सेना के प्रचार में इस्तेमाल पर चुनाव आयोग की चेतावनी के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी ने आज साफ़-साफ़ शब्दों में सेना के नाम पर वोट माँगा। युवा वोटरों से मोदी ने अपील की कि क्या आपका पहला वोट बालाकोट एयरस्ट्राइक करने वाले वीर जवानों को डाला जाना चाहिए कि नहीं जाना चाहिए? प्रधानमंत्री ने कहा कि आपका ये वोट सीधा मोदी को जाएगा। यह पहला मौक़ा नहीं है जब प्रधानमंत्री के भाषण की आचार संहिता के उल्लंघन के लिए आलोचना की गयी। 'नमो टीवी' को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। लेकिन चुनाव आयोग की ओर से अब तक ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। चुनाव आयोग के ऐसे रवैये को लेकर अफ़सरों के एक समूह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है। उन्होंने पत्र में लिखा है कि आचार संहिता का कई बार उल्लंघन हुआ है और शिकायतें दर्ज कराने के बाद चुनाव आयोग द्वारा यदि कार्रवाई भी की गयी तो मामूली कार्रवाई की गयी है।
चुनाव आयोग की आचार संहिता कितनी कारगर है? पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों के राष्ट्रपति के नाम लिखे गये पत्र से साफ़ हो जाता है। इसमें चुनाव आयोग के कामकाज के तरीक़े पर देश के 66 पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों ने आपत्ति की है। इन अफ़सरों ने पत्र में लिखा है कि चुनाव आयोग कई मौक़ों पर आचार संहिता के उल्लंघनों से प्रभावी रूप से निपटने में विफल रहा है। पत्र में आदर्श आचार संहिता के कथित उल्लंघनों को सूचीबद्ध भी किया गया है। इस सूची में एंटी-सैटेलाइट परीक्षण ‘मिशन शक्ति’ को लेकर राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन, पीएम मोदी की बायोपिक और उनके जीवन पर एक वेब सिरीज, नमो टीवी और पीएम और अन्य बीजेपी नेताओं के कथित भाषण शामिल हैं।
जागरूक अफ़सरों के समूह ने आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों का ज़िक्र किया है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्पित 'नमो टीवी' के अलावा योगी आदित्यनाथ के 'मोदी जी की सेना' वाले भाषण का भी उल्लेख है।
66 अधिकारियों में पूर्व आईपीएस अधिकारी जूलियो रिबेरो, पूर्व विदेश सचिव शिव शंकर मेनन और दिल्ली के पूर्व एलजी नजीब जंग के भी नाम शामिल हैं। अफ़सरों ने चुनाव आयोग की ज़िद और वीवीपैट के ऑडिट कराने में ना-नुकुर करने का भी चिट्ठी में ज़िक्र किया है। राष्ट्रपति को लिखे पत्र में अफ़सरों ने इन मुद्दों और बयानों का ज़िक्र किया है...
एंटी-सैटेलाइट हथियार पर भाषण
27 मार्च 2019 को एंटी-सैटेलाइट हथियार के सफल परीक्षण की प्रधानमंत्री मोदी ने सार्वजनिक घोषणा की। एक तो इसका समय सही नहीं था और न ही प्रधानमंत्री द्वारा घोषणा किया जाना। बेहतर होता कि डीआरडीओ के अधिकारी ही इसकी घोषणा करते। हालाँकि इसके लिए तकनीकी रूप से उन्होंने सरकारी माध्यमों का इस्तेमाल नहीं किया, लेकिन इस तरीक़े से घोषणा करना किसी भी तरह से सही नहीं था और यह चुनाव आचार संहिता का गंभीर उल्लंघन था। लेकिन चुनाव आयोग ने इसका संज्ञान नहीं लिया।
पीएम की बायोपिक
हमारे समूह ने मुख्य चुनाव आयोग को भी पत्र लिखा था कि चुनाव ख़त्म होने तक राजनेताओं की बायोपिक पर रोक लगायी जानी चाहिए। 26 मार्च को यह पत्र लोगों के बीच भी आया। प्रधानमंत्री पर बनी यह फ़िल्म 11 अप्रैल को रिलीज होने वाली है। इस फ़िल्म पर आने वाला पूरा ख़र्च नरेंद्र मोदी के चुनाव ख़र्चे में जोड़ दिया जाना चाहिए।
यही सिद्धांत उस पर भी लागू होना चाहिए जिसमें 10 हिस्सों में 'मोदी: ए कॉमन मैन्स जर्नी' की एक वेब शृंखला शुरू की गयी। अब चुनाव आयोग फिर से इसमें कुछ नहीं किया।
नमो टीवी चैनल
31 मार्च 2019 को नमो टीवी चैनल शुरू होने के मामले में भी चुनाव आयोग ने कुछ ख़ास नहीं किया। इस चैनल को शुरू करने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय से आधिकारिक रूप से अनुमति भी नहीं ली गयी। इस टीवी चैनल पर नरेंद्र मोदी की इमेज बनाने के लिए ऐसे कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं।
अफ़सरों के तबादले
चुनाव आयोग ने आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अधिकारियों का तो तबादला कर दिया लेकिन तमिलनाडु में डीजीपी का तबादला नहीं किया गया, जबकि उनके ख़िलाफ़ सीबीआई की जाँच चल रही है। एक ही नियम सब जगह लागू क्यों नहीं है?
कल्याण सिंह मामला
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने ऐसा बयान दिया जो चुनाव आचार संहिता के लिहाज़ से ग़लत था। कल्याण सिंह ने मोदी को दुबारा जिताने का आह्वान किया था। चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति भवन कार्यालय को सूचना दी है। या तो कल्याण सिंह इस्तीफ़ा दे दें या फिर उन्हें उस पद से हटा दिया जाए।
‘मोदी की सेना’
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी भाषण में सेना के जवानों का ज़िक्र करते हुए 'नरेंद्र मोदी की सेना' कह दिया था। बीजेपी नेता मुख़्तार अब्बास नक़वी ने भी कुछ ऐसा ही बयान दिया था। चुनाव आयोग ने ऐसी मामूली-सी झिड़की दी कि दूसरे नेताओं का मनोबल आचार संहिता का उल्लंघन करने से टूटने की जगह और बढ़ेगा।
‘कांग्रेस ने हिंदुओं का अपमान किया’
लगातार देखा जा रहा है कि चुनावी भाषणों में अनाप-शनाप बोला जा रहा है। वर्धा में नरेंद्र मोदी ने एक अप्रैल को असभ्य भाषण दिया। चुनाव आयोग ने वर्धा में प्रधानमंत्री मोदी के विभाजनकारी भाषण पर सिर्फ़ रिपोर्ट ही क्यों माँगी है जिसमें उन्होंने कहा था, 'कांग्रेस ने हिंदुओं का अपमान किया है। चुनाव में लोगों ने सजा देने का मन बना लिया है। उस पार्टी के नेता बहुसंख्यक जनसंख्या वाली सीटों से चुनाव लड़ने से अब डर रहे हैं। यही वह कारण है जिससे अल्पसंख्यक जहाँ अधिक संख्या में हैं वे वहीं आश्रय ले रहे हैं।'
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर ख़तरा?
अधिकारियों ने पत्र में लिखा है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता से आज समझौता किया जा रहा है, जिससे चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को ख़तरा हो रहा है, जो कि भारतीय लोकतंत्र की नींव है।
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