डिफेंस पर संसद की स्थायी समिति ने सेना, वायुसेना और नौसेना का बजट घटने पर चिन्ता जताई है। यह रिपोर्ट कल संसद के पटल पर रखी गई थी, लेकिन आज इस रिपोर्ट की पूरी जानकारी सामने आई है। समिति ने कहा कि कुछ पड़ोसी देशों के साथ बढ़ते तनाव के मौजूदा हालात को देखते हुए सेना के तीनों अंगों को पर्याप्त बजट मिलना चाहिए।समिति ने पूंजीगत परिव्यय (कैपिटल आउटले) और बजटीय आवंटन के लिए तीन रक्षा सेवाओं की मांग के बीच बड़े अंतर का जिक्र करते हुए, सिफारिश की है कि रक्षा मंत्रालय को आने वाले वर्षों में बजट में कोई कमी नहीं करनी चाहिए।लोकसभा में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया कि कि 2022-23 के बजट के लिए 2,15,995 करोड़ की मांग का अनुमान लगाया गया था, लेकिन आवंटन 1,52,369.61 करोड़ का हुआ था। धन की इस तरह की कटौती रक्षा सेवाओं की ऑपरेशनल तैयारियों से समझौता है।
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इस रिपोर्ट के मुताबिक 2022-23 के बजट अनुमान में आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के लिए अनुमानित और आवंटित बजट के बीच का अंतर क्रमशः 14,729.11 करोड़, 20,031.97 करोड़ और 28,471.05 करोड़ है, जो बहुत ज्यादा है।
संसदीय डिफेंस पैनल ने कहा कि उसका मानना है कि पड़ोसी देशों के साथ खासतौर पर बॉर्डर पर बढ़ते तनाव के मौजूदा हालात में, ऐसी स्थिति रक्षा तैयारियों के लिए अनुकूल नहीं है। पैनल ने अपनी पिछली रिपोर्टों में, पूंजीगत बजट को "नॉन-लैप्सेबल" और "रोल-ऑन" में बदलने की सिफारिश की थी। यानी आवंटित बजट को न लैप्स किया जाए और उसे अगले बजट में बढ़ा दिया जाए।समिति ने कहा कि यह अवगत कराया गया है कि डिफेंस मॉडर्नाइजेशन फंड के लिए एक मसौदा कैबिनेट के सामने विचाराधीन है।
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समिति ने कहा कि कि 2020-21 में 3,43,822.00 के कुल बजटीय आवंटन में से, सिर्फ 2,33,176.70 का इस्तेमाल मंत्रालय ने दिसंबर 2020 तक उपयोग किया था।
बता दें कि डिफेंस पैनल का नेतृत्व बीजेपी सांसद जुआल ओराम कर रहे हैं। इसमें कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार सहित लगभग 30 सांसद शामिल हैं।
बहरहाल, पैनल ने रक्षा मंत्रालय से "नॉन-लैप्सेबल डिफेंस मॉडर्नाइजेशन फंड और डिफेंस रिन्यूअल फंड" के गठन में तेजी लाने की सिफारिश की, जिसका इस्तेमाल विशेष रूप से महत्वपूर्ण समय पर महत्वपूर्ण रक्षा संपत्तियों की खरीद के लिए किया जा सके।
समिति ने वायु सेना के बारे में कहा कि उसे सर्वोच्च प्राथमिकता मिलना चाहिए क्योंकि पड़ोस के दोनों किनारों पर खतरा एक वास्तविकता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
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दरअसल, समिति ने पाकिस्तान और चीन के साथ भारतीय सीमा पर खतरों का हवाला दिया है। वैसे पैनल ने रिपोर्ट में दोनों देशों का नाम नहीं लिया है। पैनल ने कहा, हमारी सेनाओं को सभी संभावित लड़ाकू क्षमताओं से लैस करना वक्त की जरूरत है। वायु सेना के प्रतिनिधियों ने पैनल को बताया कि स्क्वाड्रन की वर्तमान अधिकृत ताकत 42 है। अधिकांश मौजूदा स्क्वाड्रन का कुल तकनीकी जीवन खत्म हो रहा है और इसका नतीजा यह है कि स्क्वाड्रन की ताकत लगातार कम हो रही है। समिति ने यह भी सुझाव दिया कि वायु सेना को यह तय करना चाहिए कि निकट भविष्य में नए विमान खरीदे जाएं ताकि इसकी लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाया जा सके समिति का मानना है कि लड़ाकू स्क्वाड्रन की ताकत को केवल विमानों की संख्या पर नहीं बल्कि उनकी हथियार ले जाने की क्षमता, मारक क्षमता और उड़ान भरने और हमला करने की क्षमता पर भी नहीं गिना जा सकता है। इसलिए, वायु सेना में लड़ाकू विमानों को शामिल करते समय मारक क्षमता और प्रौद्योगिकी के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाना चाहिए।
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