यूपीएससी कोचिंग सेंटर में हुई मौतों की जाँच सीबीआई करेगी। दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को इस मामले को दिल्ली पुलिस से सीबीआई को सौंप दिया। यूपीएससी उम्मीदवारों की मौतों पर दिल्ली नगर निगम यानी एमसीडी और दिल्ली पुलिस को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा, 'यह समझ में नहीं आ रहा है कि यूपीएससी के तीन उम्मीदवार कैसे डूब गए; यह एक आम बात हो गई है और एमसीडी के अधिकारियों को इसकी कोई परवाह नहीं है।'
हाईकोर्ट ने एमसीडी अधिकारियों से पूछा कि उन्होंने राजेंद्र नगर में ख़राब हो रहे स्टॉर्मवॉटर ड्रेन के बारे में कमिश्नर को क्यों नहीं बताया। अदालत ने अधिकारियों पर तंज भी किया और कहा, 'शुक्र है कि आपने बेसमेंट में घुसने वाले बारिश के पानी का चालान नहीं किया, जिस तरह से आपने एसयूवी ड्राइवर को वहाँ कार चलाने के लिए गिरफ्तार किया।'
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने यह निर्देश दिया क्योंकि 'घटना गंभीर है और लोक सेवक भ्रष्टाचार में शामिल हो सकते हैं'।
हाईकोर्ट का यह फ़ैसला राव आईएएस कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में 3 उम्मीदवारों की मौत की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन की मांग करने वाली एक जनहित याचिका पर आया है। इस सप्ताह की शुरुआत में अदालत ने दिल्ली सरकार की 'मुफ्तखोरी' नीतियों की आलोचना की थी और कहा था कि 'मुफ्तखोरी संस्कृति' के कारण सरकार के पास शहर की बढ़ती आबादी के मद्देनजर बुनियादी ढांचे, विशेष रूप से शहर की जल निकासी प्रणाली को बेहतर करने के लिए पैसे नहीं हैं।
इलाके से गुजर रहे एक एसयूवी चालक की गिरफ्तारी पर कटाक्ष करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि बेसमेंट में डूबकर मारे गए तीन सिविल सेवा उम्मीदवारों की मौत के लिए नाले में बह रहे बारिश के पानी का चालान नहीं काटना बहुत राहत की बात है।
कोर्ट ने संकेत दिया कि इस मामले में कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हो सकते हैं। इसने कहा, 'घटना की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि जांच के बारे में जनता को कोई संदेह न रहे, यह न्यायालय जांच को सीबीआई को सौंपता है।'
अदालत ने कहा कि केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी सीवीसी को सीबीआई जांच की निगरानी के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी नियुक्त करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि यह जांच समयबद्ध तरीके से पूरी हो।
अदालत ने एमसीडी आयुक्त को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि क्षेत्र में नालियाँ चालू रहें और यदि उनकी क्षमता बढ़ानी है तो इसे जल्द से जल्द व्यवस्थित तरीके से किया जाना चाहिए। इसने कहा कि क्षेत्र में अतिक्रमण और अवैध निर्माण को तत्काल हटाया जाना चाहिए।
अदालत ने आगे टिप्पणी की कि दिल्ली में नालियों जैसे भौतिक बुनियादी ढाँचे को लगभग 75 साल पहले बनाया गया था। इसने कहा कि शहर का भौतिक, वित्तीय और प्रशासनिक बुनियादी ढांचा सभी पुराने हैं और 3 करोड़ से अधिक की विशाल आबादी के अनुपात में नहीं हैं।
कोर्ट की ख़बरों को रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, 'विभिन्न सब्सिडी योजनाओं के कारण दिल्ली में पलायन बढ़ रहा है और इसकी आबादी भी बढ़ रही है। एमसीडी जैसी नागरिक एजेंसियों की वित्तीय स्थिति स्वस्थ नहीं है। यह अदालत यह निष्कर्ष निकालने में गलत नहीं होगी कि दिल्ली में नागरिक एजेंसियों के पास प्रमुख बुनियादी ढांचे को पूरा करने के लिए कोई धन नहीं है।'
पीआईएल में राष्ट्रीय राजधानी के प्रत्येक जिले में एक जिला स्तरीय समिति के गठन की मांग की गई है ताकि संबंधित जिलों में अवैध वाणिज्यिक निर्माण की जांच और पता लगाया जा सके।
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