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किसान नेता जगजीत सिंह दल्लेवाल

अगर मैं मर जाऊं तो भी किसान आंदोलन जिन्दा रहना चाहिएः डल्लेवाल

किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल का आमरण अनशन गुरुवार को 45वें दिन में प्रवेश कर गया। उन्होंने अपने साथी प्रदर्शनकारियों से उनकी मृत्यु की स्थिति में भी आंदोलन जारी रखने का आग्रह किया है। अपने करीबी साथी काका सिंह कोटड़ा को दिए एक मार्मिक संदेश में डल्लेवाल ने कहा कि उनके पार्थिव शरीर को विरोध स्थल पर रखा जाए और किसी अन्य नेता द्वारा उपवास जारी रखा जाए। 
कोटड़ा ने कहा कि अनशनकारी नेता ने किसी से मिलने से इनकार कर दिया है और उनसे तथा अन्य नेताओं से आंदोलन की ओर से अधिकारियों से बातचीत करने को कहा है। कोटड़ा ने कहा, "जज नवाब सिंह की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति से मुलाकात के कुछ घंटों बाद उनकी हालत खराब हो गई।"
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समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय महासचिव सांसद हरेंद्र मलिक ने डल्लेवाल से अपना अनशन खत्म करने का आग्रह किया। मलिक और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन डल्लेवाल अपनी खराब सेहत की वजह से बात करने में असमर्थ थे। कोटड़ा ने अखिवेश यादव को बताया कि डल्लेवाल किसानों की मांगें पूरी होने तक अनशन खत्म नहीं करने के अपने संकल्प पर कायम हैं।
डल्लेवाल की सेहत पर नजर रख रही पांच डॉक्टरों की टीम ने उनकी हालत पर चिंता जताई है। डॉ. गुरसिमरन सिंह बुट्टर ने कहा, "26 नवंबर से केवल पानी पी रहे डल्लेवाल ने कैंसर की दवा लेना भी बंद कर दिया है।" डॉ. कुलदीप कौर धल्लीवाल ने बताया कि डल्लेवाल की महत्वपूर्ण मांसपेशियों को नुकसान पहुंच गया है, सोडियम का लेवल कम हो गया है। शरीर में खून की कमी हो गई है।
अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने का कहना है कि भूख हड़ताल का सिख धर्म समर्थन नहीं करता। भूख हड़ताल से जान देना सिख धर्म की अवधारणा नहीं है। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि अकाल तख्त सिखों का सर्वोच्च निकाय है, लेकिन इसने अभी तक दल्लेवाल को अपना अनशन समाप्त करने का निर्देश नहीं दिया है। उन्होंने कहा, अगर ऐसे निर्देश जारी किए गए तो फोरम इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक बैठक आयोजित करेगा।
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सारे मामले में केंद्र सरकार की भूमिका सबसे खराब है। उसने किसानों से पिछले साल और इस साल एक-दो दौर की बातचीत की और मामला आगे नहीं बढ़ा। अब उसने किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। सुप्रीम कोर्ट की कमेटी अभी अपने तामझाम में उलझी है और उसे बैठक करने के लिए पैसा चाहिए। जो एक दौर की बातचीत उसने चंद किसान संगठनों से की है, उससे कुछ हासिल नहीं हुआ। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी अगर किसानों के हित में कोई रिपोर्ट देगी तो क्या सुप्रीम कोर्ट उसे केंद्र सरकार से लागू करवा पायेगा। स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट धूल चाट रही है। केंद्र आजतक उस पर ही अमल नहीं कर पाई है।
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क़मर वहीद नक़वी
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