पूर्वी लद्दाख के गलवान में दो साल पहले आज ही के दिन चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसपैठ की थी। इसका नतीजा यह हुआ था कि बाद में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। चीनी सैनिकों के भारतीय सीमा में घुसपैठ करने के बाद से कई मुद्दे अभी भी हैं जो सुलझे नहीं हैं। इन मुद्दों को लेकर पिछले महीने ही भारत और चीन ने 15वें दौर की सैन्य वार्ता की है। कहा गया कि वह वार्ता नाकाम रही। यानी दो साल बाद भी ऐसे मुद्दे हैं जिनका समाधान नहीं हुआ है। तो क्या हैं ये मुद्दे? क्या चीन अभी भी भारतीय हिस्से को नहीं छोड़ रहा है?
गलवान में मई 2020 में क्या हुआ था और इसके बाद क्या-क्या हुआ, यह जानने से पहले यह जान लें कि इस मामले में ताज़ा स्थिति क्या है। 2020 में हुई उस झड़प के बाद दोनों देशों के बीच मुद्दों को सुलझाने के लिए कई दौर की वार्ता हो चुकी है। मार्च के मध्य में ही भारत और चीन के बीच आख़िरी बार 15वें दौर की सैन्य वार्ता हुई थी। क़रीब 13 घंटे तक चली बैठक के एक दिन बाद दोनों देशों ने एक साझा बयान जारी किया। वार्ता के केंद्र में हॉट स्प्रिंग्स यानी गश्त बिंदु-15 में सैनिकों को हटाने की रुकी पड़ी प्रक्रिया को पूरा करना था।
दोनों देशों ने लंबित मुद्दों को हल करने की दिशा में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं की, लेकिन दोनों देश जल्द ही परस्पर स्वीकार्य समाधान तक पहुँचने के लिए वार्ता जारी रखने को सहमत हुए। वैसे, दोनों देश ऐसा ही क़रीब 14 दौर की वार्ता तक करते आए हैं।
पैंगोंग झील इलाक़े में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद दोनों पक्षों के बीच पूर्वी लद्दाख में गतिरोध पांच मई 2020 को पैदा हुआ था। प्रत्येक पक्ष के एलएसी पर अभी करीब 50,000 से 60,000 सैनिक हैं। यही वजह है कि पूर्वी लद्दाख में 1597 किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के साथ भारत और चीनी सेना के बीच एक असहज गतिरोध बना हुआ है। यह गतिरोध कोंगका ला से अधूरे डिसइंगेजमेंट के साथ ही देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में भी अनसुलझे गश्त के मुद्दों के कारण है।
रिपोर्ट है कि गलवान के बाद चीनी सेना ने उस साल 17-18 मई को कुगरांग नदी, श्योक नदी की एक सहायक नदी, गोगरा और पैंगोंग त्सो के उत्तरी किनारे के क्षेत्रों में घुसपैठ की। हालाँकि, दोनों सेनाएँ पैंगोंग त्सो, गलवान और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र से डिसइंगेज कर चुकी हैं, लेकिन चीनी सेना को अभी भी कोंगका ला से वापस जाना है।
गलवान में जुलाई 2020 में और फरवरी 2021 में पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट से डिसइंगेजमेंट हुआ। भारतीय सेना और विशेष सीमा बल ने झील के दक्षिणी किनारों की ऊंचाइयों पर मोल्दो में कब्जा कर लिया। चांग केमो नदी पर गोगरा पोस्ट से अगस्त 2021 में डिसइंगेजमेंट हुआ था।
भले ही दोनों पक्षों ने एलएसी पर पूर्वी लद्दाख में काफी हद तक डिसइंगेजमेंट कर लिया हो, लेकिन इस क्षेत्र में सैनिकों की कोई कमी नहीं हुई है। दोनों सेनाएँ बख्तरबंद, रॉकेट, तोपखाने और मिसाइल के साथ पूरी ताक़त से मौजूद हैं।
इस साल फ़रवरी महीने में केंद्र सरकार ने संसद को बताया था कि पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील पर चीनी पुल अवैध रूप से कब्जे वाले क्षेत्र में बनाया जा रहा है। सरकार ने एक लिखित जवाब में संसद को बताया था, 'सरकार ने चीन द्वारा पैंगोंग झील पर बनाए जा रहे एक पुल पर ध्यान दिया है। यह पुल उन क्षेत्रों में बनाया जा रहा है जो 1962 से चीन के अवैध कब्जे में है।'
इसने आगे कहा था, 'भारत सरकार ने इस अवैध कब्जे को कभी स्वीकार नहीं किया है। सरकार ने कई मौकों पर यह स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश भारत का अभिन्न अंग हैं और हम उम्मीद करते हैं कि अन्य देश भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करेंगे।'
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