दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया है कि इन 20 लोगों ने कई महीनों में बनाई गई एक योजना के तहत दंगों को अंजाम दिया। 2020 के दौरान पुलिस ने उनमें से 18 को गिरफ्तार किया। दो फरार हैं। दंगों के पांच साल बाद, उनमें से 12 - सभी मुस्लिम - अभी भी जेल में बंद हैं, और मुकदमा शुरू होना बाकी है। इन्हीं में पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, शारजील इमाम और खालिद सैफी आदि भी हैं। उमर खालिद को एक वाट्सऐप ग्रुप का सदस्य बताकर मुख्य साजिशकर्ता बता दिया गया है। उस वाट्सऐप ग्रुप के संदेश जब अदालत में पढ़े जायेंगे, तब जज साहब के रुख का भी पता चल जायेगा।
सरकारी पक्ष का मामलाः साजिश का मामला सरकारी पक्ष के इस दावे पर आधारित है कि 20 व्यक्तियों ने सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने के बहाने जबरदस्त साजिश रची थी, जिसके चार चरण थे। चार्जशीट के अनुसार, पहले चरण में दिसंबर 2019 में दिल्ली के कुछ हिस्सों में छोटे दंगों को अंजाम देने के लिए और विरोध प्रदर्शन करने वालों को उकसाने और जुटाने के लिए कई व्हाट्सएप समूह बनाए गए। इन छोटे दंगों का अर्थ शहर के चार क्षेत्रों में एंटी-सिटिजनशिप अधिनियम विरोधियों और पुलिस के बीच एक सप्ताह के भीतर हुई दस झड़पों से है।
दूसरे चरण की रणनीति
पुलिस की कहानी के मुताबिक इसमें छात्र संगठनों के बीच कोऑर्डिनेशन बनाया गया, विरोध स्थल चुने गये और अधिनियम से संबंधित "प्रचार" किया गया। यह दिसंबर 2019 और जनवरी और फरवरी 2020 में हुआ। सरकारी पक्ष ने साजिश के हिस्से के रूप में मुस्लिम बहुल इलाकों में स्थापित 23 विरोध स्थलों की ओर इशारा किया। जहां शाहीनबाग आंदोलन की तर्ज पर महिलाएं धरने देने के लिए बैठ गईं। पुलिस ने कहीं यह जिक्र नहीं किया है कि महिलाओं ने धरना देने के दौरान कोई हिंसा की, लेकिन धरना देने को वो साजिश मान रही है।पुलिस के मुताबिक तीसरा चरण, जो जनवरी और फरवरी 2020 में भी फैला हुआ था, इन विरोध प्रदर्शनों को दंगों में बदलने की योजना बनाने से संबंधित था। इसमें कथित तौर पर हथियार जमा करना और "षड्यंत्रकारी बैठकें" शामिल थीं। चौथा चरण फरवरी 2020 में हुआ, जिसमें "चक्का जाम" और पुलिस के साथ टकराव शामिल थे। अधिकारियों का आरोप है कि इसका परिणाम फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में उत्तर पूर्व दिल्ली में दंगों के रूप में हुआ।
दिल्ली में सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान सभी राजनीतिक दलों ने जाम किया, प्रदर्शन किया। बीजेपी तक ने सड़क पर जाम लगाया, प्रदर्शन किया। यह विरोध का एक सामान्य रूप है। लेकिन पुलिस की चार्जशीट में शाहीनबाग आंदोलन जैसे धरनों को साजिश बताया गया। सबूतों में आरोपियों द्वारा भेजे गए व्हाट्सएप संदेश और फेसबुक पोस्ट शामिल हैं। "दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप" नामक एक व्हाट्सएप समूह को दंगों की योजना बनाने और प्रबंधित करने के लिए एक मंच के रूप में पेश किया गया है। सरकारी पक्ष ने अपने ही बनाये गये गवाहों के बयानों पर भरोसा दिखाया। जिनकी पहचान सरकारी पक्ष ने छिपा ली है।
आरोपपत्र में कहा गया कि आरोपियों ने सड़क जाम को हिंसा में बदलने की योजना बनाने के लिए बैठकें कीं। इन गवाहों ने दावा किया कि आरोपी व्यक्तियों ने हथियार जमा करने और पुलिस और गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाने पर भी चर्चा की। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ आरोपी व्यक्तियों ने दंगों को सुविधाजनक बनाने के लिए धन जुटाया और बांटा।
सरकारी पक्ष ने सीसीटीवी फुटेज की ओर इशारा किया, जिसमें कुछ आरोपी व्यक्तियों को विरोध स्थलों और अन्य स्थानों पर मिलते हुए दिखाया गया है। इसने आरोपी व्यक्तियों के कॉल विवरण रिकॉर्ड और संदेशों के डिजिटल रिकॉर्ड - का हवाला दिया। जो बताता है कि वे एक-दूसरे के साथ बात कर रहे थे।
प्रत्यक्ष सबूतों की कमी
सरकारी पक्ष के मामले की सबसे खास बात यह है कि आरोपियों को हिंसा के कृत्यों से जोड़ने वाले प्रत्यक्ष सबूतों की भारी कमी है। इसके बजाय, चार्जशीट एक बड़े साजिश की तस्वीर पेश करने के लिए अनुमान और अटकलों पर भारी निर्भर करती है। स्क्रॉल से बात करने वाले वकीलों ने बताया, अधिकांश आरोपियों पर केवल कुछ गवाहों के मौखिक आरोपों के आधार पर मामला दर्ज किया गया है। सरकारी पक्ष के मामले का समर्थन करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।
वकीलों ने कहा कि किसी भी आरोपी से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ है और कोई सीसीटीवी फुटेज उन्हें हिंसा के स्थलों पर नहीं दिखाता है। सरकारी पक्ष ने सिर्फ सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने और उनमें भाग लेने के आरोपियों के सबूत प्रदान किए हैं। हालांकि, चार्जशीट में पेश किए गए व्हाट्सएप समूह चैट और सोशल मीडिया पोस्ट में विरोध प्रदर्शनों को हिंसा में बदलने की किसी भी योजना का संकेत तक नहीं है।
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