट कर दे तो स्थिति भारत के पक्ष में होगी।
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यह एक राजनीतिक फ़ैसला होगा क्योंकि सैनिक स्तर पर यह काम बहुत कठिन या असंभव इसलिए नहीं होगा कि भारत के पास दौलत बेग ओल्डी की हवाई पट्टी है।
भारतीय सेना को इस स्थिति का एक तरह से पूर्वाभ्यास तो हो ही गया है। वह एक तरफ पाकिस्तान से साल पर जूझती रही तो दूसरी ओर उसके सैनिक चीनी सैनिकों के सामने आँखों में आँखें डाले तैनात रहे। असली परीक्षा तो युद्ध में ही होगी और भारत ही नहीं, चीन भी चाहेगा कि ऐसा न हो।
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