गुजरात में 25 साल की बलात्कार पीड़िता के 28 सप्ताह के गर्भ का गर्भपात की अनुमति मांगने के मामले में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। शनिवार का दिन छुट्टी का होता है इसके बावजूद मामले की गंभीरता को देखते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की विशेष खंडपीठ ने इस मामले पर जल्दी सुनवाई की है। इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने पीड़ित महिला की गर्भपात वाली याचिका 17 अगस्त को खारिज कर दी थी। इसके बाद महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर तुरंत सुनवाई की गुहार लगाई थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए 19 अगस्त को सुनवाई हुई। इस केस में जस्टिस नागरत्ना ने गुजरात हाईकोर्ट को फटकार लगाई है। उन्होंने कहा कि इस तरह के केस में जब एक-एक दिन अहम होता है तो सुनवाई की तारीख क्यों टाली गई?
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मामले को स्थगित करने से बहुत समय बर्बाद हो
गयाबार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक खंडपीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि गुजरात हाईकोर्ट द्वारा शुरू में मामले को स्थगित करने से बहुत समय बर्बाद हो गया। जस्टिस नागरत्ना ने पूछा कि यह मामला 23 अगस्त तक के लिए क्यों लटका रहा? मेडिकल रिपोर्ट 10 अगस्त को आती है और फिर 13 दिन बाद के लिए सूचीबद्ध की जाती है? कितना मूल्यवान समय बर्बाद हुआ? ऐसे मामलों में तत्कालिकता की भावना होनी चाहिए और इन मामलों में उदासीन रवैया न अपनाएं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह अजीब बात है कि हाईकोर्ट ने मामले को 12 दिन बाद (मेडिकल रिपोर्ट के बाद) 23 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया। याचिकाकर्ता जब 26 सप्ताह की गर्भवती थी तब अदालत से उसने तुरंत गर्भपात की अनुमति की मांगी थी। इसलिए, 8 अगस्त से अगली लिस्टिंग तिथि तक का बहुमूल्य समय बर्बाद हो गया।कोई भी कोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है
सुनवाई को दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि पीड़िता इस समय 28 हफ्ते की गर्भवती है। हाईकोर्ट में जब उसने याचिका दायर की थी तब वह 26 हफ्ते की गर्भवती थी। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने 11 अगस्त को हमारी याचिका मंजूर की और 17 अगस्त को बिना कारण बताए केस स्टेटस रिजेक्ट दिखाया गया। तब तक एक सप्ताह और बीत गया। याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि कोई भी कोर्ट ऐसा कैसे कर सकता है। इस तरह के मामले में सुनवाई की तारीख 12 दिन बाद रखने के कारण कितना कीमती समय नष्ट हो गया है। अभी तक 17 अगस्त को जारी आदेश की कॉपी भी अपलोड नहीं की गई। उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी को गुजरात हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से इस मामले में पूछताछ करने का निर्देश देते हैं। उन्होंने कहा कि ऑर्डर की कॉपी सामने होना बेहद आवश्यक है। बिना उसको देखे कैसे कोई फैसला लिया जा सकता है।
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