देश भर में ज़बरदस्त विरोध-प्रदर्शन, अपने सहयोगी दलों की नाराज़गी के बीच एनडीए सरकार ने पूरे देश में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लागू करने के अपने फ़ैसले से पीछे हटने के संकेत दिए हैं। इस मामले में बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नक़वी और पार्टी के महासचिव राम माधव का बयान आया है। उनका कहना है कि देशव्यापी एनआरसी को लेकर सरकार के किसी भी स्तर पर अभी तक कोई चर्चा भी नहीं हुई है। उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया कि लोग बिना जन्मे एक बच्चे की बात कर रहे हैं और इसके बार में अफ़वाहें फैला रहे हैं। इसका क्या अर्थ निकाला जाए? नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में हो रहे हिंसात्मक प्रदर्शन और ज़बरदस्त दबाव के बाद क्या बीजेपी बैकफुट पर नहीं आ गई है? नागरिकता क़ानून वही है जिस पर गृह मंत्री बार-बार कहते रहे हैं कि इस क़ानून के बाद पूरे देश में एनआरसी को लाया जाएगा।
इस मुद्दे पर देश भर में भारी ग़ुस्सा है और कई जगहों पर प्रदर्शन हिंसात्मक हो चुका है। अब तक कम से कम 18 लोग मारे जा चुके हैं। विपक्षी दलों वाली पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश सहित कई राज्य सरकारें इसे लागू करने से इनकार कर चुकी हैं। इस बीच ही बीजेपी के सहयोगी दल बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू नेता नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी एलजेपी के नेता चिराग पासवान ने भी एनआरसी का विरोध किया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुक्रवार को कहा है कि बिहार में एनआरसी को लागू नहीं किया जाएगा। पहले पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार से मुलाक़ात के बाद कहा था कि मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया है कि वह बिहार में इसे लागू नहीं होने देंगे। इसके बाद शुक्रवार को पहली बार नीतीश कुमार का इस पर औपचारिक बयान आया।
इस बीच बीजेपी की एक और सहयोगी एलजेपी के नेता चिराग पासवान ने कहा, 'सीएबी को एनआरसी के साथ जोड़कर जिस तरह से देश में प्रदर्शन हो रहे हैं... यह साफ़ हो गया है कि सरकार एक महत्वपूर्ण वर्ग के बीच ग़लतफहमी को दूर करने में विफल रही है।' उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह को 6 दिसंबर को लिखे एक पत्र को भी ट्वीट किया जिसमें माँग की गई थी कि नागरिकता संशोधन बिल को संसद में पेश करने से पहले चर्चा के लिए एनडीए की बैठक बुलाई जाए।
इन्हीं बयानों के बीच ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नक़वी ने कहा, ‘एनआरसी असम तक सीमित है। देश के किसी अन्य हिस्से में एनआरसी की कोई योजना नहीं है। आप एक अजन्मे बच्चे के बारे में बात कर रहे हैं ... इसके बारे में अफ़वाह फैला रहे हैं।’
अख़बार से बातचीत में पूर्वोत्तर राज्यों के प्रभारी और बीजेपी महासचिव राम माधव ने कहा, ‘फ़िलहाल, नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर ध्यान केंद्रित किया गया है। एनआरसी एक प्रस्तावित गतिविधि है जिसे गृह मंत्री ने 2021 में लेने की घोषणा की है। एनआरसी के बारे में बात करना जल्दबाज़ी होगी क्योंकि सरकार ने अभी तक इसके बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं कराया है।’
इनके बयान से क्या यह संकेत नहीं मिलता है कि फ़िलहाल बीजेपी पीछे हटने की तैयारी में है? यदि बीजेपी पीछे हटती है तो अमित शाह के उस बयान का क्या होगा जिसमें वह बार-बार कहते हैं कि नागरिकता क़ानून के बाद पूरे देश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लाया जाएगा? उन्होंने संसद में भी यही कहा था। वह कई बार कह चुके हैं कि चुन-चुन कर घुसपैठियों को देश से बाहर भेजा जाएगा।
अमित शाह के इन्हीं बयानों को यह बताने के लिए ज़िक्र किया जाता है कि एनआरसी और नागरिकता क़ानून को एक साथ जोड़ कर देखे जाने की ज़रूरत है। बता दें कि एनआरसी में जो कोई मान्य दस्तावेज़ नहीं पेश कर पाएगा उसे घुसपैठिया माना जाएगा। यानी उसे देश से बाहर भेजा जाएगा। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि देश में ऐसे तो करोड़ों लोग घुसपैठिये क़रार दिए जाएँगे। सिर्फ़ असम में ही क़रीब 20 लाख लोग नागरिकता साबित नहीं कर पाए।
ऐसे में नागरिकता क़ानून के तहत मुसलिमों को छोड़कर बाक़ी सभी धर्मों के लोग फिर से भारत के नागरिक बन सकते हैं। क्योंकि नागरिकता क़ानून के तहत 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध नहीं माना जाएगा। उन्हें इस देश की नागरिकता दी जाएगी। हालाँकि, इस क़ानून में मुसलिमों के लिए यह प्रावधान नहीं है। इसी को लेकर विरोध हो रहा है।
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