उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। वे काफी दिनों से बीमार थे। केंद्र सरकार व बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने अस्पताल जाकर उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली थी। कल्याण सिंह के निधन पर उत्तर प्रदेश में 3 दिन के राजकीय शोक का एलान किया गया है। उनके पार्थिव शरीर को लखनऊ में उनके निवास स्थान पर रखा गया है।
वह इन दिनों संजय गांधी पीजीआई में भर्ती थे। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत तमाम नेताओं ने गहरा दुख व्यक्त किया है।
कल्याण सिंह का नाम उत्तर प्रदेश बीजेपी के बड़े नेताओं में शुमार था। उनके बेटे राजवीर सिंह एटा सीट से सांसद हैं। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मसजिद गिराए जाने के वक़्त कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।
कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी, 1932 को अलीगढ़ में हुआ था। वह दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। कल्याण सिंह बाल जीवन से ही आरएसएस से जुड़ गए थे और 1967 में पहली बार अतरौली सीट से विधायक चुने गए थे। वह पहली बार 1991 और दूसरी बार 1997 में मुख्यमंत्री चुने गए थे।
सितंबर, 2019 में राजस्थान के राज्यपाल के तौर पर 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद उन्होंने फिर से बीजेपी की सदस्यता ली थी। लोध समुदाय से आने वाले कल्याण सिंह को सीबीआई की विशेष अदालत ने बाबरी मसजिद विध्वंस मामले में बरी कर दिया था।
छोड़ दी थी बीजेपी
एक वक़्त ऐसा भी था, जब कल्याण सिंह ने बीजेपी छोड़ दी थी और जनक्रांति पार्टी का गठन किया था। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया था। 2014 में पहली बार केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद उन्हें राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया था। कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह भी राजनीति में हैं। संदीप सिंह योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं।
मसजिद गिराए जाने के ख़िलाफ़ थे
साल 2019 में रिटायर्ड आईएएस अफ़सर अनिल स्वरूप की किताब ‘नॉट जस्ट अ सिविल सर्वेंट’ आई थी। इसमें उन्होंने लिखा था कि कल्याण सिंह बाबरी मसजिद गिराए जाने के ख़िलाफ़ थे। अनिल स्वरूप मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के बेहद क़रीबी अफ़सरों में शामिल थे और उनके मुख्यमंत्री रहते हुए सूचना और जनसंपर्क निदेशक के पद पर तैनात रहे थे।
सोशल इंजीनियरिंग से निकले थे
1992 में जब बाबरी मसजिद का विध्वंस हुआ, लगभग उसी दौर में पार्टी के तत्कालीन संगठन मंत्री के. गोविंदाचार्य बीजेपी में सोशल इंजीनियरिंग कर रहे थे और पार्टी संगठन में पिछडे़ तबक़े को बड़े पैमाने पर ऊपर लाने की कोशिश में जुटे थे।
गोविंदाचार्य का मानना था कि हिंदू समाज में आधी से ज़्यादा आबादी पिछड़ों, दलितों की है, ऐसे में पार्टी को अगर सही मायने में अखिल भारतीय पार्टी बनना है तो उसे पिछड़ों, दलितों को बड़ी ज़िम्मेदारियां देनी पड़ेंगी और इस समाज के नेताओं को राष्ट्रीय भूमिका देनी होगी। कल्याण सिंह इसी सोशल इंजीनियरिंग की उपज माने जाते थे।
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