कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ एक साल से आन्दोलन चला रहे किसानों ने सोमवार को प्रस्तावित संसद मार्च टाल दिया है।
सरकार ने सोमवार को ही इन क़ानूनों को वापस लेने से जुड़ा विधेयक संसद में पेश करने का एलान किया है।
किसानों ने इसी दिन संसद कूच करने का एलान किया था।
क्या कहना है किसानों का?
किसान नेता दर्शनपाल ने संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक के बाद कहा कि अगली बैठक 4 दिसंबर को होगी, जिसमें आन्दोलन के आगे की रूपरेखा पर विचार किया जाएगा।
उन्होंने कहा, "हमने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था, जिसमें हमनें कई माँगे रखी थीं। हमने माँग की थी किसानों के ऊपर जो मुक़दमे दर्ज हुए थे, उन्हें रद्द किया जाए, एमएसपी की क़ानूनी गारंटी दी जाए। जो किसान इस आंदोलन में शहीद हुए हैं उनको मुआवजा दिया जाए और पराली जलाने और बिजली से जुड़े विधेयक भी रद्द किया जाएं।"
इसके साथ ही सरकार ने किसानों की एक और माँग मान ली है।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शनिवार को कहा कि पराली जलाने को अब अपराध नहीं माना जाएगा।
कृषि मंत्री तोमर ने किसानों से अपील की है कि अब उनकी लगभग सभी माँगें मान ली गई है, ऐसे में उन्हें आंदोलन खत्म करके घर लौट जाना चाहिए।
बता दें कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिसंबर 2015 में फसल अवशेषों को जलाने पर रोक लगाते हुए इसका उल्लंघन करने वालों पर दंड लगाने का प्रावधान किया था।एनजीटी के अनुसार, पराली जलाते पकड़े जाने पर 2 एकड़ भूमि तक 2,500 रुपये, दो से पाँच एकड़ भूमि तक 5,000 रुपये और पाँच एकड़ से ज्यादा की भूमि पर 15,000 रुपये का तक का जुर्माना लगाया जा सकता था।
किसान संयुक्त मोर्चे का यह एलान इसलिए अहम है कि इसने ठीक इसके पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर आन्दोलन तेज करने की बात कही थी।
किसानों की मांग है कि घोषित एमएसपी से नीचे फ़सलों की खरीद क़ानूनी रूप से वर्जित हो, यानी कोई भी व्यक्ति, व्यापारी या संस्था जब फ़सलों का क्रय करे तो एमएसपी वैधानिक रूप से 'आरक्षित मूल्य' हो जिससे कम मूल्य पर कोई खरीद ना हो।
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क्या कहा टिकैत ने?
यह भी अहम है कि किसान नेता राकेश टिकैत कह चुके हैं कि एमएसपी पर गारंटी क़ानून के बिना बात आगे नहीं बढ़ सकती।
उन्होंने कहा है कि सरकार को बातचीत कर किसानों की बाक़ी मांगों पर भी फ़ैसला लेना चाहिए।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीजेपी को इस बात का डर था कि किसान आंदोलन के कारण उसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव में बड़ा सियासी घाटा हो सकता है।
मोदी को फ़ीडबैक
संघ की ओर से भी बीजेपी नेतृत्व और मोदी सरकार को किसान आंदोलन के बारे में फ़ीडबैक दिया जा चुका था कि यह भारी पड़ सकता है।
ऐसे में मोदी सरकार को किसानों और विपक्ष के राजनीतिक दबाव के आगे झुकते हुए उनकी मांगों को मानना ही पड़ा। अब देखना होगा कि सरकार किसानों की इन बाक़ी मांगों को लेकर क्या रुख अपनाती है।
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