लैंगिक असमानता पर बँटे समाज में तमाम मामलों में महिलाएँ पीछे हैं, लेकिन जब महामारी से बचने के लिए टीका लगाने जैसे मामले में भी उनके साथ भेदभाव किया जाए तो यह साफ हो जाता है कि इस अन्याय की जड़ें कितनी गहरी हैं।
ब्रिटिश समाचार एजेंसी 'रॉयटर्स' के अनुसार, भारत में जितने पुरुषों को कोरोना टीका दिया गया है, उससे 17 प्रतिशत कम महिलाओं को यह यह टीका मिला है।
उसका कहना है कि भारत में अब तक 10 करोड़ से ज़्यादा लोगों का आंशिक या पूर्ण टीकाकरण हो चुका है। आंशिक टीकाकरण का मतलब टीके की एक खुराक़ और पूर्ण टीकाकरण का मतलब टीके की दो खुराक़ें मिलना।
महिलाओं का टीकाकरण 17 प्रतिशत कम
दिल्ली और उत्त प्रदेश जैसी जगहों पर यह असमानता अधिक गहरी देखी गई है। केरल और छत्तीसगढ़ ही वे राज्य है, जहाँ टीकाकरण के मामले में महिलाएँ थोड़ा आगे हैं।
कोरोना टीकाकरण से जुड़ी सरकारी वेबसाइट 'कोविन' से लिए गए आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि सबसे ज़्यादा 52 प्रतिशत महिलाओं को केरल, 51 प्रतिशत महिलाओं को छत्तीसगढ़ और 50 प्रतिशत महिलाओं को हिमाचल प्रदेश में कोरोना वैक्सीन दिया गया है।
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सबसे बुरा हाल केंद्र-शासित क्षेत्र दादरा व नगर हवेली का है, जहाँ सिर्फ 32 प्रतिशत महिलाओं को कोरोना टीका दिया गया है।
वजह क्या है?
गुजरात के एक बड़े सरकारी अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट प्रशांत पांड्या ने 'रॉयटर्स' से कहा, 'हमने पाया है कि पुरुष जब कामकाज के सिलसिले में बाहर निकलते हैं, वे कोरोना टीका भी लगवा लेते हैं, पर महिलाएँ घर के कामकाज में इस तरह फँसी रहती हैं कि वे बाहर नहीं निकल पाती हैं और कोरोना टीकाकरण में पीछे छूट गई हैं।'
गुजरात और राजस्थान में कुछ महिलाओं ने गुजारिश की कि स्वास्थ्य कर्मी घर-घर जाकर कोरोना टीका दें क्योंकि घरेलू कामकाज और बच्चों को छोड़ कर टीकाकरण के लिए जाना मुश्किल है।
लेकिन सरकार का कहना है कि कोरोना टीका देने के बाद उसके प्रभावों पर नज़र रखने के लिए लोगों को थोड़ी देर के लिए वहीं रोके रखना ज़रूरी है और ऐसे में घर-घर जाकर टीका देना व्यावहारिक नहीं है।
बंगाल में अनूठा प्रयोग
लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
पश्चिम बंगाल सरकार चुनिंदा इलाक़ों में बस भेजती है, टीका देने के बाद बस वहीं खड़ी रहती है और लोगों को भी वहीं बिठाए रखा जाता है। थोड़ी देर बाद वह बस आगे बढ़ती है और अगले इलाक़े में ऐसा ही करती है।
जागरुकता फैलाए सरकार
यह ग्रामीण इलाक़ों व कस्बों में हो रहा है और इसमें महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी कोरोना वैक्सीन दिया जा रहा है।
एक दसूरी और बड़ी वजह कोरोना टीका को लेकर फैलाई गई अफवाहों की भूमिका भी है। कुछ इलाक़ों अफवाहें फैला दी गई हैं कि कोरोना टीका लगाने से महिलाओं की माहवारी में दिक्कत आती है, उनका चक्र बिगड़ जाता है। यह अफवाह भी फैला दी गई है कि कोरोना टीका से महिलाएँ बाँझ हो सकती हैं। ये दोनों ही बातें बेबुनियाद हैं।
पूर्व ब्यूरोक्रेट और स्वास्थ्य सेवा से जुडी हुई सुधा नारायण ने 'रॉयटर्स' से कहा कि सरकार को गाँवों में बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाना चाहिए और महिलाओं को समझाना चाहिए कि कोरोना टीका अनिवार्य है और वे हर हालत में टीकाकरण करवाएँ।
भारत की जनसंख्या लगभग 130 करोड़ है, जिनमें पुरुषों की जनसंख्या महिलाओं से छह प्रतिशत अधिक है।
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बता दें कि कोरोना टीके की किल्लत के बीच केंद्र सरकार ने वैक्सीन खरीदने के नए ऑर्डर दिए हैं और दावा कर रही है कि अगस्त से दिसंबर के बीच उसे टीके की 44 करोड़ खुराक़ें मिल जाएंगी।
स्वास्थ्य मंत्रालय के इस एलान के एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने कहा था कि 18 साल से अधिक की उम्र के हर आदमी को मुफ़्त कोरोना टीका दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ये टीके खरीद कर राज्यों को मुफ़्त देगी।
मंगलवार को मंत्रालय ने कहा कि कोवीशील्ड की 25 करोड़ और कोवैक्सीन की 19 करोड़ खुराक़ों के आर्डर दे दिए गए हैं। सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया कोवीशील्ड और भारत बायोटेक कोवैक्सीन बना रहा है।
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