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गलवान में कहाँ तक कौन पीछे हटे, इस पर हुई भारत-चीन की सेनाओं में झड़प?

पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों में सैनिकों की तनातनी किसी बड़ी झड़प में बदल सकती है, इसकी आशंकाएं ज़ाहिर की जा रही थीं। लेकिन यह झड़प दोनों सेनाओं के बीच पीछे हटने के लिये हुई सहमति लागू होने के दौरान होना हैरान करता है।

कहाँ तक पीछे हटें?

रिपोर्टों के मुताबिक़, लद्दाख की गलवान नदी घाटी के इलाक़े में ये मुठभेड़ें तब हुई जब सोमवार शाम को दोनों सेनाएं आपस में बनी सहमति के आधार पर पीछे हटने के फ़ैसले को लागू कर रही थीं। इस दौरान दोनों सेनाएं कहाँ तक पीछे हटें, इसे लेकर विवाद पैदा हुआ जो झड़प में बदल गया।
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रक्षा सूत्र कह रहे हैं कि चीनी सेना के 5 सैनिक मारे गए हैं औऱ 11 घायल हुए हैं। गलवान नदी इलाक़े में हालात तनावपूर्ण और गम्भीर बने हुए हैं। चीनी दैनिक ‘ग्लोबल टाइम्स’ के  मंगलवार शाम को जारी नवीनतम ट्वीट से संकेत मिलता है कि वहाँ दोनों सेनाओं के बीच तनातनी बनी हुई है।

1967 की सिक्किम झड़प के बाद ताज़ा झड़प भारत और चीन के बीच सबसे बड़ी झड़प कही जा सकती है। चीनी सैनिकों ने 1975 में अरुणाचल प्रदेश में घात लगाकर हमला कर चार भारतीय  सैनिकों को मार दिया था। सिक्किम झड़प के दौरान गोलियाँ चली थीं, लेकिन गलवान में  इस बार मारपीट, पत्थरबाजी और कंटीली बेंतों से हमला किया गया।
गलवान नदी के इलाक़े में हुई ताज़ा झड़प भारत औऱ चीन के सैन्य और राजनयिक रिश्तों में एक नया मोड़ लाने वाला साबित होगी।

बारूद के ढेर पर बैठी सेनाएँ

भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बारूद के ढेर पर बैठी भारत और चीन की सेनाओं के बीच कोई भी चिनगारी बड़ी आग में बदल सकती है। इसलिये राहत की बात है कि सोमवार देर शाम को गलवान नदी के इलाक़े में जो चिनगारी छूटी, वह  किसी बड़े अग्निकांड में नहीं बदली।
मंगलवार सुबह से ही दोनों पक्षों के आला अधिकारियों ने शांति बैठकें शुरू कीं, हालाँकि यह बैठक तूतू-मैंमैंं के स्वर में ही हुई और इस दौरान दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर आरोप लगाए  कि दोनों ने  वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति  व स्थिरता बनाए रखने की सहमति का उल्लंघन किया है।

शांत थी एलएसी

गलवान नदी इलाक़े में पिछली बार 1962 में ही भारत-चीन के सैनिक भिड़े थे और इसके बाद से इस इलाक़े की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कोई विवाद नहीं पैदा हुआ था।

 2017 के जून महीने में चीनी सेना ने जब भूटान के डोकलाम इलाक़े में अतिक्रमण किया तो दोनों सेनाएँ 73 दिनों तक आमने सामने तैनात रहीं, लेकिन  एक भी गोली नहीं चली।
इस बार भी लग रहा था कि चीनी कम्युनिस्ट पर्टी का मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ भारत को तबाह करने की धमकियाँ दे रहा था, वह केवल बंदरघुड़की हैं।

परमाणु युद्ध का संकट

चीन को पता है कि भारत के साथ युद्ध के बुरे नतीजे भारत को तो झेलने ही पडेंगे, चीन को भी कम नुक़सान नहीं होगा। दोनों देश सैंकड़ों परमाणु हथियारों से लैस हैं और खुले युद्ध में हारने वाले पक्ष द्वारा इनका इस्तेमाल करना  कोई हैरानी की बात नहीं होगी।

भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख के सीमांत इलाकों में गलवान नदी, हाट स्प्रिंग और पैंगोंग त्सो झील के अलावा सिक्किम के नाकू ला इलाक़े में सैन्य तनातनी गत 5 मई से ही चल रही है, दोनों देशों के सैनिकों के बीच आपस में मुठभेड़ें हुईं। इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच गोलियाँ तो नहीं चलीं, पर जिस तरह चीनी सेना द्वारा कंटीली बेंतों का इस्तेमाल अनैतिक तौर पर किया, वह चौंकाने वाला थी। इस दौरान कई भारतीय सैनिकों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है।

चीनी सेना ने सोची समझी रणनीति के तहत लद्दाख के पर्वतीय इलाक़ों में एक साथ कई जगहों पर अतिक्रमण किया और रणनीतिक महत्व के ऊँचाई वाले इलाक़ों में सैनिकों को उसी तरह बैठा दिया जैसा 1999 में पाकिस्तानी सेना ने करगिल में किया था।

नज़र दौलत बेग ओल्डी पर

चीनी  सेना ने श्योक नदी से दौतलबेग ओल्डी मार्ग पर नज़र रखने के लिये अपने सैनिक ऊँची चोटियों पर तैनात किया था। वहाँ से वह भारतीय सैनिकों की दौलतबेग ओल्डी तक आवाजाही को निशाना बना सकती थी।  255 किलोमीटर लंबा यह मार्ग चीन के सामरिक तौर पर अहम कराकोरम राजमार्ग के ठीक दस किलोमीटर पहले ही ख़त्म होता है, जहाँ से भारतीय सेना चीनी कराकारोम राजमार्ग पर चीनी सैनिकों की आवाजाही को प्रभावित कर सकती है। 
इसलिये गलवान नदी के इलाक़े में चीनी सेना से जब पीछे जाने को भारतीय सेना ने कहा औऱ चीनी सैनिकों ने ऐसा करने से मना कर दिया, जिसका भारतीय सेना ने प्रतिरोध किया और यहीं से दोनों सैनिकों के बीच तनातनी शुरू हुईं।
तनाव दूर करने के लिये दोनों देशों के बीच राजनयिक स्तर पर बातचीत हुई और फिर इसने दोनों देशों के लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत 6 जून को हुई। इसमें दोनों देशों ने सकारात्मक बातचीत होने का दावा किया औऱ कहा कि दोनों देशों की सेनाएँ ‘डिसइनगेज’ करेंगी यानी आमने सामने की स्थिति से  पीछे हटेंगी। 
इस सहमति के 10 दिनों के भीतर कई इलाक़ों से चीनी सैनिक पीछे हटने लगे थे, जिसकी पुष्टि भारतीय थलसेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाणे ने दो दिनों पहले देहरादून में की थी। माना जा रहा था कि विवाद पैंगोंग झील इलाक़े को लेकर बाकी रह गया है जहाँ की चोटियों से चीनी सैनिक पीछे हटने को समझाया जाएगा।  

पीछे हटने से चीनी सेना का इनकार

भारतीय सेना को  उम्मीद थी कि पैंगोंग झील को छोड़कर पहले बाकी  इलाकों में यथास्थिति बहाल कर ली जाएगी। इसके बाद पैंगोंग झील इलाक़े से चीनी सैनिकों को पीछे जाने को कहा जाएगा।
चीनी सेना इस स्थिति से बचना चाह रही थी और उसे लग रहा था कि उस पर पैंगोंग झील में अतिक्रमण वाले इलाक़े से पीछे हटने को कहा जाएगा, इसलिये चीनी सेना ने गलवान घाटी इलाके में अप्रिय स्थिति पैदा की।

शी के समय तनाव बढा

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति व स्थिरता का माहौल बनाए रखने के लिये दोनों पक्षों ने 1993 और 1996 के बाद 2005 और फिर 2013 में परस्पर सहमति विकसित की थी, जिसका 2013 तक समुचित तरीके से पालन किया जा रहा था।

