सरकारी आँकड़ों के मुताबिक कोरोना महामारी से तीन लाख से अधिक लोगों की मौत होने के बावजूद केंद्र सरकार उससे निपटने के लिए आलोचकों की सलाह लेने या उनसे बात करने के बजाय उन पर ज़ोरदार हमले करने की नीति पर चल रही है।
इसे इससे समझा जा सकता है कि कोरोना से मौतों की संख्या से जुड़े राहुल गांधी के ट्वीट पर स्वास्थ्य मंत्री ने बेहद तीखा हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस गिद्ध की तरह है जो लाशों पर राजनीति करती है।
उन्होंने महामारी से हो रही मौतों से न इनकार किया, न इसे रोकने के लिए किसी रणनीति का एलान किया, पर यह ज़रूर कहा कि लाशों पर राजनीति करना कोई कांग्रेस से सीखे।
'लाशों पर राजनीति'
हर्षवर्द्धन ने कहा, 'लाशों पर राजनीति, कांग्रेस स्टाइल! पेड़ों पर से गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों, लेकिन लगता है उनकी ऊर्जा धरती के गिद्धों में समाहित हो रही है। राहुल गांधी जी को दिल्ली से अधिक न्यूयॉर्क पर भरोसा है। लाशों पर राजनीति करना कोई धरती के गिद्धों से सीखे।'
लाशों पर राजनीति, @INCIndia स्टाइल !
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) May 26, 2021
पेड़ों पर से गिद्ध भले ही लुप्त हो रहे हों, लेकिन लगता है उनकी ऊर्जा धरती के गिद्धों में समाहित हो रही है।@RahulGandhi जी को #Delhi से अधिक #NewYork पर भरोसा है।
लाशों पर राजनीति करना कोई धरती के गिद्धों से सीखे।@PMOIndia @BJP4India https://t.co/29D0yWU5wS
क्या है मामला?
बता दें कि 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने एक ख़बर छापी है जिसमें यह कहा गया है कि भारत सरकार कोरोना से जितने लोगों के मारे जाने की बात कहती है, उससे कई गुणा अधिक लोग मारे गए हैं।
अमेरिका से छपने वाले इस अख़बार ने कई सर्वेक्षणों और संक्रमण के दर्ज आँकड़ों के आकलन के आधार पर कहा है कि भारत में आधिकारिक तौर पर क़रीब 3 लाख मौतें बताई जा रही हैं, पर दरअसल मरने वालों की संख्या 6 लाख से लेकर 42 लाख के बीच होगी।
आख़िर 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने इसका आकलन कैसे किया?
'न्यूयॉर्क टाइम्स' का आकलन भारत में स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए आँकड़ों का भी इस्तेमाल करता है। लेकिन सबसे प्रमुख तौर पर इसने सीरो सर्वे की रिपोर्ट को आधार बनाया है। इसने भारत में कराए गए तीन सीरो सर्वे यानी देशव्यापी एंटीबॉडी टेस्ट के नतीजों का इस्तेमाल किया।
सरकार की आलोचना
बता दें कि इसके पहले प्रतिष्ठित पत्रिका 'द इकोनॉमिस्ट' ने कोरोना से लड़ने के मुद्दे पर भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीखी आलोचना की थी।
इसने लिखा था कि जब कोरोना की दूसरी लहर से देश त्रस्त था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग़ायब थे। 'द इकोनॉमिस्ट' में प्रकाशित तीखे लेख में कहा गया है कि प्रधानमंत्री को लाइमलाइट पसंद है, लेकिन तभी जब चीजें ठीक चल रही हों। इसने साफ़-साफ़ लिखा है कि जब हालात अच्छे नहीं होते हैं तो प्रधानमंत्री नहीं दिखते हैं।
ऐसा ही एक लेख 'आउटलुक' मैगज़ीन में भी हाल में छपा था जिसका शीर्षक था 'भारत सरकार लापता।' हालाँकि कई लोगों ने इस पर सवाल उठाए थे कि इस मैगज़ीन ने प्रधानमंत्री का नाम क्यों नहीं लिया।
लेकिन ऐसे लोगों की 'द इकोनॉमिस्ट' मैगज़ीन के इस लेख को लेकर ऐसी कोई शिकायत नहीं होगी क्योंकि इसमें साफ़-साफ़ प्रधानमंत्री के नाम का कई जगहों पर उल्लेख किया गया है।
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