कोरोना संक्रमण के जहाँ हर रोज़ 4 लाख केस आने लगे थे वे अब क़रीब ढाई लाख ही आ रहे हैं। संक्रमण के मामले कम हुए तो क्या दूसरी लहर उतार पर है? क्या यह अपने शिखर पर पहुँच चुका है?
गाँवों में एकाएक मौत के मामले बढ़ गए हैं। गंगा में सैकड़ों लाशें तैरती मिल रही हैं। हज़ारों लाशों को गंगा किनारे रेत में दफ़न करने की ख़बरें हैं। हर गाँवों में बड़ी संख्या में बुखार से पीड़ित होने की रिपोर्ट है। गाँवों में तो लोगों के पास कोरोना जाँच की सुविधा ही नहीं है या फिर लोग जाँच करा नहीं रहे हैं। डॉक्टर और एंबुलेंस जैसी सुविधा भी नहीं है। गंभीर हालत होने पर मरीज़ों को शहरों में लेकर जाँच कराने पर अधिकतर मामलों में कोरोना की रिपोर्ट आ रही है। कई मरीज तो शहरों के अस्पताल पहुँचते-पहुँचते ही दम तोड़ दे रहे हैं।
तो एक बात तो साफ़ है कि गाँवों में कोरोना की जाँच न के बराबर है। जहाँ कहीं ज़्यादा संख्या में मौत हो जा रही है वहाँ स्वास्थ्य विभाग की टीमें जाँच कर रही हैं वरना अधिकतर गाँवों में कोरोना टेस्ट कैसे होता है, यह भी नहीं लोग जानते।
ऐसे में संक्रमण के मामले 4 लाख से घटकर क़रीब ढाई लाख कैसे पहुँच गए? इसके बारे में कुछ तथ्यों को जानने से पहले यह जान लें कि कहा यह जा रहा है कि पहले बड़े शहर चपेट में थे और अब गाँव। इसी संदर्भ में स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्टों को पढ़िए। रिपोर्ट कहती है कि देश में संक्रमण के मामले लगातार कम होते जा रहे हैं। पहले जहाँ एक दिन में 4 लाख 14 हज़ार केस आ गए थे वे अब तीन लाख से भी कम हो गए हैं। बीते 24 घंटों में भारत में कोरोना संक्रमण के 2,63,533 मामले सामने आए। रविवार को संक्रमण के 2,81,386 नए मामले सामने आए थे।
ऐसे में क्या कोरोना संक्रमण के मामले कम आने को कोरोना की दूसरी लहर का ख़त्म होना कहा जा सकता है?
तो कोरोना के मामले कम क्यों हो रहे हैं?
कोरोना के कम मामले को कोरोना जाँच से जोड़कर भी देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि जिस स्तर पर कोरोना फैला है उस स्तर पर जाँच में तेज़ी नहीं लाई गई है। जाँच की संख्या बताती है कि औसत दैनिक आँकड़ा 1 अप्रैल से केवल 75 प्रतिशत तक बढ़ गया है। लेकिन जब संक्रमण दर को देखें तो यह एक मामूली आँकड़ा नज़र आता है। 1 अप्रैल से लेकर पिछले सप्ताह तक जब 4 लाख से ज़्यादा केस आ रहे थे तो संक्रमित लोगों की संख्या में 531 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई।
हालाँकि, भारत में जाँच की क्षमता 33 लाख की है, लेकिन दैनिक औसत 18 लाख ही जाँच की जा रही है। 1 अप्रैल को 10 लाख से अधिक जाँच हुई थी। इसका साफ़ मतलब है कि देश की जाँच की क्षमता का 45 प्रतिशत इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।
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इस महीने की शुरुआत में ही सरकार ने कहा था कि मरीजों को दूसरी जाँच की ज़रूरत नहीं होगी और 15 दिनों के बाद उन्हें कोविड-मुक्त माना जाएगा। यह सरकार ने ही कहा था और ऐसा इसलिए कि देश की प्रयोगशालाओं पर काफ़ी ज़्यादा दबाव था और उसे कम किया जाना था।
कोरोना की दूसरी लहर के जल्द ख़त्म होने पर विशेषज्ञ भी कहते हैं कि इसमें अभी समय लगेगा। कोरोना की दूसरी लहर कब शिखर पर होगी, इस सवाल पर विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने दो दिन पहले ही इंडिया टुडे से बातचीत में कहा था, 'मैं कोई तारीख़ या नंबर नहीं देना चाहती क्योंकि यह उन पाबंदियों पर निर्भर करता है जो कि लगाए गए हैं। अगर कुछ हफ़्ते के लिए राष्ट्रीय लॉकडाउन होता है तो शायद यह कर्व को नीचे की ओर मोड़ने में मदद करेगा। पिछले साल के विपरीत, वायरस कुछ राज्यों तक ही सीमित नहीं है और हर जगह लगता है। इसलिए, हम शिखर को लंबा खींचता देख सकते हैं जब तक कि हर जगह सख्त उपाय नहीं किए जाते।'
बता दें कि देश में कई राज्यों ने अपने-अपने स्तर पर राज्यों में लॉकडाउन लगाया है, लेकिन देश भर में इस बार लॉकडाउन नहीं लगाया गया है। महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे राज्यों में लॉकडाउन लगाने के बाद संक्रमण के मामले कम हुए हैं।
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इसके बावजूद कोरोना संक्रमण को रोकने के सबसे बेहतर उपाय के तौर पर कोरोना वैक्सीन को ही माना जा रहा है, लेकिन देश में कोरोना टीके की कमी है। महाराष्ट्र, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर सहित कई राज्यों में कई टीकाकरण केंद्रों को बंद करना पड़ा है। टीकाकरण काफ़ी धीमा पड़ गया है। हालाँकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा है कि इस साल के आख़िर तक देश में टीके की क़रीब 216 करोड़ खुराक उपलब्ध होगी। टीकाकरण नीति के लिए आलोचनाओं का सामना कर रही सरकार अब टीके पर जोर दे रही है। उम्मीद है यह फ़ैसला कोरोना की तीसरी लहर को रोकने में काफ़ी अहम होगा।
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