कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन का अगला पड़ाव उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड होगा। संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में दोनों ही राज्यों में किसान घर-घर जाकर अपनी बात रखेंगे। किसान नेता राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव ने सोमवार को लखनऊ में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेन्स में मोदी और योगी सरकार पर जमकर हमले किए और किसानों को धोखा देने का आरोप लगाया।
राकेश टिकैत ने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश सरकार ढंग से काम नहीं करेगी तो लखनऊ को भी दिल्ली बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह दिल्ली के चारों तरफ़ के रास्ते सील हैं, उसी तरह लखनऊ के भी रास्ते सील किए जाएंगे। उन्होंने दोहराया कि जब तक भारत सरकार कृषि क़ानूनों का वापस नहीं लेती, तब तक आंदोलन ख़त्म नहीं होगा।
मुज़फ्फरनगर में होगी राष्ट्रीय महापंचायत
टिकैत ने कहा कि 5 सितंबर को मुज़फ्फरनगर में राष्ट्रीय महापंचायत रखी गई है और इसमें मिशन यूपी-उत्तराखंड की रणनीति को बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि कैमरा, किसान और कलम पर बंदूक का पहरा है और इसे हटाना होगा।
टिकैत ने कहा कि मायावती और अखिलेश यादव की सरकार में गन्ने का दाम बढ़ा लेकिन योगी सरकार ने एक रूपये भी दाम नहीं बढ़ाया। उन्होंने कहा कि देश में सबसे महंगी बिजली उत्तर प्रदेश में है। किसान नेता ने कहा कि उत्तर प्रदेश की ही तरह गुजरात भी पुलिस स्टेट बनता जा रहा है और हमने जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में इसे देखा है।
उन्होंने कहा कि हम उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के साथ ही देश के बाक़ी हिस्सों में भी जाएंगे।
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बीजेपी नेताओं का होगा विरोध
योगेंद्र यादव ने कहा कि मिशन यूपी-उत्तराखंड के तहत किसान आंदोलन को और ज़्यादा असरदार और तेज़ बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि एमएसपी को लेकर जो वादे किए गए, वे पूरे नहीं किए गए।
यादव ने कहा कि मिशन यूपी-उत्तराखंड के तहत आने वाले कुछ महीनों में रैलियां, यात्राएं, महापंचायतें, बैठकें आयोजित की जाएंगी और गांवों के अंतिम व्यक्ति तक हम लोग पहुंचेंगे। उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा की तरह उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के नेताओं का विरोध किया जाएगा।
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आंदोलन के 8 महीने पूरे
किसान आंदोलन को लेकर पिछले 8 महीने से देश का सियासी माहौल बेहद गर्म है। तमाम विपक्षी दल किसानों की आवाज़ को संसद में उठा रहे हैं। सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत भी हुई थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला था। किसानों का कहना है कि तीनों कृषि क़ानून रद्द होने और एमएसपी को लेकर गारंटी एक्ट बनने तक वे अपना आंदोलन जारी रखेंगे। तमाम विपक्षी दलों के किसान आंदोलन को समर्थन के बाद सरकार घिर गई है।
सिंघु, टिकरी और ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर बड़ी संख्या में किसान धरने पर बैठे हुए हैं। पंजाब से चले किसान 26 नवंबर को दिल्ली के बॉर्डर्स पर पहुंचे थे और बाद में हरियाणा-राजस्थान में भी किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। इसके बाद किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
इस दौरान किसान ठंड, गर्मी और भयंकर बरसात से भी नहीं डिगे और खूंटा गाड़कर बैठे हैं। इस दौरान उन्होंने रेल रोको से लेकर भारत बंद तक कई आयोजन किए।
निश्चित रूप से किसानों का मिशन यूपी-उत्तराखंड बीजेपी के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकता है। उत्तर प्रदेश में अगर हार मिली तो इसका सीधा मतलब होगा- 2024 में बीजेपी की सत्ता में वापसी की उम्मीदों का धुंधला हो जाना। क्या बीजेपी और संघ इस ख़तरे से अनजान हैं?
दबाव में आएगी सरकार?
26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद से ही किसानों और सरकार के बीच बातचीत बंद है। क्या केंद्र सरकार किसानों की 5 सितंबर को होने वाली राष्ट्रीय महापंचायत के दबाव में आएगी। क्या वह उन्हें बिना शर्त बातचीत के लिए बुलाएगी। किसान नेता राकेश टिकैत ने साफ कहा है कि मुज़फ्फरनगर की महापंचायत में किसान अपनी रणनीति का एलान करेंगे और तब तक सरकार के पास वक़्त बचा हुआ है।
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