दोनों  देशों के सैनिक एक दूसरे के राष्ट्रीय पर्वों पर एक दूसरे को बधाइयाँ और मिठाइयों का आदान प्रदान करने लगे थे। लेकिन 2013 में शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बने, तब से चीनी सेना ने भारत के साथ लगी सीमाओं पर भारतीय सेना को तंग करना शुरू किया।

देपसांग, चुमार में घुसपैठ

2013 में लद्दाख के ही देपसांग और फिर 2014 में चुमार इलाकों में अतिक्रमण कर शांति व स्थिरता भंग करने का कदम उठाया, लेकिन भारतीय राजनयिकों औऱ सैन्य अधिकारियों ने बड़ी चतुराई से चीनी सेना को पीछे जाने को मजबूर किया।
शी जिनपिंग के शासन काल में चीनी सेना ने अपना रुख आक्रामक बनाया। यही वजह है कि भारत के साथ न केवल सीमांत इलाकों में बल्कि विश्व राजनियक मंचों पर भारत को नीचा दिखाने की रणनीति पर काम करना शुरू किया। चीन ने 48 देशों के न्युक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की सदस्यता रोकी।

भारत का विरोध

आतंकवाद के मसले पर भारत के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अज़हर को आतंकवादी घोषित करने के प्रस्ताव का वीटो किया, सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का ज़ोरदार विरोध बनाए रखा है।
इसके अलावा चीन ने दक्षिण एशिया में भारत को अलग थलग करने के लिये पड़ोसी देशों को तरह तरह से लुभाकर अपने प्रभाव में लाने और भारत विरोध का झंडा उठाने को प्रेरित किया।

भारत द्वारा लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित करना और गृहमंत्री द्वारा संसद में बयान देना कि अक्साइ चिन का इलाक़ा भारत वापस ले कर रहेगा, चीन को भड़काने वाला साबित हुआ।

क्यों भड़का चीन?

इस बारे में विदेश मंत्री एस. जयशंकर को खुद चीनी विदेश मंत्री वांग यी को सफ़ाई देनी पड़ी। लेकिन चीन नहीं माना और लद्दाख के इलाके में वह मौक़े का इंतजार कर रहा था कि कैसे भारत को दबाया जाए।  

सिक्किम झड़प

भारत औऱ चीन के बीच 1962  के युद्ध के बाद पहली बड़ी झड़प 1967 में सिक्किम के नाथु ला और चो ला में हुई थी, जिसमें चीनी सेना को मुँह की खानी पड़ी थी। इसके बाद दोनों सेनाओं के बीच 1975 में अरुणाचल प्रदेश के इलाक़े में झड़प हुई, जब असम राइफल्स के जवानों पर चीनी सैनिकों ने तब घात लगाकर हमला किया था। वे वास्तविक नियंत्रण रेखा की गश्ती कर रहे थे।

सिक्किम में हुई झड़प में भारतीय सेना के मुताबिक़ चीन के 340 सैनिक मारे गए थे और 450 घायल हुए थे जब कि भारतीय सेना ने अपने 88 जवानों के मारे जाने और 163 के घायल होने की बात कबूल की थी।

नाथु ला, सेबु ला

सिक्किम के दो इलाक़ में हुई इस झड़प को पूर्ण युद्ध की संज्ञा नहीं दी गई थी क्योंकि यह केवल दो सैन्य चौकियों तक ही सीमित थी। नाथु ला में झड़प 11 सितम्बर, 1967 को शुरू हुई जब नाथु ला और सेबू ला के इलाक़े में भारतीय सैनिक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कंटीली बाड़ लगा रहे थे।

उस दौरान चीनी सैनिकों ने एतराज किया और भारतीय चौकियों पर हमला बोल दिया। इसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी क़रारा जवाब दिया, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिक हताहत हुए औऱ चीनी सेना को पीछे हटना पडा था।
इस घटना के बाद 1975 में दोनों सेनाओं के बीच तनाव पैदा हुआ जब चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश के सीमांत इलाकों में गश्ती कर रहे भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया था। इसमें 4 भारतीय सैनिकों की जाने गई थी। ये सैनिक असम राइफल्स के थे।

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रंजीत कुमार
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