आईएएस कैडर के नियमों में प्रस्तावित बदलाव को लेकर कांग्रेस शासित राज्यों के दो मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। पत्र लिखने वालों में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शामिल हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने पत्र में लिखा है कि इस संशोधन से लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा ‘स्टील फ्रेम ऑफ इंडिया’ बताई गई सेवाएं भविष्य में कमजोर होंगी।
विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि इससे राज्य के अधिकार कम करने की कोशिश की जा रही है।
इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इसके विरोध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था। मुख्यमंत्री ने इस क़दम को भारत की संवैधानिकता के बुनियादी ढांचे का विरोधी क़रार दिया।
गहलोत ने कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि वे हस्तक्षेप कर इन प्रस्तावित संशोधनों के माध्यम से भारत के संविधान एवं राज्यों की स्वायत्तता पर हो रहे आघात पर रोक लगाएं, ताकि हमारे देश के संविधान निर्माताओं द्वारा विकसित संघवाद की भावना को अक्षुण्ण रखा जा सके।
भूपेश बघेल ने कहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार अखिल भारतीय सेवाओं के काडर नियमों में संशोधन का पुरजोर विरोध करती है और इन्हें काडर नियमों को यथावत रखने की मांग करती है।
क्यों हो रहा है विरोध?
आईएएस नियमों में केंद्र के प्रस्तावित बदलावों का जबरदस्त विरोध हो रहा है। राज्य इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि ये बदलाव आईएएस अधिकारियों की पोस्टिंग पर निर्णय लेने के लिए केंद्र को व्यापक अधिकार देते हैं। नियमों में प्रस्तावित बदलाव को लेकर विपक्षी ही नहीं एनडीए व बीजेपी शासित राज्य भी विरोध कर रहे हैं। एनडीए शासित राज्यों में मध्य प्रदेश, बिहार और मेघालय शामिल हैं।
महाराष्ट्र कैबिनेट की बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और बिजली मंत्री नितिन राउत ने भी यह मुद्दा उठाया।
मौजूदा नियमों के तहत तीन अखिल भारतीय सेवाओं यानी एआईएस के अधिकारी - आईएएस, भारतीय पुलिस सेवा यानी आईपीएस और भारतीय वन सेवा के अधिकारी - एक कैडर के रूप में एक राज्य (या छोटे राज्यों के समूह) से जुड़े होते हैं। ये अधिकारी उसी कैडर में तब तक सेवा देते हैं जब तक कि वे केंद्र सरकार में सेवा देने का विकल्प नहीं चुनते हैं। यदि वे इस विकल्प का प्रयोग करते हैं तो संबंधित राज्य को केंद्र द्वारा पोस्टिंग के लिए विचार किए जाने से पहले उनके अनुरोध पर सहमत होना होता है।
अब केंद्र सरकार इस नियम में बदलाव करना चाहती है। उसने अपने ताज़ा मसौदे में दो और संशोधन शामिल किए हैं।
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, ये संशोधन किसी भी आईएएस अधिकारी को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर 'जनहित' में एक निर्धारित समय सीमा के भीतर बुलाने की शक्ति देते हैं। यदि राज्य अधिकारी को कार्यमुक्त करने में विफल रहता है, तो उसे केंद्र द्वारा निर्धारित नियत तारीख़ के बाद अपने आप कार्यमुक्त माना जाएगा।
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