भारत चीन सीमा विवाद के बीच एलएसी पर आसमान में फ़ाइटर जेट गरज रहे हैं। दोनों तरफ़ बड़ी तादाद में सैनिकों का जमावड़ा है। सैटेलाइट इमेज में भारत और चीन दोनों तरफ़ हथियार देखे जा सकते हैं। मई महीने में शुरू हुआ तनाव चीनी सैनिकों के साथ झड़प में भारत के 20 जवानों के शहीद होने और 70 से ज़्यादा सैनिकों के घायल होने के बाद अपने चरम पर पहुँच गया। लेकिन इस घटना के छह दिन बाद भी यह तनाव कम नहीं हुआ है और दोनों तरफ़ सैन्य हरकत तेज़ होने की ख़बरें हैं। ऐसे में इसकी आशंका है कि कभी भी झड़प दोबारा हो सकती है।
सबसे ज़्यादा चिंता की बात तो यह है कि 20 जवानों की मौत के बाद एलएसी यानी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सैन्य झड़प की आशंका काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई है। इसका इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि चीनी सेना की हरकत को देखते हुए भारतीय वायु सेना ने लेह-लद्दाख के इलाक़ों में कॉम्बैट एअर पैट्रोलिंग शुरू कर दी है। वायु सेना के अपाचे हेलिकॉप्टर और अपग्रेडेड मिग-29 भी गश्त लगा रहे हैं। अपाचे को आधुनिकतम असॉल्ट हेलिकॉप्टर माना जाता है, इसे हाल ही में वायु सेना में शामिल किया गया है।
चीन ने तिब्बत पठार पर कई हवाई पट्टियाँ बना रखी हैं जो भारतीय सीमा से बहुत दूर नहीं हैं। इन हवाई पट्टियों से किसी भी क्षण चीनी लड़ाकू जहाज़ उड़ान भर कर भारत की ओर आ सकते हैं।
झड़प की आशंका इसलिए और बढ़ गई है कि दोनों देशों के सैनिकों के बीच हथियार इस्तेमाल नहीं करने का जो समझौता रहा है वह गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ झड़प में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद दरकता दिख रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि दोनों तरफ़ बड़ी तादाद में सैनिक तैनात किए गए हैं और हथियारों को इकट्ठा किया जा रहा है।
ऐसा 45 साल में पहले कभी नहीं हुआ कि भारत-चीन सीमा पर सैनिकों की जान गई हो। लेकिन अब हुआ है।
लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून की रात भारत और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प में एक आर्मी अफ़सर सहित 20 भारतीय जवान शहीद हो गए। इस मामले में सैनिकों द्वारा किसी हथियार का इस्तेमाल नहीं किए जाने को लेकर सरकार पर निशाना साधा गया है। इस पर एक विवाद यह उठा है कि चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ के दौरान भारतीय सैनिकों को कथित तौर पर निहत्थे क्यों भेजा गया। राहुल गाँधी ने सवाल पूछा कि 'हमारे निहत्थे जवानों को वहाँ शहीद होने क्यों भेजा गया?'
इस पर जब विदेश मंत्री ने जवाब दिया तो और विवाद खड़ा हो गया। विवाद इसलिए कि जब सैनिक हथियार लेकर गए थे तो उन्होंने जानें जाने की नौबत आने के बाद भी इस्तेमाल क्यों नहीं किया।
राहुल के सवाल पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर कहा है, 'आइये हम सीधे तथ्यों की बात करते हैं। सीमा पर सभी सैनिक हमेशा हथियार लेकर जाते हैं, ख़ासकर जब पोस्ट से जाते हैं। 15 जून को गलवान में उन लोगों ने ऐसा किया। फेसऑफ़ (झड़प) के दौरान हथियारों का उपयोग नहीं करना लंबे समय से परंपरा (1996 और 2005 के समझौते के अनुसार) चली आ रही है।'
लेकिन विदेश मंत्री के इस जवाब पर सेना के सेवानिवृत्त अफ़सरों ने ही सवाल खड़े कर दिए। रिटायर लेफ़्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग ने इस पर कहा कि यह तो सीमा प्रबंधन के लिए बनी सहमति है, रणनीतिक सैन्य कार्रवाई के दौरान इसका पालन नहीं होता है। उन्होंने कहा है कि जब किसी सैनिक की जान का ख़तरा होता है, वह अपने पास मौजूद किसी भी हथियार का इस्तेमाल कर सकता है।
इस बीच अब सेना के पूर्व अफ़सर कह रहे हैं कि तनाव को कम नहीं किया गया तो ऐसी झड़पें और हो सकती हैं। पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'अगर डी-एस्केलेशन तेज़ी से नहीं होता है तो इस तरह के अधिक संघर्ष होने की संभावना बढ़ जाएगी। जब आपकी सेना आमने-सामने होती है तो बहुत तनाव, ग़ुस्सा होता है, और कोई भी छोटी घटना भड़क सकती है।'
बता दें कि एलएसी पर कई स्थानों पर सेना आमने-सामने हैं। यह जोखिम पैंगोंग त्सो में सबसे अधिक है। वहाँ के नवीनतम उपग्रह इमेजरी नव निर्मित चीनी चौकी और आगे की स्थिति दिखाती है। ये ठीक वहाँ पर हैं जहाँ दोनों सेनाओं को अलग करने वाली रिजलाइन है।
जो ताज़ा विवाद चल रहा है उसकी शुरुआत पैंगोंग त्सो में ही हुई थी, जहाँ 5/6 मई की रात दोनों पक्षों के बीच एक बड़ा विवाद हुआ था। एलएसी के विवादित स्वरूप के कारण उस क्षेत्र में गश्ती दल के बीच हाथापाई पहले भी होती रही है, लेकिन इस बार गंभीर तनाव और क्रोध के मौजूदा माहौल में यह अलग है। इस माहौल में यदि अब छोटी सी भी झड़प होती तो शायद वह धक्का-मुक्की, हाथापाई या लाठी और पत्थरों तक सीमित नहीं रहेगी।
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