दिल्ली-एनसीआर की बेहद ख़राब हवा को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर तीख़ी टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोग जो पांच-सात सितारा होटल्स में सोते हैं, वे प्रदूषण के लिए किसानों को दोषी ठहरा रहे हैं।
सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस डी. वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की। अदालत ने कहा कि सरकार को किसानों को इस बात को समझाना चाहिए कि वे पराली न जलाएं। अदालत ने कहा कि वह किसानों को दंड नहीं देना चाहती।
सीजेआई रमना ने अफ़सरों की खिंचाई भी की और कहा, “टीवी पर होने वाली डिबेट्स किसी और से ज़्यादा प्रदूषण फैलाती हैं। सब का अपना एजेंडा है। हम हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं।” इस दौरान केंद्र सरकार ने अपना हलफ़नामा भी अदालत के सामने रखा।
आंकड़ों पर अलग-अलग दावे
इस दौरान अदालत में दिल्ली और केंद्र सरकार की ओर से पराली जलाने को लेकर अलग-अलग आंकड़े भी रख गए। केंद्र सरकार ने सोमवार को कहा था कि पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण राजधानी के कुल प्रदूषण में सिर्फ़ 10 फ़ीसदी का हिस्सेदार है जबकि दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी ने कहा कि SAFAR नाम की संस्था के मुताबिक़, पराली से होने वाले प्रदूषण की हिस्सेदारी लगभग 36% फ़ीसदी है।
सुनवाई के दौरान सीजेआई रमना ने कहा कि हमें आंकड़ों पर बात नहीं करनी है बल्कि हम चाहते हैं कि प्रदूषण कम हो।
सीजेआई रमना ने सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी से कहा कि क्या आपने देखा कि रोक के बावजूद दिल्ली में कितने पटाखे फोड़े गए।
स्कूल, कॉलेज बंद करने का आदेश
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण से हालात इस क़दर ख़राब हो गए हैं कि स्कूल-कॉलेजों को बंद करना पड़ा है। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने मंगलवार रात को कहा है कि स्कूल और कॉलेजों को अगले आदेश तक बंद रखा जाए।
आयोग ने 9 पेज का आदेश जारी किया है। आयोग ने सुझाव दिया है कि एनसीआर में पड़ने वाले महानगरों की राज्य सरकारें 21 नवंबर तक कम से कम 50 फ़ीसदी स्टाफ़ को वर्क फ्रॉम होम करने के लिए कहें।
भारी जुर्माने का सुझाव
आयोग ने कहा है कि एनसीआर में ऐसे लोग या संगठन जिन्होंने सड़कों पर निर्माण सामग्री या कचरे का ढेर लगाया हुआ है, उनके ख़िलाफ़ भारी जुर्माना लगाया जाए। साथ ही सड़कों को साफ करने वाली मशीनों को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है।
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