सरकारी वकील श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि अभियुक्तों के वकील राजीव मोहन द्वारा दी गई दलीलें तारीफ के काबिल नहीं हैं। 2018 में दायर एक आपराधिक अपील के बाद सरताज खान बनाम उत्तराखंड राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए, सरकारी वकील ने अदालत में कहा: "...सीआरपीसी की धारा 188 के संदर्भ में बचाव पक्ष की ये दलीलें कि धारा 188 की रोक तब लागू होती है जब अपराध पूरी तरह से भारत के बाहर किया जाता है, अन्यथा नहीं। उन्होंने तर्क दिया कि अदालत के पास बृजभूषण पर मुकदमा चलाने का अधिकार क्षेत्र है क्योंकि विचाराधीन अपराध आंशिक रूप से दिल्ली में किए गए थे। उन्होंने आगे कहा कि चूंकि यह मामला आईपीसी की धारा 354 के तहत आता है, सीआरपीसी की धारा 468(3) के साथ, बचाव पक्ष के वकील द्वारा प्रस्तुत सीमा के तर्क पर कोई सवाल नहीं हो सकता है।
अदालत अब मामले की आगे की सुनवाई 19 अगस्त को करेगी, जब शिकायतकर्ताओं के वकील आरोप के बिंदु पर दलीलें देंगे। बता दें कि भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर देश की कुछ महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोप है। इस मुद्दे को देश की नामी महिला पहलवानों विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया आदि ने उठाया और लंबे समय तक जंतरमंतर पर धरना दिया। देशभर के किसान संगठनों और खाप पंचायतों ने उनके आंदोलन का समर्थन किया। लेकिन केंद्र सरकार और भाजपा ने बृजभूषण शरण सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं की। जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी मणिपुर पर चुप हैं, उसी तरह वो महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न के मुद्दे पर भी चुप रहे थे।
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