दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा नहीं रहे। माओवादी संबंध के आरोप में उन्हें 10 साल जेल में रखा गया था। वह इस साल की शुरुआत में ही इन आरोपों से बरी हुए थे। साईबाबा ने शनिवार शाम को हैदराबाद के निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज अस्पताल में अंतिम सांस ली।
57 वर्षीय साईबाबा को पित्ताशय की थैली के संक्रमण के लिए सर्जरी के बाद पोस्ट-ऑपरेटिव जटिलताओं के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वह पिछले 20 दिनों से हैदराबाद में निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में भर्ती थे। साईबाबा शुरू से ही लकवाग्रस्त थे और उनका शरीर 90 प्रतिशत अक्षम था। दिनचर्या में व्हीलचेयर ही उनका सहारा थी।
विकलांगता की वजह से व्हीलचेयर पर चलने वाले साईबाबा को माओवादी संगठनों से संबंध रखने के आरोप में गैरक़ानूनी गतिविधियां रोकथाम क़ानून यानी यूएपीए के तहत साल 2014 में गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें अदालत ने उम्रक़ैद की सज़ा दी थी।
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद साईबाबा 2017 से जेल में बंद थे। इससे पहले, वह जमानत मिलने से पहले 2014 से 2016 तक जेल में थे।
उच्च न्यायालय ने उनकी सज़ा को पलटते हुए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत अभियोजन के लिए दी गई मंजूरी को अमान्य करार दिया।
साईबाबा पर अन्य आरोपियों- जेएनयू के छात्र हेम मिश्रा और उत्तराखंड के पत्रकार प्रशांत राही- की प्रतिबंधित संगठनों के सदस्यों के साथ बैठक आयोजित करने का आरोप था। जेल में बिताए गए समय के दौरान उनके परिवार और दोस्तों ने उनकी रिहाई की लड़ाई लड़ी। उन्होंने उनका स्वास्थ्य तेजी से बिगड़ने का हवाला देते हुए रिहाई की मांग की थी।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विनय जोशी और वाल्मीकि एसए मेनेजेस की खंडपीठ ने उन पर लगाई गई आजीवन कारावास की सजा को खारिज कर दिया और मामले में पांच अन्य आरोपियों को भी बरी कर दिया। पीठ ने कहा कि वह सभी आरोपियों को बरी कर रही है क्योंकि अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ उचित संदेह से परे मामला साबित करने में विफल रहा।
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