राम मंदिर-बाबरी मसजिद विवाद को सभी पक्षों की आपसी बातचीत के ज़रिए सुलझाने की कोशिशें पहले भी हुई हैं। साल 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने यह कोशिश की थी कि निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड और राम लला विराजमान के प्रतिनिधियों को एक जगह बिठा कर बातचीत कराई जाए और मामले का निपटारा अदालत के बाहर ही कर लिया जाए। उन्होंने इसके लिए ग़ैर-राजनीतिक लोगोें की मदद भी लेने का फ़ैसला किया।