दुर्लभ खनिज के मामले में न केवल भारत बल्कि बाक़ी दुनिया चीन की मोहताज़ है जिसे ख़त्म करने में भारत ऑस्ट्रेलिया समझौता सहायक हो सकता है। इस इरादे से ही भारत और ऑस्ट्रेलिया ने चार जून को एक अहम समझौता किया है। भारत और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों- नरेन्द्र मोदी और स्कॉट मारीसन के बीच पहली ऑनलाइन वर्चुअल शिखर बैठक में दूरगामी महत्व का यह समझौता किया गया है जिसे यदि समुचित तरीक़े से लागू किया गया तो न केवल भारत बल्कि बाक़ी दुनिया चीन पर दुर्लभ खनिज के लिये अपनी निर्भरता समाप्त कर सकती है। दुर्लभ खनिज का चीन सबसे बड़ा उत्पादक और साथ ही सप्लायर भी। और चीन चाहे तो इनकी सप्लाई रोककर किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ सकता है।
आत्मनिर्भर बनना है तो दुर्लभ खनिज पर चीन का विकल्प बनना होगा
- विचार
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- 5 Jun, 2020

दुर्लभ खनिज के उत्पादन के मामले में आज चीन दुनिया का 90 प्रतिशत हिस्सा रखता है। 1993 में वह दुनिया का केवल 38 प्रतिशत ही उत्पादन करता था। भारत की दुर्लभ खनिज की अधिकांश ज़रूरतें चीन से पूरी होती हैं। साफ़ है कि चीन जब चाहे भारत की बाँहें मरोड़ सकता है।