दुनिया के सात अमीर देशों के संगठन जी-7 की शिखर बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने भारत सहित ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और रूस को न केवल निमंत्रण दिया है बल्कि दुनिया के इस सबसे विशिष्ट क्लब में शामिल कर इसे जी-11 या जी-12 करने की सम्भावना भी ज़ाहिर की है। अमेरिका चाहता है कि 2014 में इस संगठन से निकाले गए रूस को इसमें वापस लिया जाए जबकि चीन को इससे बाहर रखने का ही फ़ैसला किया गया है।
जी-7: सात अमीर देशों के साथ भारत, पर चीन को बाहर क्यों रखा गया?
- विचार
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- 1 Jun, 2020

अब कोरोना महामारी की मार से तबाह अमेरिका और यूरोपीय देशों ने चीन से ख़ासी नाराज़गी ज़ाहिर की है और रूस भी कोरोना महामारी की चपेट में आ चुका है इसलिये उसे अमेरिका और पश्चिमी देश अपने खेमे में लाकर चीन पर राजनयिक दबाव बढ़ा सकते हैं। भारत के लिये भी यह अनुकूल क़दम होगा क्योंकि भारत और रूस के बीच पारम्परिक तौर पर सामरिक साझेदारी का रिश्ता रहा है जिससे विश्व रंगमंच पर भारत को ताक़त मिलेगी।
हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं है कि जी-7 में भारत को भाग लेने का निमंत्रण मिला हो। सबसे पहले 2003 में फ्रांस में जी-8 शिखर बैठक के आयोजन के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को निमंत्रण मिला था और इसके बाद पिछले साल फ्रांस ने ही अपने यहाँ आयोजित जी-7 शिखर बैठक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा कुछ और विकासशील देशों के नेताओं को आमंत्रित किया था। 2003 में जी-7 जी-8 के नाम से जाना जाता था क्योंकि तब अमेरिका, इटली, जापान, कनाडा, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के अलावा रूस भी इसका सदस्य था। 2014 में जी-7 के बाक़ी सदस्यों ने रूस को उक्रेन के क्राइमिया इलाक़े पर क़ब्ज़ा करने के विरोध में निष्कासित कर दिया था।