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प्रजनन दर: बच्चे पैदा हो रहे कम, नरसिंहानंदों की नहीं सुन रहे लोग

भारत के यति नरसिंहानंदों और साध्वी ऋतम्भराओं की ज़्यादा बच्चे पैदा करने की अपील पर देश के लोग लगता है ध्यान नहीं दे रहे हैं। अगर ध्यान दे रहे होते तो देश के हर समुदाय में प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) घट नहीं रही होती। तमाम धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर लोग भले ही बंट गए हों लेकिन इस मुद्दे पर एकमत हैं कि भारत में बेतहाशा बढ़ती आबादी पर अंकुश लगना चाहिए।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस -5) के पांचवें दौर की रिपोर्ट बता रही है कि भारत की कुल प्रजनन दर 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है जो जनसंख्या नियंत्रण उपायों की महत्वपूर्ण प्रगति को बताती है। कुल प्रजनन दर (TFR) जिसे प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या के रूप में मापा जाता है, राष्ट्रीय स्तर पर NFHS-4 और 5 के बीच 2.2 से घटकर 2.0 हो गई है। यानी आसान शब्दों में कहें तो लोग कम बच्चे पैदा कर रहे हैं।
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प्रजनन दर हिन्दू, मुसलमानों, सिखों और ईसाइयों समेत अन्य समुदायों में भी घटी है। भारत में कतिपय संगठन, लोग, नेता ये प्रचार जोरशोर से करते रहे हैं कि मुसलमान ज़्यादा बच्चे पैदा करते हैं। भारत में सिर्फ़ पांच राज्य ऐसे हैं हैं, जो 2.1 के प्रजनन क्षमता के प्रतिस्थापन स्तर से ऊपर हैं। बिहार (2.98), मेघालय (2.91), उत्तर प्रदेश (2.35), और झारखंड (2.26) मणिपुर (2.17) सहित।

एनएफएचएस -5 सर्वे देश के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के 707 जिलों (मार्च, 2017 तक) के लगभग 6.37 लाख सैंपल घरों में किया गया था, जिसमें 7,24,115 महिलाओं और 1,01,839 पुरुषों को अलग-अलग अनुमान के लिए शामिल किया गया था।

समग्र गर्भनिरोधक प्रसार दर (सीपीआर) देश में 54 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत हो गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्भनिरोधकों के आधुनिक तरीकों का उपयोग भी लगभग सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में बढ़ गया है। परिवार नियोजन की जरूरतों में 13 प्रतिशत से 9 प्रतिशत की महत्वपूर्ण गिरावट देखी गई है।
NHFS-5 रिपोर्ट ने यह भी उल्लेख किया है कि अस्पतालों में जन्म भारत में 79 फ़ीसदी से बढ़कर 89 फ़ीसदी हो गया है। यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लगभग 87 प्रतिशत जन्म छोटे-बड़े अस्पतालों में दिया जाता है और शहरी क्षेत्रों में यह 94 फ़ीसदी है। सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले चार वर्षों में भारत में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग का स्तर 38 से 36 प्रतिशत तक मामूली रूप से कम हो गया है। 2019-21 में शहरी क्षेत्रों (30 प्रतिशत) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (37 प्रतिशत) में बच्चों में स्टंटिंग अधिक है। स्टंटिंग में भिन्नता पुडुचेरी में सबसे कम (20 प्रतिशत) और मेघालय में उच्चतम (47 प्रतिशत) है।

बढ़ रहा है मोटापा

एनएफएचएस-4 की तुलना में एनएफएचएस-5 में अधिकतर राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में अधिक वजन या मोटापे की व्यापकता बढ़ी है। राष्ट्रीय स्तर पर यह महिलाओं में 21 प्रतिशत से बढ़कर 24 प्रतिशत और पुरुषों में 19 प्रतिशत से बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया है। केरल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश, गोवा, सिक्किम, मणिपुर, दिल्ली, तमिलनाडु, पुडुचेरी, पंजाब, चंडीगढ़ और लक्षद्वीप (34-46 प्रतिशत) में एक तिहाई से अधिक महिलाएं अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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