कोरोना संक्रमण बढ़ना शायद कुछ लोगों को सामान्य घटना लग रही हो, लेकिन जिस रफ़्तार से यह बढ़ रहा है वह चौंकाने वाला है। पहली लहर में जितनी तेज़ी थी उससे क़रीब दोगुने से भी ज़्यादा रफ़्तार दूसरी लहर में है। वैसे तो इसे मापने का कोई पैमाना नहीं है, लेकिन संक्रमण के आँकड़े ही चीख-चीख कर संभलने की चेतावनी दे रहे हैं।
देश में इस साल 17 मार्च को क़रीब 35 हज़ार संक्रमण के मामले थे और 31 मार्च को 72 हज़ार से ज़्यादा आए हैं। यानी 13 दिन में ही संक्रमण के मामले दोगुने से ज़्यादा हो गए। पिछले साल जब पहली लहर थी तब संक्रमण के मामले 35 हज़ार से दोगुना बढ़कर 72 हज़ार पहुँचने में 41 दिन लगे थे। तब 16 जुलाई को संक्रमण के मामले क़रीब 35 हज़ार से बढ़कर 26 अगस्त को क़रीब 75 हज़ार हो गए थे। इसका मतलब साफ़ है कि कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमण में तेज़ी पहली लहर की अपेक्षा तीन गुनी से भी ज़्यादा है।
अब यदि इसकी तुलना और पहले से यानी पिछले महीने के आँकड़े से करते हैं तो भी ताज़ा उछाल पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ गति से आया है। इस साल 10 फ़रवरी को एक दिन में कोरोना संक्रमण के मामले क़रीब 12 हज़ार आए थे जो 31 मार्च तक बढ़कर 72 हज़ार हो गए। यानी 49 दिनों में हर रोज़ के मामलों में 60 हज़ार संक्रमण के मामले बढ़े। पिछली बार यानी पहली लहर में पिछले साल कोरोना संक्रमण के मामले 12 हज़ार से बढ़कर 72 हज़ार को पार करने में 74 दिन लगे थे। 13 जून को क़रीब 12 हज़ार संक्रमण के मामले आए थे और 26 अगस्त को क़रीब 75 हज़ार।
हालाँकि, जिस दर पर नए संक्रमणों का पता लगाया जा रहा है, उससे लगता है कि पहली लहर में सितंबर महीने में सबसे ज़्यादा संक्रमण के मामले के आँकड़े को पार कर जाएगा। अब तक, दूसरी लहर मुख्य रूप से महाराष्ट्र के कारण ही आई लगती है। गुजरात और पंजाब में भी एक दिन में सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए। बाक़ी के राज्यों में दूसरी लहर जैसी स्थिति नहीं है, लेकिन संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
स्थिति यह है कि सिर्फ़ आठ राज्यों में ही पूरे देश में सक्रिए कोरोना संक्रमण के मामलों के क़रीब 85 फ़ीसदी मामले हैं। अब यदि बाक़ी राज्यों में स्थिति ख़राब हुई तो देश भर में संक्रमण के मामले काफ़ी ज़्यादा बढ़ सकते हैं।
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में संक्रमण अभी से ही तेज़ी दिखाना शुरू कर दिया है। महाराष्ट्र और केरल के अलावा, जिन दो राज्यों ने एक दिन में 10,000 से अधिक मामले दर्ज किए हैं, वे हैं- कर्नाटक और आंध्र प्रदेश। तमिलनाडु में सबसे ज़्यादा संक्रमण के मामले 7,000 आए थे। तमिलनाडु और कर्नाटक में फ़रवरी में 500 से भी कम मामले हो जाने के बाद अब एक दिन में लगभग 2,000 मामले आने शुरू हो गए हैं। आंध्र प्रदेश में हर रोज़ संक्रमण के मामले फ़रवरी के पहले हफ़्ते में दोहरे अंक तक गिर गए थे, अब एक दिन में 1,000 मामले आने लगे हैं।
तो क्या दूसरी लहर ज़्यादा आक्रामक आएगी? ऐसा निश्चित तौर पर तो नहीं कहा जा सकता है लेकिन दुनिया के कई देशों में यह दिखा है कि थोड़ी सी ढिलाई होते ही संक्रमण ज़्यादा तेज़ गति से बढ़ा है। अमेरिका और यूरोप के देश इसकी मिसाल हैं।
अमेरिका में भी जब पहली लहर आई थी तब एक दिन में सबसे ज़्यादा क़रीब 78 हज़ार संक्रमण के मामले आए थे। लेकिन दूसरी लहर में वहाँ बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। हर रोज़ संक्रमण के मामले 3 लाख से भी ज़्यादा आए। दूसरी लहर ज़्यादा लंबे समय तक भी चली।
अमेरिका में संक्रमण के मामलों में यह बढ़ोतरी तब हुई जब हाल में अमेरिका में चुनाव हुआ है। ट्रंप ने जमकर जनसभाएँ कीं। उनकी सभाओं में आए लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को तोड़ते और मास्क नहीं लगाए हुए देखा गया।
कई यूरोपीय देशों में तो अब कोरोना की तीसरी लहर आ गई है, लेकिन इससे पहले जब दूसरी लहर आई थी तब वहाँ भी संक्रमण के मामले काफ़ी ज़्यादा बढ़े हुए थे। फ़्रांस में कोरोना संक्रमण की पहली लहर जब अपने चरम पर थी तो एक दिन में सबसे ज़्यादा संक्रमण के मामले क़रीब 7500 आए थे, लेकिन जब दूसरी लहर आई तो नवंबर महीने में 80 हज़ार से भी ज़्यादा मामले आ गए थे। अब जब तीसरी लहर है तो फिर से वहाँ 45 हज़ार से ज़्यादा मामले आ रहे हैं।
फ्रांस के अलावा रूस, स्पेन, इंग्लैंड, इटली, जर्मनी, पोलैंड और यूक्रेन जैसे देशों में भी ऐसी ही स्थिति थी और उन देशों में जब कोरोना की दूसरी लहर आई तो उन देशों में हर रोज़ 10 हज़ार से लेकर 35 हज़ार संक्रमण के मामले आ रहे थे।
हालाँकि उन देशों ने लापरवाहियाँ भी बरती थीं। उन देशों ने लॉकडाउन में जब ढील दी थी तो लोगों ने मास्क उतारकर फेंक दिए थे, उत्सव मनाने लगे थे और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का उल्लंघन करना शुरू कर दिया था।
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