कृषि क़ानूनों के मसले पर आमने-सामने आ चुके किसानों और सरकार के बीच जारी गतिरोध ख़त्म नहीं हो रहा है। सरकार और किसान दोनों अपनी बातों पर अड़े हैं और ऐसे में इनके बीच होने वाली बैठकें बेनतीजा साबित हो रही हैं। शुक्रवार को हुई नौवें दौर की बैठक से भी कोई हल नहीं निकला और किसान नेता सरकार से बेहद नाराज़ दिखाई दिए।
एनडीटीवी के मुताबिक़, बैठक के बाद किसान नेता डॉ. दर्शनपाल सिंह ने कहा, ‘बैठक 120 फ़ीसदी फ़ेल रही। हमने सुझाव दिया कि सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम को ख़त्म करने के बजाए इसमें किए गए बदलावों को वापस ले ले लेकिन कृषि मंत्री ने इस पर कुछ नहीं कहा।’
सरकार और किसानों के बीच अगली दौर की बैठक 19 जनवरी को दिन में 12 बजे विज्ञान भवन में होगी। इसी दिन सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मामले में बनाई गई कमेटी भी अपनी पहली बैठक करेगी।
डॉ. दर्शनपाल सिंह ने कहा कि सरकार पर दबाव बढ़ाने के लिए किसान संगठनों ने 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली को जोर-शोर से और हर हाल में निकालने का फ़ैसला किया है। बैठक में शामिल किसान संगठनों के नेताओं ने कहा कि वे केंद्र सरकार के साथ बातचीत जारी रखेंगे।
बैठक के दौरान किसान नेताओं ने उनके आंदोलन का समर्थन करने वालों के ख़िलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही छापेमारी और उनके ख़िलाफ़ यूएपीए जैसा कड़ा क़ानून लगाए जाने का मुद्दा उठाया। इस पर सरकार की ओर से कहा गया कि वह इस मामले को देखेगी।
कुछ किसान नेताओं ने सरकार के साथ होने वाली बैठकों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लाने की मांग की। अब तक इन बैठकों में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, वाणिज्य राज्य मंत्री और पंजाब से सांसद सोम प्रकाश और कृषि विभाग के अफ़सर शामिल होते हैं।
‘रास्ता निकालने की कोशिश’
बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों की शंकाओं का समाधान करने की कोशिश की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। उन्होंने कहा, ‘हमारी कोशिश है कि बातचीत के जरिये रास्ता निकले और किसान आंदोलन ख़त्म हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जो कमेटी बनाई है, वह जब भारत सरकार को बुलाएगी तो हम उसके सामने अपना पक्ष रखेंगे। यह कमेटी भी इस मसले का हल ढूंढने के लिए ही बनाई गई है।’ उन्होंने कहा कि किसान भी आगे की बातचीत जारी रखना चाहते हैं।
कांग्रेस ने किया राजभवनों का घेराव
कृषि क़ानूनों के मसले पर ख़ासी मुखर कांग्रेस ने शुक्रवार को देश भर में राज्यपालों के आवास (राजभवन) का घेराव किया। दिल्ली में इसकी अगुवाई कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने की। कांग्रेस ने 15 जनवरी को किसान अधिकार दिवस के रूप में मनाने का एलान किया था। कांग्रेस लगातार कृषि क़ानूनों को रद्द करने की मांग कर रही है।
राहुल गांधी ने एक बार फिर कहा है कि सरकार को ये क़ानून वापस लेने ही होंगे। राहुल ने कहा कि वे किसानों के साथ खड़े हैं और आगे भी खड़े रहेंगे। बता दें कि राहुल इस मसले पर पंजाब में ट्रैक्टर यात्रा भी निकाल चुके हैं और राष्ट्रपति से भी मिल चुके हैं।
किसान आंदोलन और कमेटी पर देखिए वीडियो-
कृषि क़ानून बेहतर: आईएमएफ़
एक ओर देश में कृषि क़ानूनों को लेकर घमासान मचा हुआ है और किसान इन क़ानूनों को अपने लिए डेथ वारंट बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ ने इन क़ानूनों को बेहतर बताया है। आईएमएफ़ ने कहा है कि ये क़ानून कृषि क्षेत्र में सुधारों की दिशा में एक अहम क़दम हैं। आईएमएफ़ ने यह भी कहा है कि हालांकि जो लोग नए कृषि क़ानूनों से प्रभावित होंगे उन्हें उतनी ही मदद भी दी जानी चाहिए।किसान ट्रैक्टर परेड की तैयारी
इस सबके बीच, सभी किसान, नौजवान और तमाम यूनियनों से जुड़े लोग 26 जनवरी को होने वाली किसान ट्रैक्टर परेड की तैयारियों में जुटे हुए हैं। पंजाब-हरियाणा के हर गांव से बड़ी संख्या में ट्रैक्टर-ट्रालियों को दिल्ली लाने के लिए तैयार किया जा रहा है। इनमें महिलाएं और बच्चे भी दिल्ली आएंगे। केएमपी एक्सप्रेस वे पर किसान ट्रैक्टर रैली निकालकर अपनी ताक़त का इजहार कर चुके हैं और 26 तारीख़ को लेकर सरकार को चेता चुके हैं कि वह इन क़ानूनों को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगे।कमेटी को लेकर विवाद
किसानों व सरकार के बीच जारी गतिरोध को ख़त्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 4 सदस्यों की एक कमेटी बनाई लेकिन कमेटी को लेकर विवाद शुरू हो गया और कहा गया कि इसमें शामिल सभी सदस्य कृषि क़ानूनों के घोर समर्थक रहे हैं।कमेटी से अलग हुए मान
इस कमेटी में शामिल भूपिंदर सिंह मान ने गुरूवार को ख़ुद को इससे अलग कर लिया। मान भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और ऑल इंडिया किसान को-ऑर्डिनेशन कमेटी के प्रमुख भी हैं। मान ने कहा है कि वह पंजाब और देश के किसानों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। ऐसे में कमेटी के गठन पर ही सवाल खड़े हो गए हैं। मान के इस फ़ैसले का किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने स्वागत किया है और कहा है कि किसानों के लिए किसी भी कमेटी का कोई महत्व नहीं है क्योंकि कमेटी का गठन करना उनकी मांग ही नहीं है।किसान संगठनों के नेताओं ने कमेटी के सामने पेश होने और उससे बात करने से साफ इनकार कर दिया है। किसानों का कहना है कि कमेटी में शामिल चारों लोग पहले ही कृषि क़ानूनों का समर्थन कर चुके हैं, ऐसे में आख़िर वे इन कमेटियों के सामने क्यों पेश होंगे। उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि वे इस आंदोलन को और तेज़ करेंगे। इससे इस मसले का हल निकलना और मुश्किल हो गया है।
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